भगवान् बोले- जिसको जानकर सब-के-सब मननशील मनुष्य परमसिद्धि को प्राप्त हो गये हैं, सम्पूर्ण ज्ञानों में उस उत्तम और परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा।।1।।
उस ज्ञान की और क्या महिमा है भगवन्?
उस ज्ञान का आश्रय लेकर जो मनुष्य मेरी सधर्मता को प्राप्त हो गये हैं अर्थात् मेरे समान हो गये हैं, वे महासर्ग में भी पैदा नहीं होते और महाप्रलय में भी व्यथित नहीं होते।।2।।
महासर्ग में प्राणी कैसे पैदा होते हैं?
हे भारत! मेरी मूल प्रकृति तो उत्पत्ति-स्थान है और मैं उसमें जीव (चेतन) रूप गर्भ स्थापन करता हूँ, जिससे सम्पूर्ण प्राणी पैदा होते हैं। अतः हे कौन्तेय! अलग-अलग योनियों में जितने भी प्राणी पैदा होते हैं, उन सब की उत्पत्ति में माता के स्थान पर मेरी मूल प्रकृति है और बीज-स्थापन करने में पिता के स्थान पर मैं हूँ[1]।।3-4।।
आप सब जीवों के पिता हैं तो फिर वे जीव बन्धन में क्यों पड़ जाते हैं?
हे महाबाहो! सत्त्व, रज और तम-ये तीनों गुण पैदा तो प्रकृति से होते हैं, पर इनका संग करने से ये अविनाशी देही को देह में बाँध देते हैं।।5।।
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