गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 110

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

चौदहवाँ अध्याय

Prev.png

भगवान् बोले- जिसको जानकर सब-के-सब मननशील मनुष्य परमसिद्धि को प्राप्त हो गये हैं, सम्पूर्ण ज्ञानों में उस उत्तम और परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा।।1।।

उस ज्ञान की और क्या महिमा है भगवन्?
उस ज्ञान का आश्रय लेकर जो मनुष्य मेरी सधर्मता को प्राप्त हो गये हैं अर्थात् मेरे समान हो गये हैं, वे महासर्ग में भी पैदा नहीं होते और महाप्रलय में भी व्यथित नहीं होते।।2।।

महासर्ग में प्राणी कैसे पैदा होते हैं?
हे भारत! मेरी मूल प्रकृति तो उत्पत्ति-स्थान है और मैं उसमें जीव (चेतन) रूप गर्भ स्थापन करता हूँ, जिससे सम्पूर्ण प्राणी पैदा होते हैं। अतः हे कौन्तेय! अलग-अलग योनियों में जितने भी प्राणी पैदा होते हैं, उन सब की उत्पत्ति में माता के स्थान पर मेरी मूल प्रकृति है और बीज-स्थापन करने में पिता के स्थान पर मैं हूँ[1]।।3-4।।

आप सब जीवों के पिता हैं तो फिर वे जीव बन्धन में क्यों पड़ जाते हैं?
हे महाबाहो! सत्त्व, रज और तम-ये तीनों गुण पैदा तो प्रकृति से होते हैं, पर इनका संग करने से ये अविनाशी देही को देह में बाँध देते हैं।।5।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. महासर्ग के आरम्भ में जीवों का (अपने-अपने गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार) प्रकृति के साथ विशेष सम्बन्ध करा देना ही भगवान् के द्वारा बीज-स्थापन करना है।

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः