हे मधुसूदन! वश में किये हुए अन्तःकरण वाले मनुष्यों के द्वारा अन्तकाल में आप कैसे जानने में आते हैं?
हे अर्जुन! मैं पहले अन्तकाल के विषय में अपना नियम सुनाता हूँ। जो मनुष्य अन्तकाल में मेरा स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता है, वह मेरे को ही प्राप्त होता है, इसमें संशय नहीं है।।1-5।।
अन्तकाल में आपका स्मरण करे तो आपको प्राप्त होगा, पर यदि आपका स्मरण न करे, तो?
हे कुन्तीनन्दन! मनुष्य अन्तसमय में जिस-जिस भाव का स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता है, वही उसी (अन्तसमय के) भाव से सदा भावित हुआ उसी भाव को प्राप्त हो जाता है।।6।।
तो फिर अन्तकाल में आपके स्मरण के लिये क्या करना चाहिये?
तू अपने मन और बुद्धि को मेरे में अर्पण करके सब समय मेरा ही स्मरण कर और प्राप्त कर्तव्यकर्म भी कर।
इससे क्या होगा?
तू निःसन्देह मेरे को ही प्राप्त होगा।।7।।
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