गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
अठारहवाँ अध्याय
अर्जुन बोले- हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन! हे केशिनिषूदन! मैं संन्यास (सांख्ययोग) और त्याग (कर्मयोग) का तत्त्व अलग-अलग जानना चाहता हूँ।।1।। वे चार मत कौन-से हैं महाराज? 1. कई विद्वान काम्य कर्मों के त्याग को संन्यास कहते हैं। 2. कई सम्पूर्ण कर्मों के फल के त्याग को त्याग कहते हैं। 3. कई विद्वान् कहते हैं कि कर्मों को दोष की तरह छोड़ देना चाहिये और- 4. कई कहते हैं कि यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिये।।2-3।। ये तो दार्शनिकों के चार मत हुए, पर आपका इस विषय में क्या मत है भगवन्? |