महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
राजसूय यज्ञ
शकुनि मामा बड़े चालाक थे उन्होंने अपने भान्जे से कहा-अरे बेटा! जब तक मैं बैठा हूं, तब तक मैं बैठा हूं, तब तक तुम्हें चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है। युधिष्ठिर को चौसर खेलने का बहुत शौक है और इस खेल में मैं युधिष्ठिर को हराकर उनका राजपाट जीतकर तुम्हें सौंप सकता हूँ। दुर्योधन बोले-मामा! तुम मेरे बड़े ही हितकारी हो। वाह! क्या तरकीब निकाली इसमें न भीम की गदा काम आ सकती है और अर्जुन का गाण्डीव। आपकी चतुराई के आगे युधिष्ठिर ठहर नहीं सकते। बस तो फिर हमें चटपट इस काम का कर डालना चाहिए। शकुनि ने कहा-पहिले तुम अपने पिता जी को इस बात के लिए राजी कर लो। वह और भीष्म पितामह आदि हमारी योजना को खटाई में डाल सकते हैं। यदि तुम्हारे पिता सहमत हो जाएं तो फिर भीष्म आदि हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे। दुर्योधन बोला-पिता जीम मुझे इतना चाहते हैं कि मैं उन्हें निःसंदेह इस प्रस्ताव के लिए राजी कर लूंगा। दुर्योधन अपने पिता के पास गया और कहा कि आप हमारे प्रस्ताव को कृपया अस्वीकार न करें। धृतराष्ट्र यह जानते थे कि यह कार्य अच्छा नहीं है। उन्होंने अपने बेटे को समझाने की कोशिश भी परन्तु दुर्योधन की समझ में ऐसी बातें आ ही नहीं सकती थीं और दुर्योधन के हठ के आगे धृतराष्ट्र हार मान जाते थे। उन्होंने सोचा कि यदि मैंने इसको जुआ खेलने की आज्ञा नहीं दी तो यह निश्चय ही सोच के मारे घुल-घुल कर बीमार पड़ जायगा। अपने बेटे के मोह में धृतराष्ट्र ने जुआ खेलने की आज्ञा दे दी। उन्होंने विदुर मंत्री से कहा कि आप इन्द्रप्रस्थ जाकर युधिष्ठिर को न्योता दे आइये। महात्मा विदुर ने राजा धृतराष्ट्र को बहुत समझाया कि बच्चों के दबाव में आकर आप गलत कार्य न करें, इसका नतीजा अच्छा नहीं होगा। धृतराष्ट्र स्वयं ईर्ष्यालु थे, इसलिए महात्म विदुर की सलाह उन्हें उचित नहीं लगी। वे कुछ-कुछ मुंह कर बोले-आप तो मेरे बच्चों को इतना बुरा समझते हैं कि उनके मनोरंजन में भी आपको कुटिलता दिखलाई देती है। इस बात का उत्तर बेचारे विदुर क्या देते? चुप मारकर चल दिए। इन्द्रप्रस्थ पहुँचकर उन्होंने युधिष्ठिर को सारा हाल बतलाया। कहा कि गान्धार का राजा शकुनि और चित्रसेन सत्यव्रत आदि कुछ छटे हुए धूर्त सामंत आपको जुए में हराकर तबाह करने पर तुले हैं। मेरी समझ में तो आपको वहाँ नहीं जाना चाहिए। युधिष्ठिर बोले-न्योता यदि दुर्योधन ने भेजा होता तो मैं निःसंदेह उसे टाल जाता, किन्तु जब स्वयं पूज्यनीय काका जी ने ही मुझे जुआ खेलने के लिए बुलाया है तो न जाना भी पाप होगा। पाण्डव भाई हस्तिनापुर से आए हुए इस प्रस्ताव से बड़े चिन्तित थे पर वे बेचारे कर ही क्या सकते थे? निमंत्रण धृतराष्ट्र की ओर से था और युधिष्ठिर को कोई जाने से रोक नहीं सकता था। धर्मराज युधिष्ठिर, उनके चारों भाई और महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के लिए चल पड़े। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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