महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
दधीचि का अस्थिदान
अफ़ग़ानिस्तान की सरस्वती या आजकल की बोलचाल में हंसवती नदी के किनारे आज से लगभग दस बारह वर्ष पहले एक बड़े महात्मा रहते थे। उस जमाने में आदमी पत्थरों और हड्डियों के बने हुए हथियारों से लड़ता था। मजबूत पसलियों के ढांचे को नुकीला करके उससे वज्र बनाया जाता था। उसे जोर से अगर किसी की छाती में फंसा दिया जाय तो वह उसकी पसलियों को कड़कड़ाकर तोड़ डालता था। आगे चल कर यही वज्र फिर तांबे, पीतल और लोहे के भी बनने लगे। खैर, हम जिस समय की कथा सुना रहे हैं उस समय हड्डियों और पत्थरों के औजार ही बना करते थे। अफ़ग़ानिस्तान के आस-पास ही वृत्रासुर नाम का एक शक्तिशाली राजा भी रहता था, उसने अफ़ग़ानिस्तान की नदियों लेकर सिन्धु नदी तक की कई नदियों को अपने स्वार्थ के लिए घेर रखा था। वृत्र के माने घेराव भी हैं। पत्थर और मिट्टी के बांधों से नदियों की धाराओं को अपने राज्य की सीमा की ओर मोड़ ले जाने वाला कोई बड़ा प्रतापी और दुष्ट राजा ही वृत्रासुर के नाम से जाना जाता है। वह दुष्ट अपने असली नाम को अमर न कर सका। जिस तरकीब से उसने अन्य दुर्बल लोगों की भूमियों को पानी रहित करके सुखा दिया और अपने राज की भूमि को सिंचाई से हरा-भरा बनाया, उसी घेराव की तरकीब से उसका नाम भी कलंकित बन गया। देव कबीलों के आर्यों के मुखिया इन्द्र ने जब यह देखा तो उन्होंने इस अन्याय के विरुद्ध लड़ने का निश्चय किया। लेकिन इन्द्र वृत्रासुर को जीत न पाया। वह अपनी प्रजा के उन किसानों की सेना लेकर लड़ता था जिन्हें कि इन नदियों के घेराव से लाभ पहुँचता था। इन्द्र ने सोचा कि इस दुष्ट सेना का मनोबल तोड़ने के लिए उन्हें वृत्रासुर को मारना चाहिए। परन्तु वह बड़ा शक्तिशाली पुरुष था। उसकी छाती छेदने लायक वज्र इन्द्र के पास नहीं था। इतनी मजबूत पसिलयां स्वयं इन्द्र की ही हो सकती थीं जिनसे कि वज्र बनाया जा सके, पर अपनी पसलियों का वज्र वह भला क्योंकर बना सकता था। उसे बतलाया गया कि महान तपस्वी दधीचि की हड्डियां बहुत मजबूत हैं। अगर उनका वज्र बनाया जाय तो बलशाली वृत्रासुर की पसलियां अवश्य टूट जायेंगी। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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