महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अभिमन्यु का विवाह
विराट नगर में उत्तरा-अभिमन्यु का विवाह हो रहा है। मुख्य मण्डप में समधी लोग बैठे हैं। द्वारका से अभिमन्यु के मामा श्रीकृष्ण और बलदेव जी पधारे हैं। यों तो अभिमन्यु के नाना वसुदेवजी हैं पर शायद वे बुढ़ापे के कारण लम्बी यात्रा नहीं कर सकते इसलिये नहीं आये। खैर वे न सही परन्तु अभिमन्यु की सौतेली मां द्रौपदी के पिता महाराज द्रुपद भी अभिमन्यु के सगे नाना के समान ही थे, और घर के बड़े-बूढ़े की तरह से यहाँ मौजूद हैं। बड़ी खातिरदारियां हो रही हैं और सब लोग सब तरह से बड़े सुख में बैठे हुए आपस में बात कर रहे हैं। धर्मराज युधिष्ठिर बोले- "अभिमन्यु के ननिहाली लोग तो यहाँ सब मौजूद हैं, लेकिन दादा के घर के लोग नहीं आये, इसका मुझे बड़ा दुःख है। भगवान की दया से अभिमन्यु के परदादा, हमारे भीष्म पितामह जीवित हैं, विदुर जी हैं, हमारे धृतराष्ट्र चाचा और कौरव भाई लोग हैं, मगर आपसी वैर फूट के कारण आज उनमें से यहाँ कोई उपस्थित नहीं है।" जय यह बात छिड़ी तो फिर आगे पीछे की सभी बातें सामने आने लगीं। महाराज द्रुपद ने अपने दामाद युधिष्ठिर जी से पूछा- "अज्ञातवास का वर्ष पूरा हो गया, धर्मराज अब आगे के लिए आप लोगों का क्या विचार है? कहाँ रहेंगे, राजपाट कैसे पायेंगे, इन सब बातों पर आप लोगों ने कुछ न कुछ विचार तो किया ही होगा।" युधिष्ठिर बोले- "मान्यवर, हमने कुछ सोचा तो अवश्य है, पर अभी कोई निर्णय नहीं ले सके। हम यह चाहते हैं कि अपनी बात कहने से पहले एक दिन आप लोगों के विचार सुनें। ब्याह के बहाने सभी सगे-सम्बन्धी मित्र राजे-महाराजे यहाँ आये हुए हैं। सबसे बड़ी बात है यह है कि आप और श्रीकृष्ण जी यहाँ मौजूद हैं, इसलिए मेरा निवेदन यह है कि आप भाई कृष्ण से सलाह करके कल किसी समय एक गुप्त विचार गोष्ठी कर लें। आप लोगों की बातों में हम पाण्डव भाइयों के मनों की सभी बातें निश्चयपूर्वक आ जायेंगी, और यदि कोई रह गयी, तो उसे मैं विचार करने के लिए आप लोगों के सम्मुख कह दूंगा।" महाराज द्रुपद ने श्रीकृष्ण से धीरे-धीरे बातें कीं और उनकी सहमति से दूसरे दिन दोपहर बाद राजा विराट के महल में किसी सुरक्षित स्थान पर बैठकर वह गुप्त गोष्ठी करने की बात पक्की हो गई। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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