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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
पाण्डु का राज्याभिषेक
धृतराष्ट्र यों तो हर तरह से योग्य थे, बड़े बेटे भी थे, इसलिए राजगद्दी पर उनका हक पहुँचता था। पर अन्धे होने के कारण उन्हें उसी प्रकार से राजगद्दी नहीं मिली जिस प्रकार कि उनके बाबा के बड़े भाई को चर्म रोग होने के कारण नहीं मिली थी। पाण्डु अपने पितामह राजा शांतनु की तरह ही राजा घोषित हुए। औषधियों और वैद्यों की करामातों के बल पर पाण्डु राजा यों चंगे भी रहते थे और राज-काज चलाने में बड़े निपुण भी थे। भीष्म जी की छत्रछाया में कुरुवंश के नये महाराज का वंश भी धीरे-धीरे वटवृक्ष के समान विशाल होने लगा। उन्होंने आज के तुर्किस्तान के आस-पास बसे मध्वीय देश की राजकन्या माद्री से ब्याह रचाया। उन दिनों मद्रों का जन-कबीला बड़ी दूर-दूर तक फैला हुआ था। मध्य एशिया से लेकर भारत और पंजाब तक, और केवल पंजाब ही नहीं दूर दक्षिण में मद्रास तक एक समय में फैल गया था। इसी मद्रास को अब मद्रास कहते हैं और इसका प्राचीन नाम द्रविण भाषा में सेनेपट्टनम था। इसी तरह जिस देश को हम आजकल मिस्त्र कहते हैं असली नाम उसका मद्र है। इस प्रकार मद्रों के प्रतापी जन-कबीले से अपना सम्बन्ध जोड़कर कुरुक्षेत्र के राजा पाण्डु ने बड़ा दबदबा बढ़ा लिया। मद्रों के यह अजब रिवाज था कि वे अपनी लड़की के लिए पैसा मांगते थे? भीष्म जी ने मिदिया के राजा को मुंह मांगी रकम देकर उसकी राजकुमारी खरीदी और इस तरह से कुरुक्षेत्र के राजा की हैसियत का सिक्का दूर-दूर तक जमा दिया। कुन्ती यद्यपि निपट नादानी में अपने जीवन की एक बहुत बड़ी भूल कर बैठी थी तथापि उस भूल से उसने बड़ी समझ भी पाई थी। कुन्ती ने अपने पति से कुछ न छिपाया। राजा पाण्डु भी बड़े दिल वाले थे। उन्होंने अपनी पत्नी को क्षमा कर दिया और यह कहा कि मेरे लिये सन्तान को गर्भ में धारण करते समय तुम उस मंत्र का प्रयोग करो जिससे कि भविष्य में देवापि, विचित्रवीर्य, धृतराष्ट्र और पाण्डु जैसे बीमार बच्चे फिर पैदा न हो। पाण्डु राजा को कुन्ती से तीन सन्तान हुईं। बड़े का नाम युधिष्ठिर था जिनमें मंत्र के प्रभाव से धर्मराज के तेज और गुण दिखलाई पड़ते थे। भीम तो जन्म से ही ऐसे प्रबल थे कि एक बार कुन्ती रानी उन्हें गोद में लिए सैर करते हुए किसी पहाड़ी शिला पर बैठ गयीं। अचानक ऐसा हुआ कि बच्चा मां की गोद से नीचे चट्टान पर गिर पड़ा। बेचारी कुन्ती मां का कलेजा तो धकधक हो गया कि हाय मेरा बेटा तो गया। पर नीचे उतर कर जब पास पहुँची तो देखा कि उनका बेटा तो अंगूठा चूस रहा था। मगर जिस चट्टान पर वह गिरा था वह उसके गिरने के धमाके से चिटक गई। भीम में मरुत देवता की शक्ति थी। वह आरम्भ से ही बहुत भारी और प्रौढ़ थे। कुन्ती का तीसरा बेटा अर्जुन देखने से ही इन्द्र का अवतार लगता था। वैसा ही तेजस्वी हट्टा-कट्टा और सबल। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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