महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
जुए में पराजय
हस्तिनापुर पहुँचने पर पहले तो सब भाइयों का खूब स्वागत सत्कार हुआ फिर दूसरे दिन जुए का दरबार लगा। भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य और विदुर जैसे बड़े-बूढ़े लोग दुर्योधन और शकुनि के इस षडयन्त्र से बड़े दुखी थे। जब राजा ही अपने बेटों के मोह में पड़कर ऐसा अनुचित काम कर रहा हो तब कोई भला क्या कर सकता है? चौपड़ की बिसात बिछी। युधिष्ठिर महाराज अपने आसन पर बैठ गए परन्तु जब उनके सामने दुर्योधन की जगह पर शकुनि मामा बैठे तो युधिष्ठिर ने कहा- "मैं तो दुर्योधन के साथ चौपड़ खेलने आया हूं, आप क्यों बैठते हैं?" दुर्योधन बोला- "मामा मुझसे बढ़िया चौपड़ खेलते हैं, इसलिए वे ही मेरी ओर से खेल खेलेंगे।" शकुनि बोला- "खेल को कम समझने वाला अगर अपनी ओर किसी जानकार को साथ ले लेता है तो उसमें कोई दोष नहीं होता। तुम्हें यदि मुझसे खेलने में डर लगता हो तो साफ-साफ कहो?" युधिष्ठिर बोले- "क्षत्रिय वीर किसी भी परिस्थिति में डरा नहीं करते। मैं आपकी चुनौती को स्वीकार करता हूं, चलिए पांसा फेंकिए।" दांव पर दांव चलने लगे। शकुनि मामा बेईमानी से पांसे पलटने की कला में भी बड़े पक्के थे। वह इतनी सफाई से पांसा पलटते थे कि कोई भांप नहीं पाता था, दावं पर दांव पड़ने लगे और युधिष्ठिर की हार होती चली गई। धन हारे, सारा राजपाट हारे, और दुर्योधन आदि दुष्टों के चुनौतियां देने पर वे एक-एक करके अपने भाइयों को भी हार गये। अपने मुकुट और आभूषण उतार कर भी अर्जुन, नकुल और सहदेव ने एक-एक करके अपना आसन छोड़ा। मुकुट और आभूषण, कौरवों के द्वारा जीती हुई धनराशि के ढेर के पास रखे और धरती पर दासों की तरह सिर झुकाकर बैठ गये। प्रतापी राजकुमारों की यह दुर्गति देखकर सभा में बैठे हुये सभी भक्त लोगों को रोना आ गया। जिस भीम और अर्जुन के नाम से दुश्मनों के कलेजे थर-थर कांपते हैं, जो सदा अजेय सिद्ध हुये हैं वे महाबली इस समय जुये के दांव पर हारे हुए पराजित दास बने बैठे हैं। सो भी घर में! कहां स्वयं अपने ही चाचा-बाबा के घर में सत्यवादी मंत्री विदुर जी यह देखकर चुप न बैठ सके। उन्होंने खड़े होकर महाराज से कहा- "हे राजन! जुआ सारे पापों की जड़ माना गया है। हम उसके बुरे परिणामों को इस समय प्रत्यक्ष अपनी आंखों से देख रहे हैं। क्या यह आपको अच्छा लगेगा कि आपके सगे भतीजे आपके घर में, अपने बाप-दादे, परदादों की राजधानी में इस तरह से दास होकर बैठें? हे महाराज, इस जुए को तुरन्त बन्द करने का आदेश दीजिए।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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