महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
वेन और पृथु की कथा
जिस समय हमारे देश में महाराज नाभि शासन चला रहे थे, उसी समय भारतवर्ष से बाहर किन्तु भरतखण्ड के अन्दर ही वेन नामक पराक्रमी राजा राज्य कर रहा था। वह जैसा प्रतापी था वैसा ही लालची और दुष्ट था। उसे यहाँ तक घमण्ड हो गया कि अपने आप ही अपने को ईश्वर मानने लगा। राजा ही ईश्वर है, उसके मुख से निकला हुआ वाक्य ही वेद वाक्य है। समाज पर इन ऋषियों का प्रभाव नहीं होना चाहिए। यह सोच कर राजा वेन ने ऋषियों का अपमान करने की नीति बरती। ऋषिगण राजा के घमण्ड और मूर्खता से तंग आ गये। राजा वेन की सेना भी जनता के क्रोध के आगे ठहर न सकी और अंत में वेन राजा भी मार डाला गया। वेन जैसा निर्बुद्ध था वैसा ही उसका बेटा पृथु प्रबुद्ध और ज्ञानी था। उसने भी उसी तरह अपने क्षेत्र में पहली बार पृथ्वी को हल से जुतवाया जैसा राजा नाभि ने किया था। पृथु ने भी भरत की तरह ही बहुत-सी भूमि जीती। जैसे भरत के नाम पर भरतखंड और भारतवर्ष नाम पड़े वैसे ही पृथु के नाम पर इसी धरती को पृथ्वी कहा जाने लगा। यह पृथु वेन भी राजा भीम परमेष्ठी के समान ही ऋग्वेद के मंत्रदृष्टा ऋषि हुए। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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