महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
विदुर की चतुराई
राज्य के मंत्रियों में विदुर जी का बड़ा मान-सम्मान था। वे पढ़े-लिखे, गम्भीर और उदार पुरुष थे। उनका स्वभाव देखकर लोग उन्हें महात्मा कहते थे। पाण्डव लोग अपने चाचा के समान उनका आदर करते थे। इसीलिए महात्मा विदुर पाण्डवों से बहुत प्रसन्न थे। उन्हीं महात्मा विदुर को अपने जासूसों के द्वारा यह मालूम हुआ कि कुन्ती समेत पांचों पाण्डवों को एक साथ समाप्त करने का षडयन्त्र रचा जा रहा है। विदुर जी ने युधिष्ठिर को उस षडयन्त्र की बात बताकर सचेत कर दिया। यही नहीं, विदुर जी ने खूब जतन करके यह पता भी लगा लिया कि लाख और दूसरे जलने वाले मशालों से एक धोखे का महल वारणावत नगर में बनाया जा रहा है। उसमें ये लोग ठहराये जायेंगे और रात में अचानक उस घर में आग लगाकर कुन्ती और उनके पांचों बेटों को इस दुनिया से उठा दिया जायगा। विदुर जी ने इस षडयन्त्र योजना में काम करने वाले एक आदमी को किसी तरह रिश्वत आदि देकर फोड़ लिया। इसके द्वारा उन्होंने उस महल में एक सुरंग भी चुपचाप बनवा ली। विदुर जी ने यूनानी भाषा में युधिष्ठिर को उस गुप्त सुरंग का पता भी बता दिया। उस समय भी हमारे देश-विदेश की भाषा लिखने-पढ़ने और बोलने वाले लोग हुआ करते थे। युधिष्ठिर और विदुर जी जैसे ऊंचे दर्जे के लोग अपनी मातृभाषा के अलावा और भी कई भाषाएं जानते थे। इसीलिए यूनानी भाषा में भेजा गया सन्देश युधिष्ठिर को सुरक्षित रूप में मिल गया। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को भी दुर्योधन के षडयन्त्र की सूचना दे दी। पांचों भाई अपनी माता के साथ जब वारणावत नगर में पहुँचे तो राज कर्मचारियों ने उनकी आवभगत में कोई कसर न उठा रखी। दिन भर वे लोग पांचों भाइयों और कुन्ती माता का हुकुम ही बजाते रहे। इधर यह लोग भी सबसे मीठा व्यवहार करते रहे। कुन्ती माता ने बहुत सारा दान-पुण्य किया, गरीबों को भोजन कराया। इस बीच में युधिष्ठिर ने विदुर जी की बतलाई हुई सुरंग का पता भी लगा लिया और सब तरह से चौकस हो गये। रात के समय जैसे ही सब लोग सो गये, वैसे ही युधिष्ठिर, कुन्ती माता, अर्जुन और नकुल तथा सहदेव को लेकर सुरंग के बाहर चले गये और भीमसेन ने दुश्मन के आग लाने से पहले ही स्वयं उस महल में आग लगा दी और सुरंग की राह अपने भाइयों और माता के समेत जंगल में निकल गये। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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