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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शल्य और युधिष्ठिर का युद्ध
ढोल धमाके बजने लगे। उन्हें सुनकर भी कौरव सिपाहियों को युद्ध भूमि में जाने का साहस न हुआ। तब दुर्योधन बहुत घबराया। उसने सब लोगों को ललकारा कहा- “तुम लोग घबराते क्यों हो? अर्जुन के पैने तीरों का जवाब देने के लिये अभी तो हमारे पास अश्वत्थामा और कृपाचार्य जी जैसे महारथी मौजूद हैं और भीमसेन की गदा का जवाब मेरी गदा देगी। हम दोनों ही ने स्वयं बलराम जी से गदा युद्ध की शिक्षा पायी थी। जिस तरकीबों को भीम जानता है उन्हें मैं भी जानता हूँ। इसके बाद बचे पाण्डवों के बाकी वीर सो शल्य मामा के आगे वे घड़ी भर भी न टिक सकेंगे। मद्रों का पराक्रम प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने सेना-संगठन और तलवार के जोर से आधी दुनिया को अपने वश में कर रखा है। विश्वास रखो वीरो! आज तुम्हें ही युद्ध में विजय मिलेगी। बोलो कौन मेरे साथ आगे बढ़ने को तैयार है?” कर्ण के तीनों बेटे छाती फुलाए हुए दुर्योधन के सामने आये और कहा- “चाचा जी जब तक हम लोग जीवित हैं तब तक आप यह न समझें कि हमारे पिता मर चुके हैं। आज के युद्ध में हम तीनों भाइयों का पराक्रम देखकर शत्रु तो क्या भगवान भी थर्रा उठेंगे। कर्ण के बेटों का जोश देखकर बाकी वीरों में भी उल्लास भर उठा। एक बार फिर कुरुक्षेत्र का मैदान लाशों से पटने लगा। कौरव और पाण्डव दोनों ही पक्षों की सेनाएं अब बहुत थोड़ी बच रही थीं। फिर भी पाण्डव पक्ष में अधिक लड़वैये थे। कौरवों के कई साथी भाग भी चुके थे। यह होने पर भी कौरव लोग उस दिन खूब जमकर लड़े। कर्ण के बेटों ने बड़ा घमासान मचाया लेकिन वे तीनों मारे गये। कर्ण के वंश में कोई पानी देने वाला न रहा। यह देखकर मद्रराज शल्य बहुत ही दुःखी और क्रोधित हुए। पहले तो उनकी लड़ाई अपने सगे भान्जे नकुल से ही हुई पर बाद में नकुल को थकते हुए देखकर भीमसेन लड़ने के लिए आ गये। दोनों ओर से घमासान युद्ध हुआ। दूसरी ओर शल्य मामा ने पाण्डव पक्ष के अनेक वीरों को मार डाला। तब कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा- “भैया जैसे मेरा मामा मेरे हाथों से मरा था वैसे ही तुम्हारा मामा भी तुम्हारे ही हाथों से मुक्ति पायेगा। जाओ और उसे युद्ध भूमि में सुला दो।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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