महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
युद्ध की ओर
संजय धर्मराज युधिष्ठिर से मिलने गये। धर्मराज ने बहुविधि स्वागत सत्कार करके आने का कारण पूछा। संजय बोले- "हे धर्मराज, अपने महाराज की बात कहने से पहले मैं आपको एक छोटी-सी कथा सुनाता हूँ। एक बार एक बहेलिये ने चिड़िया पकड़ने के लिये जंगल में जाल फैलाया। थोड़ी देर बाद चिड़िया का एक झुण्ड आकर उसमें फंस गया। बहेलिया प्रसन्न होकर जब अपना जाल समेटने के लिए बढ़ा तो आत्मरक्षा के लिये जाल में फंसी सारी चिड़ियां आपस में संगठित हो गयीं। उन्होंने चूं-चूं करके आपस में एक दूसरों से कहा- कि कोई चिड़िया हिम्मत न हारो। सब मिलकर एक साथ जोर लगाओ और जाल समेत उड़ चलो, बहेलिया हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगा। चिड़ियों ने ऐसा ही किया और वे जाल समेत उड़ चलीं। बहेलिया उनके साथ ही साथ दौड़ता चला। आगे एक मुनि मिले। दृश्य देखकर उन्होंने बहेलिये से कहा- "अरे मूर्ख, यह चिड़िया तो तेरा जाल लेकर आकाश में उड़ रही हैं, तू धरती पर दौड़-दौड़कर बेकार में अपने को क्यों थका रहा है?" बहेलिया बोला- "हे मुनि, यह चिड़िया मूर्ख जाति की हैं। उस समय आत्मरक्षा के भय से यह अवश्य संगठित हो गयीं पर मूर्ख कभी अधिक समय तक संगठित होकर नहीं रह सकता। इसलिए जब यह आपस में लड़कर नीचे गिरने लगेंगी तब मैं इन्हें पकड़ लूंगा।" थोड़ी देर बाद ऐसा ही हुआ और आपसी बैर के कारण चिड़िया बहेलिए की पकड़ाई में आ गयीं। हे धर्मराज इसी तरह यदि आप दोनों भाई आपस में लड़ेंगे तो कोई तीसरा आदमी आप दोनों को समाप्त करके आपका राज्य हड़प ले जायेगा। युधिष्ठिर बोले- "संजय जी, हम आपके विचारों का आदर करते हैं। हम भी घर की फूट को बहुत बुरा मानते हैं पर सुयोधन आदि हमारे भाई जब अन्याय करने पर तुल ही गये हैं तब आप ही बतलाइये हम आखिर कब तक चुप रहें। और जहाँ तक विनाश का सम्बन्ध है मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ यदि दुर्भाग्यवश यह युद्ध हुआ तो इसमें कौरव ही मारे जायेंगे। हम पाण्डवों का कोई कुछ भी न बिगाड़ सकेगा। जिधर धर्म है, उधर ही जय है।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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