महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
यादवों का अन्त
छत्तीस वर्षों तक पाण्डवों ने भारतवर्ष पर राज्य किया। श्रीकृष्ण की सहायता से उन्होंने पहली बार इस देश को राजनीतिक रूप से संगठित किया। व्यापार के लिए बड़ी-बड़ी सड़कें बनवायीं आपसी लड़ाइयां रोकीं। सब तहर से प्रजा को न्याय देकर देश को खुशी और मेहनती बनाया। लेकिन समय जब पलटता है तो उसके कुछ बुरे प्रभाव भी अवश्य ही पड़ते हैं। उदाहरण के लिए अनेक गणतंत्र जो पहले किसी मजबूत और सुसंगठित बड़े साम्राज्य के अभाव में अपने बचाव के लिए मजबूत और एक बने रहते थे, अब सुरक्षा पाकर धीरे-धीरे बिखरने भी लगे। उस समय यादवों का वृष्णि अन्धक गणतंत्र बड़ी ही मजबूत माना जाता था। कच्छ और गुजरात के सारे बड़े-बड़े बन्दरगाह उनके अधिकार में थे इसलिए धन-वैभव की कमी न थी। बड़े-बड़े सरदारों के पास जिम्मेदारी का कोई काम तो रह नहीं गया था इसलिए वे लोग अधिकतर खाने-पीने और मौज उड़ाने में ही मगन रहने लगे। श्रीकृष्ण को अपनी जाति का यह पतन देखकर बड़ा कष्ट होता था लेकिन वे बेचारे कुछ नहीं कर पाते थे। कहने को तो कृष्ण यादवों की पंचायत के मुखिया थे, उनके राष्ट्रपति थे, पर लोग-बाग अब उनकी भी नहीं सुनते थे। श्रीकृष्ण उदास हो गये। उन्होंने कहा- “मैंने बहुत चाहा था भैया कि हमारा समाज बाहरी उन्नति पाने के साथ-साथ अगर अपनी आत्मा की उन्नति की दशा में भी बराबर बढ़ता रहे तभी सदा वह सुखी और मुक्त रह सकता है। बाहर की समृद्धि आत्मा को दरिद्र बना देती है। किसी भी सरकार को यह चाहिए कि वह अपनी प्रजा की सदा दोहरी उन्नति करने का ही प्रयत्न करे। मैंने यही करना भी चाहा था किन्तु दम्भी सरदारों के आगे एक नहीं चल पायी। जो हो मैं जब तक जिऊंगा तब तक यह प्रयत्न तो करता ही रहूंगा।” बलराम बोले- “तुम्हारी इच्छा। तुम संसार को तो मोह मुक्त करते हो कृष्ण, और स्वयं अपने भक्तों के मोह में इतने लिप्त हो कि जानकर भी अनजाने बने रहो हो। अस्तु मैं तो जाता हूँ समुद्र तट पर बैठकर समाधि लूंगा और इस पृथ्वी पर शेष हो जाऊंगा।” श्री बलराम चले गये। श्रीकृष्ण ने भी कुछ दिनों के बाद अपने यादव भाइयों का बुरा अन्त आखिर देख ही लिया। प्रभास तीर्थ का वार्षिक मेरा लगा था, बड़ी चहल-पहल थी। लखपति-करोड़पति यादव सरदारों के यहाँ दिन-रात दावतें होती थीं। शराब की नदियां बहती थीं और उनमें यादवों के नौजवान और नवयुवतियां मच्छों और मछलियों की तरह मगन मन तैरा करते थे। उनका विवेक तो नष्ट हो चुका था। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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