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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अभिमन्यु का पराक्रम
“यशस्वी हो बेटा, किन्तु मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ कि मेरे सामने से हट जाओ। मैं दुधमुंहे बच्चों से नहीं लड़ना चाहता।” “शेर के बच्चे को बच्चा नहीं समझना चाहिए आचार्य, उसमें भी उतना ही तेज होता है।” द्रोणाचार्य ने अभिमन्यु को बार-बार समझाया, किन्तु वह अपनी ही आन पर अड़ा रहा। चक्रव्यूह तोड़ना सचमुच बच्चों का खेल नहीं था। बड़े-बड़े योद्धा इसकी रखवाली कर रहे थे। इसके अलावा चक्रव्यूह को तोड़ने की कला कौरवों या पाण्डवों के पक्ष में आमतौर से बड़े-बड़े वीरों को भी नहीं मालूम थी। भीष्म, द्रोणाचार्य, श्रीकृष्ण, अर्जुन और प्रद्युम्न आदि गिने-चुने महान युद्धशास्त्री ही उसे बनाना और तोड़ना जानते थे। चक्रव्यूह या पद्मव्यूह की रचना कमल के समान होती थी। लाल कपड़े पहने और मारने की दृढ़ प्रतिज्ञा करके कमल की पंखड़ियों के समान एक-दूसरे से सट कर खड़े होते थे, उन पंक्तियों को तोड़कर प्रवेश करना अपने आप ही में परम कठिन था, किन्तु उन चक्करदार पंक्तियों में एक बार फंस जाने पर बाहर निकलना अच्छे-अच्छे योद्धाओं के लिए भी बड़ा कठिन कार्य था। द्रोणाचार्य के बनाये हुए इस चक्रव्यूह के आगे दुर्योधन का बेटा लक्ष्मण खड़ा था। हर मोर्चे पर एक-एक महारथी डटा हुआ था और चक्र के बीचो बीच में दुर्योधन, कर्ण, कृपाचार्य, और दुःशासन आदि वीर लड़ने के लिए तैयार खड़े थे। सिन्धु देश का राजा जयद्रथ उनके पहरे पर खड़ा था और महावीर द्रोणाचार्य जी इस चक्रव्यूह की रक्षा के लिए सबसे आगे डटे हुए थे। लेकिन जब व्यूह तोड़ने के लिए अर्जुन का बेटा सामने आया तो आचार्य मोहवश होकर उसके सामने से हट गये। वीर अभिमन्यु ने द्रोणाचार्य के देखते ही देखते एक मोर्चे पर भारी हमला किया और व्यूह तोड़कर भीतर ही कतारों में धंस गया। अभिमन्यु के इस पराक्रम से दुर्योधन की सोची हुई चाल निकम्मी सिद्ध होने लगी। अर्जुन को संसप्तकों से युद्ध में उलझा कर कौरव यह समझते थे कि अब पाण्डवों में कोई भी उनका सामना न कर सकेगा। भीम आदि जो भी वीर इस चक्रव्यूह में धंसने का प्रयत्न करेगा, वह निश्चय ही मारा जायेगा। परन्तु यह सारी योजना धरी की धरी रह गई। अभिमन्यु ने बिजली की सी फुर्ती से इधर-उधर घूम कर व्यूह को उन ठिकानों से भेदना शुरू किया जहाँ मोर्चे कुछ कच्चे बंधे थे। अभिमन्यु की वीरता देखकर कौरव पक्ष के वीर चौंक उठे। उन्होंने यह समझ लिया कि अभिमन्यु को निरा बच्चा समझकर छोड़ देना घातक होगा क्योंकि बड़े-बड़े योद्धा वीर अभिमनयु के साथ युद्ध करने से हिचक कर अपने प्राणों के मोह से भाग रहे थे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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