श्रीनारायणीयम्
द्वितीयदशकम्
लक्ष्मीपते! आपके लोकोत्तर सौंदर्य पर लुट जाने के कारण ही यह लक्ष्मी दूसरों के यहाँ स्थिर नहीं रह पाती है। इस विषय में मैं दूसरा प्रमाण भी बतलाता हूँ। (वह यह है कि) जो आपके ध्यान तथा गुणानुकीर्तन के आनन्द में आसक्त रहने वाले भक्तजन हैं, उनके यहाँ यह लक्ष्मी आप प्रेमास्पद के प्रस्ताव को आदर देती हुई स्थिर रूप से ही निवास करती है।।5।।
इस प्रकार जो मनोज्ञता रूप अभिनव अमृतद्रव की वर्षा करने वाला आपका रूप है, वह परम चिदानन्दमय रस का निलय है, आपकी चर्चा सुनने वालों के चित्त को हर लेने वाला है, तत्काल ही बुद्धि को प्रेरणा देकर उन्मत्त बना देता है- उसे आनन्द परवश कर देता है, शरीर को पुलकित करके उसे आनन्द की वृद्धि से उद्भूत हुए शीतल अश्रुप्रवाहों के द्वारा भलीभाँति सींच भी देता है।।6।। |
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