श्रीनारायणीयम्
नवतितमदशकम्
भगवान् शंकराचार्य भी, जो किसी देव विशेष के पक्षपाती नहीं थे, समस्त प्राणियों में आपको ही उपस्थित मानते थे; इसीलिए उन्होंने विष्णुपरक सहस्रनाम आदि की व्याख्या की है और अंत समय में आपका ही स्तवन करते हुए वे मोक्ष को प्राप्त हुए।।5।।
शंकर भगवत्पाद ने मन्त्रशास्त्र के आदि में मूर्तित्रय से परे चतुर्थ परमेश्वर, केराव के फूल के समान नीली कान्ति से सुशोभित तथा सर्वेश्वर रूप से आपका वर्णन किया है। प्रणव में भी उन्होंने निष्कल-ध्यान रूप से वर्णन करके आपको ही सर्वस्व बतलाया है, किसी अन्य देव को नहीं।।6।। |
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