श्रीनारायणीयम्
चतुरशीतितमदशकम्
भगवन्! तत्पश्चात् वहीं गोपों को देखकर आप अत्यंत उत्कण्ठित हो उन सबसे मिले और भलीभाँति उनका सम्मान किया। पुनः आप स्नेहपूर्वक उन गोपांगनाओं से भी मिले, जिनके शरीर आपके चिरकालिक विरह से दुबले हो गये थे।।4।।
आपके दर्शन का उत्सव पाकर तत्काल ही उन नितम्बिनी गोपियों के हृदय का मान गल गया और अत्यंत रसवशात् उनके स्तनों पर से चोली उतर गयी। तब आप उनके पूर्वपरिचित मनोहर स्तनों में निलीन हो गये- उनके आलिंगन सुख का अनुभव किया।।5।।
तदनन्तर ‘प्रिये! बारंबार शत्रुओं के साथ युद्ध छिड़ जाने के कारण तुम्हारे पास मेरे आने में इतना विलम्ब हो गया।’ इस प्रकार आपके सान्त्वनापूर्ण वचन कहकर आलिंगन करने पर राधिका का तुरंत ही अत्यंत विवस हो आपके वक्षःस्थल में लीन हो गयीं- आपके साथ ऐक्य सुख का अनुभव करने लगीं।।6।। |
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