श्रीनारायणीयम्
एकाशीतितमदशकम्
तदनन्तर पाँच मुखो वालें दैत्यराज मुर ने समुद्र के जल से निकलकर आप पर आक्रमण किया, तब आपने युद्धस्थल में चक्र द्वारा अनायास ही उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। तत्पश्चात् चार दाँतों वाले गजराजों की सेना लेकर नरकासुर समरभूमि में आ धमका। उस घोर संग्राम में आपने चक्र से नरकासुर का सिर काट करके उसका नरक-लोक से उद्धार कर दिया।।7।।
तब भूमि देवी ने आकर आपकी स्तुति-प्रार्थना की, उससे प्रसन्न होकर आपने शीघ्र ही भौमासुर के पुत्र भगदत्त को एक गजराज तथा उसका राज्य देकर शेष सभी चतुर्दन्त गजराजों को, विपुल धनराशि को तथा दुष्ट भौमासुर द्वारा कैद में डाली हुई अपने (श्रीकृष्ण) में ही अनुरक्त रहने वाली सोलह हजार स्त्रियों को भी आपने निजपुरी द्वारका को भेज दिया।।8।। |
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