श्रीनारायणीयम्
चतुस्सप्ततितमदशकम्
आप अपने कटाक्षपात से उन नगर-नारियों का आनन्द बढ़ा रहे थे। उस राजमार्ग पर बहुत से लोग अद्भुत चपल दिखायी देते थे। उस समय वहाँ आपने किसी धोबी से अपने पहनने योग्य वस्त्र माँगा। उसने उत्तर दिया- ‘अजी! हटो, जाओ; तुम्हें राजा का वस्त्र कौन देगा।’ उसके इतना कहते ही उसी क्षण आपने हाथ से उसका मस्तक मरोड़ दिया। फिर तो वह भी पुण्यगति को प्राप्त हुआ।।3।।
फिर आप एक दर्जी के पास गये। वह बड़ा उदार था तथा उसकी बुद्धि बड़ी विशाल थी। उसने बड़े संतोष के साथ आपके वेष के अनुरूप वस्त्र प्रदान किया। तब आपने भी उसको अपने धाम में पहुँचा दिया। जीवात्माओं के पुण्य को कौन जानता है? इसके बाद एक माली ने बहुत सी मालाएं और पुष्पगुच्छ अर्पित करके तथा बहुत सी स्तुतियाँ सुनाकर आपको सम्मानित किया। लक्ष्मीपते! उस माली ने आपसे आपकी भक्ति मांगी। आपने उसे भक्ति तो दी ही, उत्तम लक्ष्मी भी प्रदान की।।4।। |
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