श्रीनारायणीयम्
चतुश्चत्वारिंशत्तमदशकम्
‘जो आपके पुत्र से स्नेह करेगा अर्थात् कृष्णभक्त होगा, वह पुनः मायिक शोकों से मोहित नहीं होगा- उसे जनन-मरणादि के दुःख का अनुभव नहीं करना पड़ेगा। किंतु जो आपके पुत्र से द्रोह करेगा अर्थात् कृष्णविमुख होगा, वह नष्ट हो जाएगा।’ इस प्रकार उन ऋषि श्रेष्ठ ने आपके महत्त्व का वर्णन किया।।7।।
‘यह बहुत से दैत्यों को जीत लेगा, अपने बंधु समुदाय को अमल पद की प्राप्ति करायेगा और अपनी अत्यंत निर्मल कीर्ति का श्रवण करेगा।’- यों ऋषि ने आपके ऐश्वर्य का कथन किया।।8।।
‘इसी पुत्र के द्वारा तुम लोग समस्त संकटों से पार हो जाओगे, अतः इस पुत्र में तुम लोग आस्था बनाये रहो।’ इस प्रकार ‘ये विष्णु हैं’ इतना ही मात्र न कहकर आपके कृष्णावतार के शेष सारे कर्मों का गर्गमुनि ने वर्णन कर दिया।।9।।
यों कार्य संपन्न करके गर्गमुनि वहाँ से चले गये। तदनन्तर आनन्दित हुए नन्द आदि गोप बड़े लड़े लाड़-प्यार से आपका लालन-पालन करने लगे। श्रीमरुत्पुराधीश! आप मुझ पर कृपा करके मेरे रोगों का निराकरण कर दीजिए।।10।।
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