श्रीनारायणीयम्
चतुर्थदशकम्
इस प्रकार सत्यलोक को प्राप्त हुआ जीव ब्रह्मलोक में अथवा आपके निवास स्थान विष्णुलोक में निवास करता हुआ प्राकृतप्रलय के समय मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। अथवा स्वेच्छानुसार अपने-अपने योग बल से ब्रह्माण्ड कटाह का भेदन करके उसके द्वारा महाप्रलय के पूर्व ही मुक्त हो जाता है।।13।।
विभो! उस ब्रह्माण्ड के पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश- ये पञ्चतत्त्व तथा महत्तत्त्व और प्रकृति- ये सात आवरण हैं। इन आवरणों में उन-उन आवरणों के अनुरूप स्वरूप-ग्रहण द्वारा उनमें प्रवेश करके निरतिशय सुख का अनुभव करता हुआ जीव आपके अनावृत पद- ब्रह्मपद को प्राप्त कर लेता है।।14।।
जगत्पते! इस प्रकार की अर्चिरादि गति को प्राप्त हुए जीव का पुनरावर्तन नहीं होता। अतः सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीगुरुवायुपुरनाथ! मैं भी आपके उत्कृष्ट गुणों का कीर्तन कर रहा हूँ, मेरी रक्षा कीजिए।।15।। |
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