श्रीनारायणीयम्
पञ्चत्रिंशत्तमदशकम्
उस समय वानरों द्वारा अनवरत लाये जाते हुए पर्वत-समूहों से सेतु का निर्माण कराकर आप समुद्र पार हुए। वहाँ युद्ध में दाढ़, नख, पर्वत, शिखर, शिला और सालवृक्ष ही जिनके आयुध थे, अपनी उन सेनाओं द्वारा राक्षसों को रौंद डाला। तत्पश्चात् जब लक्ष्मणसहित आप समरभूमि में इंद्र को जीतने वाले मेघनाद के साथ जूझते हुए परम पराक्रम प्रकट कर रहे थे, उसी समय उस राक्षस ने आपको वेगपूर्वक नागास्त्र से बाँध लिया। तब पक्षिराज गरुड़ की पाँकों के वायु से आप मुक्त हुए।।5।।
उस संग्राम में जब मेघनाद के शक्ति प्रहार से सुमित्राकुमार मूर्च्छित हो गये, तब हनुमान जी द्वारा लाये गये पर्वत की औषधि के सूँघने से उन्हें पुनः जीवन प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् लक्ष्मण ने कुमार्ग की प्रशंसा करने वाले मेघनाद को काल के गाल में भेज दिया। तब विभीषण के बतलाये हुए मार्ग से माया से क्षुब्ध हुई सेनाओं के स्तम्भन को आपने दूर किया। इसी समय धरातल को कँपाता हुआ तथा सारी वानरी सेना को भक्षण करता हुआ कुम्भकर्ण आ डटा, तब आपने उसका संहार कर डाला।।6।। |
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