महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शिक्षा का प्रबन्ध
गान्धारी के सौ और कुन्ती के पांच बेटे राजमहलों के आंगन में उपवन या नदी तट पर नौकरों की निगरानी में खेला करते थे। लेकिन इस खेल ही खेल में भविष्य की लड़ाई के बीज भी पड़ गए। बड़ों के मन की दुर्बलताएं दुर्योधन, दुःशासन आदि भाइयों में अधिक उभर कर आई थीं। उन्हें हरदम यही कचोट रहती थी कि अगर हमारे पिता अंधे न होते तो राज उन्हीं को मिलता, और उनके बाद हमें मिलता। मगर अब चाचा के बाद चाचा के बेटे बड़े होकर हस्तिनापुर पर राज करेंगे और हम फिर छुटभइये हो जायेंगे। इस जलन में दुर्योधन वगैरह कौरव भाई अपने पांच चचेरे भाइयों से सदा कुढ़ते ही रहते थे। खेल में भी वह अपना बैर ही अधिक निकालते थे। पाण्डु के बड़े बेटे युधिष्ठिर शुरू से ही बड़े गम्भीर थे। मगर न भीम किसी से कम थे और न अर्जुन। भीम को कौरव बच्चे मोटूराम-मोटूराम कह कर चिढ़ाते थे और भीम झपट कर दो-चार चचेरे भाइयों को पकड़कर ऐसी पटकनी देते कि उनसे बस पें-पें चिल्लाते ही बनता। अर्जुन भी सेर का सवाया पड़ता था, और नकुल, सहदेव भी अपने भाइयों के समान ही बड़े हिम्मती और पैनी बुद्धि के थे। पाण्डु के पांच बेटे मिलकर धृतराष्ट्र के सौ बेटों से हर बात में कुछ सवाये ही बैठते थे। जब बुद्धि या बल से बस न चला तो दुर्योधन ने युक्ति से काम लेना सीखा। उनके साथ सारथी का बेटा कर्ण अर्जुन से किसी भी बात में कम नहीं था। इसीलिए दुर्योधन ने उससे दोस्ती कर ली। नौकर के बेटे से दोस्ती करना पुराने मत वाले लोगों की नजर में तनिक भी सम्मानजनक बात नहीं मानी जाती थी। परन्तु दुर्योधन कहता कि हमारा मित्र कर्ण कोई सचमुच ही तो सारथी का बेटा है नहीं। हमारे सारथी ने तो उसे डलिया में लेटा हुआ और नदी में बहते हुए पाया था। इस प्रकार कौरवों पाण्डवों के साथ कुन्ती रानी के कुंआरेपन का बेटा कर्ण भी खेलने-कूदने लगा। पाण्डव बेचारे यह नहीं जानते थे कि कर्ण उनका ही भाई है और कर्ण भी नहीं जानता था। अगर जानता होता तो भला उसे नीची हैसियत का क्षत्रिय माना जाता। बड़ों की भूल का बच्चों के जीवन पर भयानक प्रभाव पड़ता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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