महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शिक्षा का प्रबन्ध
एक दिन यह सब बच्चे गेंद खेल रहे थे। उनके समय में गेंद या तो कपड़े की होती थी या लकड़ी की। खेलते-खेलते एक खिलाड़ी का हाथ बहका और गेंद सामने न जाकर पीछे एक अंधे कुएं में गिर गया। बेचारे लड़कों का सारा मजा ही बिगड़ गया। कुएं के आस-पास खड़े वे आपस में अक्ल लड़ा रहे थे, पर कुएं से गेंद निकालने का कोई उपाय उन्हें सूझ नहीं रहा था। उस समय वहाँ से एक धर्नुधारी ब्राह्मण जा रहे थे। उन्होंने बच्चों से उनकी परेशानी का कारण पूछा। बच्चों ने बतलाया। उनकी परेशानी सुनकर ब्राह्मण हंसे। पूछा- तुम लोग किस वंश के राजकुमार हो। युधिष्ठिर ने आगे बढ़कर दुष्यंत और भरत से लेकर अपने भीष्म पितामह तक के नाम बड़ी शान से सुनाये। सुनकर ब्राह्मण ने कहा- ऐसे श्रेष्ठकुल में जन्म लेने वाले बच्चे इतना छोटा-सा काम भी नहीं कर सकते? देखो, मैं दिखलाता हूँ तुम्हें कि प्रतापी क्षत्रियों के बेटे किस युक्ति से गेंद निकालते हैं। उन्होंने लड़कों को किनारे हटाया, कुएं के पास खड़े होकर कन्धे से धनुष उतारा और बाण चढ़ाकर कुएं में फेंका। तीर कपड़े के गेंद में जाकर धंस गया। अब उस तीर के दूसरे सिरे को निशाना बनाकर दूसरा तीर लगाया। तीर एक में एक बिंधते चले गये। और छठा-सातवां तीर तो बिल्कुल कुएं की टूटी जगत से ही आ लगा। बस उन बाणों के डंडे को खींचकर उठाते चले गये और गेंद बाहर निकल आया। सब बच्चे बड़े प्रसन्न हुए। उनमें से बहुतों ने उनसे धर्नुविद्या सीखने की इच्छा प्रकट की। भीष्म जी बड़े ही समझदार और महान पुरुष थे। वे विद्या और गुण का मान करना जानते थे। उसी समय उठकर वे उस ब्राह्मण को ढूंढने के लिए निकल पड़े। वह ब्राह्मण पैदल नदी तक की ओर बढ़ रहा था। भीष्म पितामह उनके पास पहुँचे और हाथ जोड़कर पूछा- "क्या आपने ही मेरे पोतों का गेंद अंधे कुएं से निकाला था।" ब्राह्मण ने कहा- "हां, महाराज, परन्तु वह मामूली सा काम था। उसके लिए आप यदि मुझे पुरस्कार देने आये हो, तो साफ एक कह देता हूँ कि मैं उसे अपमान समझूंगा।" भीष्म पितामह हाथ जोड़कर बोले- "मैं आपको कुछ देने नहीं, बल्कि आपसे एक भीख मांगने आया हूँ। देवता, मैं समझ गया कि आप ही सुख्यात द्रोण धर्नुधर हैं। आप मेरे बच्चों के आचार्य बनें। आप से बढ़कर श्रेष्ठ गुरु उन्हें मिल ही नहीं सकता।" परम प्रतापी और यशस्वी भीष्म पितामह का विनय देखकर द्रोणाचार्य संतुष्ट हो गए। उन्होंने भीष्म के पोतों का गुरुभार ग्रहण किया। उन्होंने बड़ी लगन से अपने चेलों को धर्नुविद्या सिखलाना आरम्भ किया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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