(प्रथम स्कन्ध परिच्छेद)
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1.
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भगवन्महिमा का वर्णन
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1
|
2.
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भगवद्रूप तथा भगवद्भक्ति का वर्णन
|
6
|
3.
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भक्त-स्वरूप-वर्णन तथा भक्ति-प्रार्थना
|
11
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(द्वितीय स्कन्ध परिच्छेद)
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4.
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अष्टांगयोग तथा योग सिद्धि का वर्णन
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16
|
5.
|
विराट पुरुष की उत्पत्ति का वर्णन
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21
|
6.
|
विराट शरीर के जगत्स्वरूपत्व का वर्णन
|
26
|
7.
|
हिरण्य गर्भ की उत्पत्ति, तपश्चरण, वैकुण्ठस्वरूप, भगवत्स्वरूप-साक्षात्कार तथा भगवदनुग्रह का वर्णन
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31
|
(तृतीय स्कन्ध परिच्छेद)
|
8.
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प्रलयानन्तर जगत् की सृष्टि का वर्णन
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36
|
9.
|
जगत की सृष्टि का वर्णन
|
42
|
10.
|
सृष्टि-भेद-वर्णन
|
47
|
11.
|
सनकादि का वैकुण्ठ में प्रवेश, जय-विजय को शाप तथा हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष की उत्पत्ति
|
52
|
12.
|
वराहावतार और भूमि के उद्धार का वर्णन
|
56
|
13.
|
हिरण्याक्ष का युद्ध, उसका वध तथा यज्ञवराह की स्तुति
|
61
|
14.
|
कपिलोपाख्यान
|
66
|
15.
|
कपिलोपदेश
|
70
|
(चतुर्थ स्कन्ध परिच्छेद)
|
16.
|
नर-नारायण का चरित तथा दक्ष-यज्ञ का वर्णन
|
75
|
17.
|
ध्रुव-चरित
|
80
|
18.
|
पृथु-चरित
|
86
|
19.
|
दक्षोत्पति-वर्णन
|
91
|
(पञ्चम स्कन्ध परिच्छेद)
|
20.
|
ऋषभ-चरित
|
95
|
21.
|
जम्बूद्वीप आदि द्वीपों में भगवदुपासना की भिन्नता का वर्णन
|
99
|
(पष्ठ स्कन्ध परिच्छेद)
|
22.
|
अजामिलोपाख्यान
|
105
|
23.
|
चित्रकेतु का उपाख्यान तथा मरुद्गणों की उत्पत्ति
|
110
|
(सप्तम स्कन्ध परिच्छेद)
|
24.
|
प्रह्लाद-चरित में नृसिंह भगवान का प्राकट्य
|
116
|
25.
|
प्रह्लाद-चरित
|
121
|
(अष्टम स्कन्ध परिच्छेद)
|
26.
|
गजेन्द्र-मोक्ष
|
126
|
27.
|
अमृत-मन्थन
|
131
|
28.
|
अमृत-मन्थन
|
137
|
29.
|
मोहिनी-अवतार का वर्णन
|
140
|
30.
|
वामन-चरित
|
145
|
31.
|
वामन-चरित
|
150
|
32.
|
मत्स्यावतार का वर्णन
|
155
|
(नवम स्कन्ध परिच्छेद)
|
33.
|
अम्बरीष-चरित
|
158
|
34.
|
श्रीराम-चरित
|
163
|
35.
|
श्रीराम-चरित
|
168
|
36.
|
परशुराम-चरित
|
173
|
(दशम स्कन्ध परिच्छेद)
|
37.
|
कृष्णावतार के प्रसंग का वर्णन
|
179
|
38.
|
श्रीकृष्ण का गोकुल-गमन
|
184
|
39.
|
वसुदेवजी द्वारा योगमाया का लाया जाना
|
189
|
40.
|
पूतना-उद्धार
|
195
|
41.
|
पूतना के शव का दाह और गोपियों का आनन्द
|
198
|
42.
|
शकटासुर-उद्धार
|
201
|
43.
|
तृणावर्त-वध
|
205
|
44.
|
श्रीकृष्ण के जातकर्म आदि सस्कांर का वर्णन
|
210
|
45.
|
श्रीकृष्ण की बालक्रीड़ा
|
213
|
46.
|
विश्वरूप-प्रदर्शन
|
218
|
47.
|
श्रीकृष्ण का ओखली से बाँधा जाना
|
221
|
48.
|
यमलार्जुन-उद्धार
|
224
|
49.
|
वृन्दावन-गमन
|
227
|
50.
|
वत्सासुर तथा बकासुर का वध
|
230
|
51.
|
अघासुर-वध
|
235
|
52.
|
ब्रह्मा का मोह
|
240
|
53.
|
धेनुकासुर-वध
|
245
|
54.
|
कालियोपाख्यान
|
248
|
55.
|
कालियोपाख्यान
|
253
|
56.
|
कालिय पर कृपा तथा श्रीकृष्ण द्वारा दावानल का पान
|
256
|
57.
|
प्रलम्बासुर का वध
|
260
|
58.
|
इषीक-वन में गौओं का दावानल से उद्धार
|
264
|
59.
|
वेणुगीत और गोपियों का अनुराग
|
269
|
60.
|
चीरहरण-लीला
|
272
|
61.
|
द्विज-पत्नियों का मोक्ष
|
276
|
62.
|
इन्द्रयाग-निवारण
|
281
|
63.
|
गोवर्धन-धारण
|
286
|
64.
|
गोविन्द पद पर अभिषेक और नन्दजी का वरुण लोक से आनयन
|
291
|
65.
|
रासक्रीडा के लिये गोपियों का आगमन
|
295
|
66.
|
धर्मोपदेश तथा क्रीडा
|
300
|
67.
|
श्रीकृष्ण का अन्तर्धान, गोपियों द्वारा उनका अन्वेषण तथा फिर उनका प्राकट्य
|
303
|
68.
|
गोपियों की आनन्द परवशता, प्रणय-कोप एवं भगवान द्वारा दी गयी सान्त्वना
|
307
|
69.
|
रासक्रीडा
|
310
|
70.
|
सुदर्शन का शाप से उद्धार तथा शखंचूड़ और वृषभासुर का वध
|
316
|
71.
|
केशी और व्योमासुर का वध
|
321
|
72.
|
अक्रूर का आगमन
|
325
|
73.
|
मथुरापुरी की यात्रा
|
331
|
74.
|
भगवान का मथुरा में प्रवेश, रजक-निग्रह, दर्जी, माली और कुब्जा पर कृपा तथा धनुर्भंग
|
334
|
75.
|
कुवलयापीड, चाणूर, मुष्टिक और भाइयों सहित कंस का वध तथा उग्रसेन को राज्यप्राप्ति
|
339
|
76.
|
श्रीकृष्ण और बलराम का गुरुकुल-वास तथा उद्धव का दौत्य कर्म
|
344
|
77.
|
कुब्जा की कामनापूर्ति, अक्रूर के घर जाना, जरासंध आदि से युद्ध, कालयवन-उद्धार और मुचुकुन्द पर कृपा
|
350
|
78.
|
बलरामजी का विवाह तथा श्रीकृष्ण का विप्र द्वारा संदेश पाकर रुक्मिणी-स्वयंवर में कुण्डिपुर जाना
|
356
|
79.
|
रुक्मिणी का हरण तथा परिणय
|
359
|
80.
|
स्यमन्तकोपाख्यान
|
366
|
81.
|
सुभद्रा-हरण, श्रीकृष्ण के अन्य विवाहों की कथा और नरकासुर का उद्धार
|
369
|
82.
|
ऊषा-परिणय, बाणासुर-युद्ध और नृग के शाप मोक्ष का वर्णन
|
374
|
83.
|
पौण्ड्रक-वध, काशीपुरी-दहन और बलभद्रजी के प्रताप का वर्णन
|
379
|
84.
|
समन्तपञ्चक यात्रा-वर्णन
|
384
|
85.
|
जरासंध-वध तथा युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ का वर्णन
|
388
|
86.
|
शाल्व और दन्तवक्त्र का उद्धार तथा महाभारत-युद्ध का वर्णन
|
394
|
87.
|
सुदामा-चरित
|
400
|
88.
|
देवकी के मरे हुए पुत्रों को वापस लाना, श्रुतदेव और बहुलाश्वर कृपा तथा अर्जुन का गर्व-हरण
|
403
|
89.
|
वृकासुर-वध तथा त्रिदेवों में विष्णु की श्रेष्ठता का वर्णन
|
409
|
90.
|
आगमों का भगवद्विषयक तात्पर्य-निरूपण
|
414
|
(एकादश स्कन्ध परिच्छेद)
|
91.
|
नि:श्रेयसप्रदायिनी भक्ति का स्वरूप-वर्णन
|
420
|
92.
|
कर्ममिश्रित भक्ति के स्वरूप का वर्णन
|
425
|
93.
|
पचीस गुरुओं की शिक्षा का वर्णन
|
430
|
94.
|
तत्त्व ज्ञानोत्पत्ति प्रकार, बन्ध-मोक्ष स्वरूप तथा अभक्तनिन्दापूर्वक भक्ति-प्रार्थना
|
436
|
95.
|
भक्ति द्वारा विशुद्ध चित्त की ही भगवत्स्वरूप-ध्यानयोग्यता का वर्णन
|
441
|
96.
|
भगवद्विभूति तथा कर्म, ज्ञान और भक्ति के अधिकारी का वर्णन एवं चित्तोपशम के लिये प्रार्थना
|
446
|
(द्वादश स्कन्ध परिच्छेद)
|
97.
|
उत्तम भक्ति के लिये प्रार्थना और मार्कण्डेय-चरित
|
451
|
98.
|
ब्रह्म से जगत की उत्पत्ति आदि का निरूपण
|
456
|
99.
|
भगवन्महिमा का वर्णन
|
426
|
100.
|
भगवत-केशादि-पादान्त रूप का वर्णन
|
467
|
101.
|
अंतिम पृष्ठ
|
472
|