भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
गणपति-तत्त्व
गणेश जी ‘चतुर्भुज’ भी हैं; क्योंकि देवता, नर, असुर और नाग, इन चारों का स्थापन करने वाले हैं; एवं चतुर्वगं, चतुर्वेदादि के भी स्थापक है। तथा च-
वे अपने चारों हस्तों में पाश, अंकुश, वर और अभय भक्तानुग्रहार्थ धारण करते हैं। भक्तों के मोहरूपी शत्रु को फँसाने के लिए ‘पाश’ तथा सर्वजगन्नियन्तृ रूप ब्रह्म ‘अंकुश’ है। दुष्टों को नाश करने वाला ब्रह्म ‘दन्त’ और सर्वकामनाओं को पूर्ण करने वाला ब्रह्म ‘वर’ है। गणपति भगवान का वाहन ‘मूषक’ है। ‘मूषक’ सर्वान्तर्यामी, सर्वप्राणियों के हृदयरूप बिल में रहने वाला, सर्वजन्तुओं के भोगों को भोगने-वाला ही है। वह चोर भी है, क्योंकि जन्तुओं के अज्ञात सर्वस्व को हरने वाला है। उसको कोई जानता नहीं, क्योंकि माया से गूढ़रूप अन्तर्यामी ही समस्त भोगों को भोगता है। इसीलिये “भोक्तारं सर्वतपसाम्” कहा है। ‘मुष स्तेये’ इस धातु से मूषक शब्द बनता है। मूषक जैसे प्राणियों की सर्वभोग्य वस्तुओं को चुराकर भी पुण्य-पापों से विवर्जित ही रहता है, वैसे ही मायागूढ़ सर्वान्तर्यामी भी सर्व भोग्य को भोगता हुआ पुण्य-पापों से विवर्जित है। वह सर्वान्तर्यामी गणपति की सेवा के लिये मूषक रूप धारण कर वाहन बना-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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