विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
सर्वसिद्धान्त-समन्वय
यह बात विदितवेदितव्य महानुभावों से तिरोहित नहीं है कि अनन्तकोटि-ब्रह्मण्डगत विविधवैचित्र्योपेत, भोग्यभोक्तृकर्तृकरणादिनिर्माणपटीयसी, अचिन्त्याऽनिर्वाच्यकार्यानुमेयस्वानुरूप्रुपा, श्रुतिसमाधिगम्य-याथातथ्यभावा, अवान्तराऽनन्तशक्तिकेन्द्रभूता महाशक्ति जिन प्रत्यस्तमिताऽशेषविशेष मनोवचनातीत प्रज्ञानानन्दघन स्वमहिमप्रतिष्ठ भगवान के आश्रित होकर उन्हीं की महिमा से सत्ता स्फूर्ति प्राप्त करके सावधानी से जगन्नाट्यनियन्त्री होती हुई भी प्रभु की भ्रुकुटिविलासानुविधायिनी होती है, उन सकल अकल्याणगुणगणप्रत्यनीक-निखिल-कल्याण-गुणगण-निलय, अचिन्त्यानन्तसौन्दर्यमाधुर्यसुधासिन्धु नटनागर में समस्त परस्पर-विरुद्ध धर्मों का सामंजस्य होते हुए भी स्वमति-प्रभव-तर्क एवं स्वाभिमत-शास्त्र तदर्थ विवेचनादि द्वारा नाना प्रकार का विकल्प कुछ काल से ही नहीं वरन् अनादिकाल से करते हुए परीक्षक-दार्शनिक-वृन्द श्रवणया दृष्टिगोचर होते आये हैं। उन दार्शनिकों का, पारस्परिक अनेक प्रभेद होते हुए भी, भारतीय भाषा में वैदिक तथा अवैदिक शब्द से निर्देश किया जता है। वेद-तन्मूलाशास्त्रानपेक्षव्यक्ति-विशेष-निर्मित शास्त्र एवं स्वमतिप्रभव तर्कादि द्वारा तत्त्वों को निर्धारण करने वाले अवैदिक कहलाते हैं। तद्विपरीत भ्रमप्रमाद-विप्रलिप्सा-करणापाटवादि पुरुष स्वभाव-सुलभदोषसंरार्गरहित अपौरुषेय वेद तन्मूलशास्त्र तथा तत्संस्कार-संस्कृत प्रज्ञातन्त्र तत्त्व निर्धारण एवं तत्प्राप्त्यर्थ प्रयत्न करने वाले वैदिक कहलाते हैं। यद्यपि “भूतं भव्यंच यत् किनञ्चित् सर्व वेदात् प्रसिद्ध्यति” इस अभियुक्तोक्ति से तथा सूत्ररूप से अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमयाद्यात्मवाद, शून्यवाद इत्यादि वेदों में पाये जाते हैं तथापि न तो वे वाद सर्वथा सिद्धान्तरूप से वेदों में माने ही गये हैं और न तत्तद्वादाभिमानी अपने वादों के वैदिकत्व में आग्रह करते या गौरव ही मानते हैं। अतः उनके वैदिकत्वाऽवैदिकत्व में कोई विवाद नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज