भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
अवतारमीमांसा
अवतार के सम्बन्ध में आजकल बहुत सी शंकाएँ उठायी जाती है। कहा जाता है कि “यदि किसी एक विशिष्ट आकार को भगवान का नित्य स्वरूप माना जाय, तो उस आकार को निर्विकार मानना होगा, परन्तु किसी साकार को नित्य कहना दुर्घट ही है, अतः व्यावहारिक जगत में विभिन्न दैहिक आकार में भगवान का अवतार असमंजयस है। यह धारणा कैसे कर सकते हैं कि भगवान उनके स्वभावगत नित्य, अच्युत स्वरूप को कभी-कभी परित्याग करते हैं? जन्म-मृत्यु के अधीन नये-नये आकारों को ग्रहण किया करते हैं? सर्वशक्तिमत्ता के आधार पर भी ऐसी कल्पना नहीं हो सकती। अवतारों के आकार परस्पर भिन्न और अपक्षयादि से युक्त पाये जाते हैं, अतः अपने नित्य रूप के साथ ही भगवान का जगत में अवतरण होता है, यह भी नहीं कहा जा सकता।” परन्तु, विचार करने पर उपर्युक्त बातें बेतुकी प्रतीत होती हैं। सर्वशक्तिमान भगवान एक रूप या अनेक रूप से भिन्न-भिन्न काल में या एक काल में प्रवृत्त हो सकते हैं। उनके आविर्भाव-तिरोभाव को ही अज्ञ लोग उत्पत्ति और नाश मान बैठते हैं। भगवान के शरीर में किसी भी तरह का विकार नहीं माना जा सकता। जैसे मायावी के अंग में माया से अनेक विकारों का स्फुरण हो सकता है, वैसे ही भगवान में भी कल्पना की जा सकती है। भगवान का स्वाभाविक पारमार्थिक स्वरूप निराकार, निर्विकार है। फिर भी भगवान अनन्तब्रह्माण्डोत्पादिनी अनिर्वचनीय महाशक्ति के आधार होने से सगुण और कारण हैं। उसी शक्ति के योग से भगवान सगुण, साकार, एकरूप, अनेकरूप में प्रतीत होते हैं। यही बात “अजायमानो बहुधा व्यजायत”, “इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते” (परमात्मा अज होकर भी अनेक रूप से जायमान होता है, इन्द्र-परमात्मा माया से अनेकरूप होकर प्रतीत होता है) इत्यादि श्रुतियों से सिद्ध है। कहा जाता है कि निराकार परमात्मा साकार किस प्रकार बनता है? वह शरीरी जीवरूप से स्वयं परिणाम को प्राप्त होता है या विशिष्ट मानस भौतिक देह की सृष्टि करता है और उसमें आत्मरूप से प्रवेश करता है किंवा अपनी विशेष शक्ति और ज्ञान को किसी विशेष शरीरधारी के जीवन में अभिव्यक्त करता है, जिससे कि वह उसके साथ तादात्म्यापन्न होकर कार्य करता है? इनमें पहला पक्ष ठीक नहीं है, क्योंकि देशकालातीत, समस्त विकार और सीमा से रहित, पूर्ण आध्यात्मिक पुरुष किस प्रकार स्वयं देशकाल-सीमायुक्त और विभिन्न विकाराधीन किसी शरीर विशेष में परिणाम को प्राप्त होता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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