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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरामभद्र का ध्यान
भावुकजन हृदयेश्वरी श्रीजनकनन्दिनी सहित श्रीरामचन्द्र का ध्यान करते हैं। अद्भुत अनन्त दिव्य दीप्तियों से शोभित, नवाम्बुद श्यामल अंग मानो सनेहसाने सुषमाश्रृंगार सार-सर्वस्व से ही निर्मित हुए हैं। श्रीअंग में एक-एक रोम के अपार सौन्दर्य, माधुर्य, लावण्य पर अनन्तकोटि कन्दर्प और अपरिगणित निर्मल अमृतमय निष्कलंक पूर्णचन्द्र लज्जित होते हैं। श्रीरामचन्द्र सन्तों के हृदयकमल को प्रफुल्लित करने वाले अलौकिक दिव्य सूर्य हैं। किंवा श्रीजनकनन्दिनी के हृदयस्थ पूर्णानुराग रससारसागर से समुद्भूत अद्भुत अलौकिक निष्कलंक पूर्णचन्द्र हैं। श्यामल तमालसरीखरी अंग की दिव्यदीप्ति हैं। किंवा श्यामामृतमहोदधिसारसमुद्भूत श्यामलमहोमयचन्द्र के समान श्रीअंग की कान्ति है। अथवा श्रृंगार-रस-सार-सरोवर-समुद्भूत श्यामलता गर्भित सुवर्णवर्ण पंकज के समान स्वरूप है। जैसे मयूर की नीलपीतमिश्रित विलक्षण छवि होती है, वैसे ही उससे भी शतकोटि गुणित आकर्षण चमकीली श्यामलता और अद्भुत आकर्षण-गुण-सम्पन्नता प्रभु के श्रीअंग में निहित है। किंवा जैसे वैदूर्यमणि की नील पीत हरित नानावर्णमिश्रित दीप्तिमयी छवि होती है वैसे ही प्रभु की मंगलमयी मूर्ति में अलक्ष्य और अवितर्क्य एवं अद्भुत श्यामल हरित पीत दीप्तियों का सामंजस्य है। यह गौर तेज श्रीआह्लादिनी शक्तिरूपा प्रभु की प्राणेश्वरी का है और श्यामल तेज प्रभु का ही है। हरित तेज मानों दोनों तेजों के सम्मिश्रण से आविर्भूत हुआ है एंव महेन्द्रनीलमणि के जीवनधन नीलमणीन्द्र से भी शतकोटिगुणित अधिक अद्भुत श्यामल महोमयी प्रभु की श्रीमूर्ति में कुंकुम-मिश्रित हरिचन्दन के विलिम्पन हैं। श्यामल अंग पर सूक्ष्म पीतिमा ऐसी शोभित होती है, जैसे दिव्य नीलमणीन्द्र पर शरद ऋतु के चन्द्रमा की शीतल सुकोमल अमृतमयी चन्द्रिका छिटकी हो। सौन्दर्य माधुर्य-सुधा से भरपूर प्रेमानन्दरस बरसने वाले लोकोत्तर अभिनव नील नीरद से भी शतकोटिगुणित प्रभु के मंगलमय श्रीअंग में सौन्दर्य, माधुर्य, सौरस्य सुधा है, जिससे पारावारविहीन अलौकिक प्रेमानन्दामृत की वर्षा होती है। जब नीर प्रदान करने वाले नव जलधर में दीप्तिमत्ता, विशिष्ट श्यामलता, गम्भीरता तथा तापापनोदकता है, तब फिर प्रभु के श्रीअंग में अद्भुत श्यामलता, गम्भीरता एवं तापापनोदकता का कहना ही क्या है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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