भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
पीठ-रहस्य
कुछ दिन हुए एक विदुषी पाश्चात्य महिला ने इस आशय के कुछ प्रश्न किये थे कि “51 तीर्थ होते हैं, इस 51 संख्या का क्या अभिप्राय है? सती के शरीर के 51 टुकड़े हुए, जहाँ-जहाँ एक टुकड़ा गिरा वहाँ-वहाँ एक मन्दिर, एक तीर्थ बना। यहाँ सती के शरीर के टुकड़े होने का अभिप्राय क्या है, यह कथा किस तत्त्व को समझाने के लिये बतलायी गयी है? विष्णु ने चक्र से सती का शव काट दिया, ऐसा उन्होंने क्यों किया? पार्वती का शव शिव ले जाते हैं, उनके दुःख से पृथ्वी नष्ट हो जाती है, इन बातों का क्या अभिप्राय है? यह घटना किस तत्त्व की, किस सिद्धान्त की द्योतक है? शिव का अपमान होने से सती मर गयी, यह क्यों? क्या लज्जा से? सती कौन है? उनकी मृत्यु किस तत्त्व के नष्ट हो जाने की द्योतक है? सती का पुनरुज्जीवन कब और कैसे होता है?” उपर्युक्त विषयों पर कहना यही है कि अनन्त शक्तियों की केन्द्रभूता महाशक्ति ही ‘सती’ है, अनन्त ब्रह्माण्डाधीश्वर शुद्ध ब्रह्म ही ‘शंकर’ है। ब्रह्म से ही माया-सम्बन्ध के द्वारा सृष्टि हुई है। ब्रह्म ने दक्षादि प्रजापतियों को निर्माण कर सृष्टि के लिये नियुक्त किया। दक्ष ने भी मानसी सृष्टि-शक्ति से बहुत सी सन्तानें बनायीं। परन्तु वे सबकी सब श्रीनारद के उपदेश से विरक्त हो गयीं। ब्रह्मादि सभी चिन्तित थे। किसी समय ब्रह्मर से एक परम मनोरम पुरुष उत्पन्न हुआ। उसके सौन्दय्यादि गुणों पर सभी लोग मोहित हो उठे। ब्रह्मा ने उसे काम, कन्दर्प, पुष्पधन्वा आदि नाम से सम्बोधित किया। दत्तकन्या रति के साथ उसका उद्वाह हुआ। वसन्त, मलय, कोकिला, प्रमदा आदि उसको सहायक मिले। ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया कि तुम्हारे हर्षण, मोहन, मादन, शोषण आदि पंच पुष्पबाण अमोघ होंगे। मैं, विष्णु, रुद्र, ऋषि, मुनि सभी तुम्हारे वशीभूत होंगे, तुम राग उत्पन्न कर प्राणियों को सृष्टि बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करो। काम ने वर प्राप्त कर वहीं उसकी परीक्षा करनी चाही। उसी क्षण दैवात ब्रह्मा से एक अत्यन्त लावण्यवती सन्ध्या नाम की कन्या उत्पन्न हुई। काम ने अपने पुष्पमय धनुष को तानकर ब्रह्मा पर बाण चलाया। ब्रह्मा का मन विचलित हो उठा और वे सन्ध्या पर मोहित हो उठे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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