- भीमसेन के द्वारा क्रोधवश नामक राक्षसों की पराजय, द्रौपदी के लिये भीमसेन का सौगन्धिक कमलों का संग्रह किया जाता है और अब भयंकर उत्पात देखकर युधिष्ठिर आदि की चिन्ता, सबका गन्धमादन पर्वत पर सौगन्धिक वन में भीमसेन के पास जाने के बारे में महाभारत वनपर्व के 'तीर्थयात्रापर्व' के अंतर्गत अध्याय 155 में बताया गया है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है[1]-
विषय सूची
युधिष्ठिर द्वारा भीम की चिंता
वैशम्पायन जी कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर भीमसेन ने अनेक प्रकार के बहुमूल्य, दिव्य और निर्मल बहुत से सौगन्धिक कमल संग्रहीत कर लिये। इसी समय गन्धमादन पर्वत पर तीव्र वेग से बड़े जोर की आंधी उठी, जो नीचे कंकड़-बालू की वर्षा करने वाली थी। उसका स्पर्श तीक्ष्ण था। वह किसी भारी संग्राम की सूचना देने वाली थी। वज्र की गड़गडाहट के साथ अत्यन्त भयदायक भारी उल्कापात होने लगा। सूर्य अन्धकार से आवृत हो प्रभाशून्य हो गये। उनकी किरणें आच्छादित हो गयीं। जिस समय भीम राक्षसों के युद्धमें भारी पराक्रम दिखा रहे थे, उस समय पृथ्वी हिलने लगी, आकाश में भीषण गर्जना होने लगी और धूल की वर्षा आरम्भ हो गयी। सम्पूर्ण दिशाएं लाल हो गयीं, मृग और पक्षी कठोर शब्द करने लगे, सारा जगत अन्धकार से आच्छन्न हो गया और किसी को कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। इसके सिवा और भी बहुत-से भयानक उत्पात वहाँ प्रकट होने लगा। यह अद्भुत घटना लोगों को पराजित कर सकेगा ? रणोन्मत पाण्डवो! तुम्हारा भला हो, तुम युद्ध के लिये तैयार हो जाओ। मैं जैसे लक्षण देख रहा हूं, उससे पता लगता है कि हमारे लिये पराक्रम दिखाने का समय अत्यन्त निकट आ गया है।' ऐसा कहकर राजा युधिष्ठिर ने चारों ओर दृष्टिपात किया। जब भीम नहीं दिखायी दिये, तब शत्रुदमन धर्मनन्दन युधिष्ठिर, द्रौपदी पास ही बैठे हुए नकुल सहदेव से अपने भाई भीम के सम्बन्ध में, जो रण-भूमि में भयानक कर्म करने वाले थे, पूछा- पांचालराजकुमारी! भीमसेन कहां है ? क्या वे कोई काम करना चाहते हैं ? 'अथवा साहसप्रेमी वीरवर भीम ने कोई साहस को कार्य तो नहीं कर डाला ? यह अकस्मात प्रकट हुए उत्पात महान युद्ध के सूचक हैं। 'ये चारों ओर तीव्र भय का प्रदर्शन करते हुए प्रकट हो रहे हैं।
सौगन्धिक वन की ओर प्रस्थान
'धर्मराज युधिष्ठिरा को ऐसी बातें करते देख मनोहर मुस्कानवाली मनस्विनी पतिप्रिया द्रौपदी ने उनका प्रिय करने की इच्छा से इस प्रकार उत्तर दिया- द्रौपदी बोली- राजन! आज तो सौगन्धिक पुष्प वायु उड़ा लायी थी, उसे मैंने प्रसन्नतापूर्वक भीमसेन को दिया और उन वीर-शिरोमणि से यह भी कहा कि 'यदि इसी तरह के बहुत-से पुष्प तुम्हें दिखायी दें, तो उन सब को लेकर शीघ्र यहाँ लौट आना'। महाराज! मालूम होता है कि वे महाबाहु पाण्डुकुमार निश्चय ही मेरा प्रिय करने के लिये उन्हीं फूलों को लाने के निमित यहाँ से पूर्वातर दिशा को गये हैं। द्रौपदी ऐसा कहने पर राजा युधिष्ठिरने नकुल-सहदेव से इस प्रकार कहा- 'अब हम लोग भी एक साथ शीघ्र ही उसी मार्ग पर चलें' जिससे भीमसेन गये हैं। 'देवताओं समान तेजस्वी घटोत्कच! तुम्हारे साथी राक्षस लोग इन ब्राह्मणों को, जो जैसे थके और दुर्बल हों, उस के अनुसार कंधे पर बिठाकर ले चले और तुम भी द्रौपदी को ले चलो। 'यह स्पष्ट जान पड़ता है कि भीमसेन यहाँ से बहुत दूर चले गये हैं, मेरा यही विश्वास है। क्योंकि उनको गये बहुत समय हो गया है तथा वे वेग में वायु के समान हैं और इस पृथ्वी को लांघने में गरुड़ के समान शीघ्रगामी हैं। वे आकाश में छलांग मार सकते हैं और इच्छानुसार कहीं भी कूद सकते है। 'निशाचरो! भीमसेन ब्रह्मावादी सिद्धों का कुछ अपराध न करके इसके पहले ही तुम्हारे प्रभाव से हम उन्हें ढूंढ़ निकालें'। जनमेजय! तब कुबेर के उस सरोवर का पता जानने वाले उन घटोत्कच आदि सब राक्षसों ने 'तथास्तु' कहकर पाण्डवों तथा उन अनेकानेक ब्राह्मणों को कंधेपर बैठाकर लोमश जी के साथ वहाँ से प्रसन्नतापूर्वक प्रस्थान किया। उन सबने शीघ्रतापूर्वक जाकर सुन्दर वनस्थली से सुशोभित वह अत्यन्त मनोरम सरोवर देखा, जिसमें सौगन्धिक कमल थे।
युधिष्ठिर आदि की भीम से भेंट
उसके तटपर मनस्वी महामना भीम को तथा उनको द्वारा मारे गये बड़े-बड़े नेत्रों वाले यक्षों को भी देखा,-जिनके शरीर, नेत्र, भुजाएं और जांघे छिन्न-छिन्न हो गयी थीं, गर्दन कुचल दी गयी थी, महात्मा भीम उस सरोवर के तटपर खड़े थे। उनका क्रोध शान्त नहीं हुआ था। उनकी आंखे स्तब्ध हो रही थी। वे दोनों हाथों से गदा उठाये और दांतों से ओठ दबाये नदी के तटपर खड़े थे। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता था, मानो प्रजा के संहारकाल में दण्ड हाथ में लिये यमराज खड़े हों। भीमसेन को उस अवस्था में देखकर धर्मराज ने उन्हें बार-बार हृदय से लगाया। और मधुर वाणी में कहा- 'कुन्तीनन्दन! यह तुमने क्या कर डाला ? तुम्हारा कल्याण हो। खेद के साथ कहना पड़ता है कि तुम्हारा यह कार्य साहसपूर्ण है और देवताओं के लिये अप्रिय है। 'यदि मेरा प्रिय करना चाहते हो तो फिर ऐसा काम न करना। 'भीमसेन को ऐसा उपदेश देकर उन्होंने पूर्वाक्त सौगन्धिक तटपर इधर-उधर भ्रमण करने लगे। इसी समय शिलाओं को आयुधरूप में ग्रहण किये, बहुत-से विशालकाय उद्यानरक्षक वहाँ प्रकट हो गये। भारत! उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर, महर्षि लोमश, नकुल-सहदेव तथा अन्यान्य श्रेष्ठ ब्राह्मणों को विनयपूर्वक नतमस्तक होकर प्रणाम किया।
फिर धर्मराज युधिष्ठिर ने उन्हें सान्तवना दी। इससे वे निशाचर राक्षस प्रसन्न हो गये। तदनन्तर वे कुरु-प्रवर पाण्डव धनाध्यक्ष कुबेर की जानकारी में कुछ काल तक वहाँ आनन्दपूर्वक टिके रहे और गन्धमादन पर्वत के शिखरों पर अर्जुन के आगमन की प्रतीक्षा करते रहे। [2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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आजगरपर्व
भीमसेन की युधिष्ठिर से बातचीत
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| दुर्योधन द्वारा कर्ण और शकुनि की मंत्रणा स्वीकार करना
| दुर्योधन आदि को द्वैतवन जाने हेतु धृतराष्ट्र की अनुमति
| द्वैतवन में दुर्योधन के सैनिकों तथा गंधर्वों में कटु संवाद
| कौरवों का गंधर्वों से युद्ध और कर्ण की पराजय
| गंधर्वों द्वारा दुर्योधन आदि की पराजय और उनका अपहरण
| कौरवों को छुड़ाने हेतु युधिष्ठिर का भीमसेन को आदेश
| पांडवों का गंधर्वों के साथ युद्ध
| पांडवों द्वारा गंधर्वों की पराजय
| चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिर संवाद और दुर्योधन का छुटकारा
| दुर्योधन का मार्ग में ठहरना और कर्ण द्वारा उसका अभिनन्दन
| दुर्योधन का कर्ण को अपनी पराजय का समाचार बताना
| दुर्योधन द्वारा अपनी ग्लानि का वर्णन तथा आमरण अनशन का निश्चय
| दुर्योधन द्वारा दु:शासन को राजा बनने का आदेश
| कर्ण द्वारा समझाने पर भी दुर्योधन का आमरण अनशन का निश्चय
| दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना
| दैत्यों का दुर्योधन को समझाना
| दुर्योधन द्वारा अनशन की समाप्ति और हस्तिनापुर प्रस्थान
| भीष्म का दुर्योधन को पांडवों से संधि करने का प्रस्ताव
| कर्ण के क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजय के लिए प्रस्थान
| कर्ण द्वारा सारी पृथ्वी पर दिग्विजय
| कर्ण की दिग्विजय पर हस्तिनापुर में उसका सत्कार
| दुर्योधन द्वारा वैष्णव यज्ञ की तैयारी
| दुर्योधन के यज्ञ का आरम्भ तथा समाप्ति
| कर्ण द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा
| युधिष्ठिर की चिन्ता तथा दुर्योधन की शासननीति
मृगस्वप्नोद्भव पर्व
पांडवों का काम्यकवन में गमन
व्रीहिद्रौणिक पर्व
व्यास का पांडवों के पास आगमन
| व्यास का पांडवों से दान की महत्ता का वर्णन
| दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल के दानधर्म एवं धैर्य की परीक्षा
| महर्षि मुद्गल का देवदूत से प्रश्न करना
| देवदूत द्वारा स्वर्गलोक के गुण-दोष तथा विष्णुधाम का वर्णन
| व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अपने आश्रम लौटना
द्रौपदीहरण पर्व
दुर्योधन द्वारा दुर्वासा का आतिथ्य सत्कार
| दुर्योधन द्वारा दुर्वासा को प्रसन्न करना और युधिष्ठिर के पास भेजना
| द्रौपदी के स्मरण करने पर श्रीकृष्ण का प्रकट होना
| कृष्ण द्वारा पांडवों को दुर्वासा के भय से मुक्त करना
| जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना
| कोटिकास्य का द्रौपदी को जयद्रथ का परिचय देना
| द्रौपदी का कोटिकास्य को उत्तर
| जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद
| जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण
| पांडवों द्वारा जयद्रथ का पीछा करना
| द्रौपदी का जयद्रथ से पांडवों के पराक्रम का वर्णन
| पांडवों द्वारा जयद्रथ की सेना का संहार
| युधिष्ठिर का द्रौपदी और नकुल-सहदेव के साथ आश्रम पर लौटना
| भीम और अर्जुन द्वारा वन में जयद्रथ का पीछा करना
जयद्रथविमोक्षण पर्व
भीम द्वारा जयद्रथ को बंदी बनाकर युधिष्ठिर के समक्ष उपस्थित करना
| शिव द्वारा जयद्रथ से श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
रामोपाख्यान पर्व
युधिष्ठिर का अपनी दुरावस्था पर मार्कडेण्य मुनि से प्रश्न करना
| राम आदि का जन्म तथा कुबेर की उत्पत्ति का वर्णन
| रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति
| कुबेर का रावण को शाप देना
| देवताओं का रीछ और वानर योनि में संतान उत्पन्न करना
| राम के राज्याभिषेक की तैयारी
| राम का वन को प्रस्थान
| भरत की चित्रकूट यात्रा
| राम द्वारा राक्षसों का संहार तथा रावण-शूर्पणखा वार्तालाप
| राम द्वारा मारीच का वध
| रावण द्वारा सीता का अपहरण
| रावण द्वारा जटायु वध एवं राम द्वारा उसका अंत्येष्टि संस्कार
| राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध
| राम और सुग्रीव की मित्रता
| राम द्वारा बाली का वध
| अशोक वाटिका में सीता को त्रिजटा का आश्वासन
| रावण और सीता का संवाद
| राम का सुग्रीव पर कोप
| सुग्रीव का सीता की खोज में वानरों को भेजना
| हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना
| वानर सेना का संगठन
| नल द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण
| विभीषण का अभिषेक तथा वानर सेना का लंका की सीमा में प्रवेश
| अंगद का रावण के पास जाकर राम का संदेश सुनाना
| राक्षसों और वानरों का घोर संग्राम
| राम और रावण की सेनाओं का द्वन्द्वयुद्ध
| प्रहस्त और धूम्राक्ष का वध
| रावण द्वारा युद्ध हेतु कुम्भकर्ण को जगाना
| कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध
| इन्द्रजित का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा
| राम-लक्ष्मण का अभिमंत्रित जल से नेत्र धोना
| लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित का वध
| रावण का सीता के वध हेतु उद्यत होना
| राम और रावण का युद्ध तथा रावण का वध
| राम का सीता के प्रति संदेह
| देवताओं द्वारा सीता की शुद्धि का समर्थन
| राम का आयोध्या आगमन तथा राज्याभिषेक
| मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को आश्वासन
पतिव्रतामाहात्म्य पर्व
राजा अश्वपति को सावित्री नामक कन्या की प्राप्ति
| सावित्री का पतिवरण के लिए विभिन्न देशों में भ्रमण
| सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने का दृढ़ निश्चय
| सावित्री और सत्यवान का विवाह
| सावित्री की व्रतचर्या
| सावित्री का सत्यवान के साथ वन में जाना
| सावित्री और यम का संवाद
| यमराज का सत्यवान को पुन: जीवित करना
| सावित्री और सत्यवान का वार्तालाप
| राजा द्युमत्सेन की सत्यवान के लिए चिन्ता
| सावित्री द्वारा यम से प्राप्त वरों का वर्णन
| द्युमत्सेन का राज्याभिषेक तथा सावित्री को सौ पुत्रों और सौ भाइयों की प्राप्ति
कुण्डलाहरण पर्व
सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने के लिए सचेत करना
| कर्ण का इन्द्र को कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय करना
| सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने का आदेश
| कर्ण का इन्द्र से शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देने का निश्चय
| कुन्तिभोज के यहाँ दुर्वासा का आगमन
| कुन्तुभोज द्वारा दुर्वासा की सेवा हेतु पृथा को उपदेश देना
| कुन्ती का पिता से वार्तालाप एवं ब्राह्मण की परिचर्या
| कुन्ती को तपस्वी ब्राह्मण द्वारा मंत्र का उपदेश
| कुन्ती द्वारा सूर्य देवता का आवाहन
| कुन्ती-सूर्य संवाद
| सूर्य द्वारा कुन्ती के उदर में गर्भस्थापन
| कर्ण का जन्म और कुन्ती का विलाप
| अधिरथ सूत और उसकी पत्नी राधा को बालक कर्ण की प्राप्ति
| कर्ण की शिक्षा-दीक्षा और उसके पास इन्द्र का आगमन
| कर्ण को इन्द्र से अमोघ शक्ति की प्राप्ति
| इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना
आरणेय पर्व
ब्राह्मण की अरणि एवं मन्थन काष्ठ विषयक प्रसंग
| युधिष्ठिर द्वारा नकुल को जल लाने का आदेश
| नकुल आदि चार भाइयों का सरोवर तट पर अचेत होना
| यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद
| यक्ष और युधिष्ठिर का प्रश्नोत्तर
| युधिष्ठिर के उत्तर से संतुष्ट यक्ष द्वारा चारों भाइयों को जीवित करना
| यक्ष का धर्म के रूप में प्रकट होकर युधिष्ठिर को वरदान देना
| युधिष्ठिर को महर्षि धौम्य द्वारा समझाया जाना
| भीमसेन का उत्साह और पांडवों का परस्पर परामर्श
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