दधीच का अस्थिदान एवं वज्र निर्माण

महाभारत वनपर्व के 'तीर्थयात्रापर्व' के अंतर्गत अध्याय 100 में वृत्रासुर से त्रस्‍त देवताओं को महर्षि दधीचि का अस्थिदान एवं वज्र का निर्माण के बारे में बताया गया है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है[1]-

वृत्रासुर से त्रस्‍त देवताओं को महर्षि दधीच का अस्थिदान एवं वज्र का निर्माण

देवराज इन्‍द्र की ब्रह्माजी से भेंट

युधिष्ठिर ने कहा –द्विजश्रेष्‍ठ! मैं पुन: बुद्धिमान महर्षि अगस्‍त्‍यजी के चरित्र विस्‍तार पूर्वक वर्णन सुनना चाहता हूँ।

लोमशजी ने कहा- महाराज! अमिततेजस्‍वी महर्षि अगस्‍त्‍य की कथा दिव्‍य, अदभुद और अलौकिक है। उनका प्रभाव महान है। मैं उसका वर्णन करता हूँ, सुनो। सत्‍ययुग की बात है, दैत्‍यों के बहुत से भयंकर दल थे, जो कालकेय के नाम से विख्‍यात थे। उनका स्‍वभाव अत्‍यन्‍त निर्दय था। वे युद्ध में उन्‍मत होकर लड़ते थे। उन सब ने एक दिन वृत्रासुर की शरण ले उसकी अध्‍यक्षता में नाना प्रकार के आयुधों से सुसज्जित हो महेन्‍द्र आदि देवताओं पर चारों ओर आक्रमण किया। तब समस्‍त देवता वृत्रासुर के वध के प्रयत्‍न में लग गये। वे देवराज इन्‍द्र को आगे करके ब्रह्माजी के पास गये। वहॉं पहुँच कर सब देवता हाथ जोड़कर खडे़ हो गये। तब ब्रह्माजी ने उनसे कहा’ देवताओं! तुम जो कार्य सिद्ध करना चाहते हो, वह सब मुझे मालूम है।

‘मैं तुम्‍हे एक उपाय बता रहा हूँ, जिससे तम वृत्रासुर का का वध कर सकोगे। दधीच नाम से विख्‍यात जो उदार चेता महर्षि हैं, उनके पास जाकर तुम सब लोग एक ही वर मॉंगो। वे बड़े धर्मात्‍मा हैं। अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न मन से तुम्‍हें मुँह माँगी वस्‍तु देगें। ‘जब वे वर देना स्‍वीकार कर लें, तब विजय की अभिलाषा रखने वाले तुम सब लोग उनसे एक साथ यों कहना ‘महात्‍मन! तुम लोको के हित के लिये अपने शरीर की हड्डियॉं प्रदान करें। ‘तुम्‍हारे माँगने पर वे शरीर त्‍यागकर अपनी हड्डियायों द्वारा तुम लोग सुद्रढ एवं अत्‍यन्‍त भयंकर वज्र का निर्माण करो। ‘उसकी आकृति षट्कोण के समान होगी। वह महान एसं घोर शत्रुनाशक अस्‍त्र भयंकर गड़गडाहट पैदा करने वाला होगा। उस वज्र के द्वारा इन्‍द्र निश्‍चय ही वृत्रासुर का वध कर डालेंगे।

देवताओं का महर्षि दधीचि के आश्रम में प्रस्थान

‘ये सब बाते मैंने तुम्‍हें बता दी हैं। अत: अब शीघ्र करो। ब्रह्माजी के ऐसा करने पर सब देवता उनकी आज्ञा ले भगवन नरायण को आगे करके दधीच के आश्रम पर गये। वह आश्रम सरस्‍वती नदी के उस पार था। अनेक प्रकार के वृक्ष और लताऍं उसे घेरे हुए थीं। भ्रमरों के गीतों की ध्‍वनि से वह स्‍थान इस प्रकार गूँज रहा था माने सामगान करने वाले ब्राह्मणों द्वारा सामवेद का पाठ हो रहा हो। कोकिल के कलरवों से गूंजित और दूसरे जन्‍तओं के शब्‍दों कोलाहलपूर्ण बना हुआ वह आश्रम सजीव सा जान पड़ता था। भैंसे, सूअर, बाल मृग और चवँरी गाये, बाघ सिहों के भय से रहित हो उस आश्रम के आस पास विचर रही थीं। अपने कपोलों से मद की धारा बहरने वाले हाथी और हथिनियॉं वहाँ सरोवर के जल में गोते लगाकर क्रीडाएं कर रहे थे, जिससे आश्रम के चारों ओर कोलाहल सा हो रहा था। पर्वतों की गुफाओं तथा कन्‍दराओं में लेटे, झाडि़यों में छिपे और वन में विचरते हुए जोर जोर से दहाड़नेवाले सिहों और व्‍याघ्रों की गर्जना से वह स्‍थान गूंज रहा था। विभिन्‍न स्‍थानों में अधिक शोभा पानेवाला महर्षि दधीच का वह मनोरम आश्रम स्‍वर्ग के समान प्रतीत होताथा। देवता लोग वहॉं आ पहुँचे।

उन्‍होंने देखा, महर्षि दधीच भगवान सूर्य के समान तेज से प्रकाशित हो रहे है। अपने शरीर की दिव्‍य कान्ति से साक्षात ब्रह्माजी के समान जान पड़ते हैं। राजन! उस समय सब देवताओं महर्षि के चरणों में अभिवादन एवं प्रणाम करके ब्रह्मा जी जैसे कहा था, उसी प्रकार उनसे वर मॉंगा।

महर्षि दधीचि द्वारा शरीर त्यागना

तब महर्षि दधीच ने अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न होकर उन श्रेष्‍ठ देवताओं से इस प्रकार कहा ‘देवगण! आज मैं वही करुगां, जिससे आप लोगों का हित हो। अपने इस शरीर को मैं स्‍वयं ही त्‍याग देता हूँ। ऐसा कह कर मनुष्‍यों में श्रेष्‍ठ , जितेन्द्रिय महर्षि दधीच ने सहसा अपने प्राणों का त्‍याग दिया। तब देवताओं ने ब्रह्माजी के उपदेश के अनुसार महर्षि के निर्जीव शरीर से हड्डियां ले लीं।

वज्र का निर्माण

इसके बाद वे हर्षोलाश से भरकर विजय की आशा लिये त्‍वष्‍टा प्रजापति के पास आये और उनसे अपना प्रयोजन बताया। देवताओं की बात सुनकर त्‍वष्टा प्रजाप‍ति बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्‍होंने एकाग्रचित्त हो प्रयत्‍नपूर्वक अत्‍यन्‍त भयंकर वज्र का निर्माण किया। तत्‍पश्‍चात् वे हर्ष में भरकर इन्‍द्र से बोले–‘देव! इस उत्तम वज्र से आप आज ही भयंकर देवद्रोही वृत्रासुर को भस्‍म कर डालिये।

‘इस प्रकार शत्रु के मारे जाने पर आप देवगणों के साथ स्‍वर्ग में रहकर सुख पूर्वक सम्‍पूर्ण स्‍वर्ग का शासन एवं पालन कीजिये। त्‍वष्‍टा प्रजापति के ऐसा कहने पर इन्‍द्र को बडी़ प्रसन्‍नता हुई। उन्‍होंने शुद्धचित होकर उनके हाथ से वह वज्र ले लिया।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत वन पर्व अध्याय 100 श्लोक 1-18
  2. महाभारत वन पर्व अध्याय 100 श्लोक 19-25

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मृगस्वप्नोद्भव पर्व
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व्रीहिद्रौणिक पर्व
व्यास का पांडवों के पास आगमन | व्यास का पांडवों से दान की महत्ता का वर्णन | दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल के दानधर्म एवं धैर्य की परीक्षा | महर्षि मुद्गल का देवदूत से प्रश्न करना | देवदूत द्वारा स्वर्गलोक के गुण-दोष तथा विष्णुधाम का वर्णन | व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अपने आश्रम लौटना
द्रौपदीहरण पर्व
दुर्योधन द्वारा दुर्वासा का आतिथ्य सत्कार | दुर्योधन द्वारा दुर्वासा को प्रसन्न करना और युधिष्ठिर के पास भेजना | द्रौपदी के स्मरण करने पर श्रीकृष्ण का प्रकट होना | कृष्ण द्वारा पांडवों को दुर्वासा के भय से मुक्त करना | जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना | कोटिकास्य का द्रौपदी को जयद्रथ का परिचय देना | द्रौपदी का कोटिकास्य को उत्तर | जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद | जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण | पांडवों द्वारा जयद्रथ का पीछा करना | द्रौपदी का जयद्रथ से पांडवों के पराक्रम का वर्णन | पांडवों द्वारा जयद्रथ की सेना का संहार | युधिष्ठिर का द्रौपदी और नकुल-सहदेव के साथ आश्रम पर लौटना | भीम और अर्जुन द्वारा वन में जयद्रथ का पीछा करना
जयद्रथविमोक्षण पर्व
भीम द्वारा जयद्रथ को बंदी बनाकर युधिष्ठिर के समक्ष उपस्थित करना | शिव द्वारा जयद्रथ से श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
रामोपाख्यान पर्व
युधिष्ठिर का अपनी दुरावस्था पर मार्कडेण्य मुनि से प्रश्न करना | राम आदि का जन्म तथा कुबेर की उत्पत्ति का वर्णन | रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति | कुबेर का रावण को शाप देना | देवताओं का रीछ और वानर योनि में संतान उत्पन्न करना | राम के राज्याभिषेक की तैयारी | राम का वन को प्रस्थान | भरत की चित्रकूट यात्रा | राम द्वारा राक्षसों का संहार तथा रावण-शूर्पणखा वार्तालाप | राम द्वारा मारीच का वध | रावण द्वारा सीता का अपहरण | रावण द्वारा जटायु वध एवं राम द्वारा उसका अंत्येष्टि संस्कार | राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध | राम और सुग्रीव की मित्रता | राम द्वारा बाली का वध | अशोक वाटिका में सीता को त्रिजटा का आश्वासन | रावण और सीता का संवाद | राम का सुग्रीव पर कोप | सुग्रीव का सीता की खोज में वानरों को भेजना | हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना | वानर सेना का संगठन | नल द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण | विभीषण का अभिषेक तथा वानर सेना का लंका की सीमा में प्रवेश | अंगद का रावण के पास जाकर राम का संदेश सुनाना | राक्षसों और वानरों का घोर संग्राम | राम और रावण की सेनाओं का द्वन्द्वयुद्ध | प्रहस्त और धूम्राक्ष का वध | रावण द्वारा युद्ध हेतु कुम्भकर्ण को जगाना | कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध | इन्द्रजित का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा | राम-लक्ष्मण का अभिमंत्रित जल से नेत्र धोना | लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित का वध | रावण का सीता के वध हेतु उद्यत होना | राम और रावण का युद्ध तथा रावण का वध | राम का सीता के प्रति संदेह | देवताओं द्वारा सीता की शुद्धि का समर्थन | राम का आयोध्या आगमन तथा राज्याभिषेक | मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को आश्वासन
पतिव्रतामाहात्म्य पर्व
राजा अश्वपति को सावित्री नामक कन्या की प्राप्ति | सावित्री का पतिवरण के लिए विभिन्न देशों में भ्रमण | सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने का दृढ़ निश्चय | सावित्री और सत्यवान का विवाह | सावित्री की व्रतचर्या | सावित्री का सत्यवान के साथ वन में जाना | सावित्री और यम का संवाद | यमराज का सत्यवान को पुन: जीवित करना | सावित्री और सत्यवान का वार्तालाप | राजा द्युमत्सेन की सत्यवान के लिए चिन्ता | सावित्री द्वारा यम से प्राप्त वरों का वर्णन | द्युमत्सेन का राज्याभिषेक तथा सावित्री को सौ पुत्रों और सौ भाइयों की प्राप्ति
कुण्डलाहरण पर्व
सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने के लिए सचेत करना | कर्ण का इन्द्र को कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय करना | सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने का आदेश | कर्ण का इन्द्र से शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देने का निश्चय | कुन्तिभोज के यहाँ दुर्वासा का आगमन | कुन्तुभोज द्वारा दुर्वासा की सेवा हेतु पृथा को उपदेश देना | कुन्ती का पिता से वार्तालाप एवं ब्राह्मण की परिचर्या | कुन्ती को तपस्वी ब्राह्मण द्वारा मंत्र का उपदेश | कुन्ती द्वारा सूर्य देवता का आवाहन | कुन्ती-सूर्य संवाद | सूर्य द्वारा कुन्ती के उदर में गर्भस्थापन | कर्ण का जन्म और कुन्ती का विलाप | अधिरथ सूत और उसकी पत्नी राधा को बालक कर्ण की प्राप्ति | कर्ण की शिक्षा-दीक्षा और उसके पास इन्द्र का आगमन | कर्ण को इन्द्र से अमोघ शक्ति की प्राप्ति | इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना
आरणेय पर्व
ब्राह्मण की अरणि एवं मन्थन काष्ठ विषयक प्रसंग | युधिष्ठिर द्वारा नकुल को जल लाने का आदेश | नकुल आदि चार भाइयों का सरोवर तट पर अचेत होना | यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद | यक्ष और युधिष्ठिर का प्रश्नोत्तर | युधिष्ठिर के उत्तर से संतुष्ट यक्ष द्वारा चारों भाइयों को जीवित करना | यक्ष का धर्म के रूप में प्रकट होकर युधिष्ठिर को वरदान देना | युधिष्ठिर को महर्षि धौम्य द्वारा समझाया जाना | भीमसेन का उत्साह और पांडवों का परस्पर परामर्श

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