विदर्भराज द्वारा नल-दमयन्ती की खोज

महाभारत वनपर्व के नलोपाख्यानपर्व के अंतर्गत अध्याय 68 में विदर्भराज का नल-दमयन्ती की खोज के लिये ब्राह्मणों को भेजना, सुदेव (ब्राह्मण) का चेदिराज के भवन में जाकर म नही मन दमयन्ती के पुत्रों का चिन्तन और उससे भेंट करना के बारे में बताया गया है जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है[1]-

राजा नल ऋतुपर्ण के यहाँ अष्वाध्यक्ष के पद पर नियुक्त हो जाते है और वहाँ दमयन्ती के लिये निरन्तर चिन्तित रहना तथा उनकी जीवल से बातचीत होना इसके बाद की कथा इस प्रकार है।

बृहदश्व मुनि कहते हैं- राजन! राज्य का अपहरण हो जाने पर जब नल पत्नी सहित वन में चले गये, तब विदर्भनरेश भीम ने नल का पता लगाने के लिये बहुत से ब्राह्मणों को इधर-उधर भेजा। राजा भीम ने प्रचुर धन देकर ब्राह्मणों को यह संदेश दिया-‘आप लोग राजा नल और मेरी पुत्री दमयन्ती की खोज करें। ‘निषधनरेश नल का पता लग जाने पर जब यह कार्य सम्पन्न हो जायगा, तब मैं आप लोगों में से जो भी नल-दमयन्ती को यहाँ ले आयेगा, उसे एक हजार गौएं दूंगा। ‘साथ ही जीविका के लिये अग्रहार (करमुक्त भूमि) दूंगा और ऐसा गांव दे दूंगा, जो आय में नगर के समान होगा। यदि नल-दमयन्ती में से किसी एक को या दोनों को ही यहाँ ले आना सम्भव न हो सके तो केवल उनका पता लग जाने पर भी मैं एक हजार गोधन दान करूंगा।

राजा के ऐसा कहने पर वे सब ब्राह्मण बड़े प्रसन्न होकर सब दिशाओं में चले गये और नगर तथा राष्ट्रों में पत्नी सहित निषधनरेश नल का अनुसंधान करने लगे; परन्तु कहीं भी वे नल अथवा भीमकुमारी दमयन्ती को नहीं देख पाते थे। तदनन्तर सुदेव नामक ब्राह्मण ने पता लगाते हुए रमणीय चेदिनगरी में जाकर वहाँ राजमहल में विदर्भकुमारी दमयन्ती को देखा। वह राजा पुण्याहवाचन के समय सुनन्दा के साथ खड़ी थी। उसका अनुपम रूप[2]धूमसमूह से आवृत हो रही हो। विशाल नेत्रों वाली उस राजकुमारी को अधिक मलिन और दुर्बल देख उपयुक्त कारणों से उसकी पहचान करते हुए सुदेव ने निश्चय किया कि यह भीमकुमारी दमयन्ती ही है। सुदेव मन ही मन बोले- मैंने पहले जिस रूप में इस कल्याणमयी राजकन्या को देखा, वैसी ही यह आज भी है। लोककमनीय लक्ष्मी की भाँति इस भीमकुमारी को देखकर आज मैं कृतार्थ हो गया हूँ। यह श्यामा युवती पूर्ण चन्द्रमा के समान कांतिमयी है। इसके स्तन बड़े मनोहर और गोल-गोल हैं। यह देवी अपनी प्रभा से सम्पूर्ण दिशाओं को अलोकित कर रही है। उसके बड़े-बड़े नेत्र मनोहर कमलों की शोभा को लज्जित कर रहे हैं। यह कामदेव की रति-सी जान पड़ती है।

पूर्णिमा के चन्द्रमा की चांदनी के समान यह सब लोगों के लिये प्रिय है। विदर्भरूपी सरोवर से यह कमलिनी मानो प्रारब्ध दोष से निकाल ली गयी है। इसके मलिन अंग कीचड़ लिपटी हुई नलिनी के समान प्रतीत होते हैं। यह उस पूर्णिमा की रजनी के समान जान पड़ती है, जिसके चन्द्रमा पर मानो राहुल ने ग्रहण लगा रक्खा हो। पति-शोक से व्याकुल और दीन होने के कारण यह सुखे जल-प्रवाह वाली सरित के समान प्रतीत होती है। इसकी दशा इस पुष्करिणी के समान दिखायी देती है, जिसे हाथियों ने अपने शुण्डदण्ड से मथ डाला हो तथा जो नष्ट हुए पत्तों वाले कमल से युक्त हो एवं जिसके भीतर निवास करने वाले पक्षी अत्यन्त भयभीत हो रहे हों। यह दुःख से अत्यन्त व्याकुल-सी प्रतीत हो रही है। मनोहर अंगों वाली यह सुकुमारी राज कन्या उन महलों में रहने योग्य है, जिसका भीतरी भाग रत्नों का बना हुआ है।[3]यह सरोवर से निकाली और सूर्य की किरणों से जलायी हुई कमलिनी के समान प्रतीत हो रही है।

यह रूप और उदारता आदि गुणों से सम्पन्न है। श्रृंगार धारण करने के योग्य होने पर भी यह श्रृंगारशुन्‍य है, मानों आकाश में मेघों की काली घटा से आवृत नूतन चन्द्रकला हो।

यह राजकन्या प्रिय काम भोगों से वंचित है। अपने बन्धुजनों से बिछुड़ी हुई है और पति के दर्शन की इच्छा से अपने (दीन-दुर्बल) शरीर को धारण कर रही है। वास्तव में पति ही नारी का सबसे श्रेष्ठ आभूषण है। उसके होने से यह बिना आभूषणों के सुशोभित होती हैं; परन्तु यह पतिरूप आभूषण से रहित होने के कारण शोभामयी होकर भी सुशोभित नहीं हो रही है। इससे विलग होकर राजा नल यदि अपने शरीर को धारण करते हैं और शोक से शिथल नहीं हो रहे हैं तो यह समझना चाहिये कि वे अत्यन्त दुष्कर कर्म कर रहे हैं। काले-काले केशों ओर कमल के समान विशाल नेत्रों से सुशोभित इस राजकन्याको, जो सदा सुख भोगने के ही योग्य है, दुःखित देखकर मेरे मन में भी बड़ी व्यर्था हो रही। जैसे रोहिणी चन्द्रमा के संयोग से सुखी होती है, उसी प्रकार यह शुभलक्षणा साध्वी राजकुमारी अपने पति के समागम से (संतुष्ट) कब इस दुःख के समुद्र से पार हो सकेगी।

जैसे कोई राजा के बार अपने राज्य से च्युत होकर फिर उसी राज्यभूमि को प्राप्त कर लेने पर अत्यन्त आनन्द का अनुभव करता है, उसी प्रकार पुनः इसके मिल जाने पर निषधनरेश नल को निश्चय ही बड़ी प्रशंसा होगी। विदर्भकुमारी दमयन्ती राजा नल के समान शील और अवस्था से युक्त है, उन्हीं के तुल्य उत्तम कुल से सुशोभित है। निषध नरेश नल विदर्भकुमारी के योग्य हैं और यह कजरारे नेत्रों वाली वैदभीं नल के योग्य है। राजा नल का पराक्रम और धैर्य असीम है। उनकी यह पत्नी पतिदर्शन के लिये लालायित और उत्कण्ठित है, अतः मुझे इससे मिलकर इसे आश्वासन देना चाहिये। इस पूर्णचन्द्रमुखी राजकुमारी ने पहले कभी दुःख को नहीं देखा था। इस समय दुःख से आतुर हो पति के ध्यान में परायण है, अतः मैं इसे आश्वासन देने का विचार कर रहा हूँ।

बृहदश्व मुनि कहते हैं- युधिष्ठिर! इस प्रकार भाँति-भाँति कारणों और लक्षणों से दमयन्ती को पहचान कर और अपने कर्तव्य के विषय का विचार करके सुदेव ब्राह्मण उसके समीप गये और इस प्रकार बोले- ‘विदर्भराजकुमारी! मैं तुम्हारे भाई का प्रिय सखा हूँ। महाराज भीम की आज्ञा से तुम्हारी खोज करने के लिये यहाँ आया हूँ। ‘निषधनरेश की महारानी! तुम्हारे पिता, माता और भाई सब सकुशल हैं और कुण्डिनपुर में जो तुम्हारे बालक हैं, वे भी कुशल हैं। ‘तुम्हारे बन्धु-बान्धव तुम्हारी ही चिन्ता से मृतक-तुल्य हो रहे हैं।[4]सैकड़ों ब्राह्मण इस पृथ्वी पर घूम रहे हैं’।

बृहदश्व मुनि कहते हैं- युधिष्ठिर! सुदेव को पहचानकर दमयन्ती ने क्रमशः अपने सभी सगे-सम्बन्धियों का कुशल-समाचार पूछा। राजन! अपने भाई के प्रति मित्र द्विजश्रेष्ठ सुदेव को सहसा आया देख दमयन्ती शोक से व्याकुल हो फूट-फूटकर रोने लगी। भारत! तदनन्तर उसे सुदेव के साथ एकान्त में बात करती तथा रोती देख सुनन्दा शक्ति से व्याकुल हो उठी।[5]

उसने अपनी माता से जाकर कहा-‘मां! सैरन्ध्री एक ब्राह्मण से मिलकर बहुत हो रही है। यदि तुम ठीक समझो तो इसका कारण जानने की चेष्टा करो’। तदनन्तर चेदिराज की माता उस समय अन्तःपुर से निकलकर उसी स्थान पर गयीं, यहाँ राजकन्या दमयन्ती ब्राह्मण के साथ खड़ी थी।

युधिष्ठिर! तब राजमाता ने सुदेव ब्राह्मण को बुलाकर पूछा- ‘विप्रवर! जान पड़ता है, तुम इसे जानते हो। बताओ, यह सुन्दरी युवती किसकी पत्नी अथवा किसकी पुत्री है? यह सुन्दर नेत्रों वाली सुन्दरी अपने भाई-बन्धुओं अथवा पति से किस प्रकार विलग हुई है, यह सती-साध्वी नारी ऐसी दुरवस्था में क्यों पड़ गयी ?

‘ब्रह्मन! इस देवरूपिणी नारी के विषय में यह सारा वृत्तान्त में पूर्ण रूप से सुनना चाहती हूँ। मैं जो कुछ पुछती हूं, वह मुझे ठीक-ठीक बताओ’। राजन! राज माता के इस प्रकार पूछने पर वे द्विजश्रेष्ठ सुदेव सुखपूर्वक बैठकर दमयन्ती का यथार्थ वृत्तान्त बताने लगे।[6]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत वन पर्व अध्याय 68 श्लोक 1-16
  2. मैल से आवृत होने के कारण
  3. इस समय दुःख ने इसे ऐसा दुर्बल कर दिया है कि
  4. तुम्हारी खोज करने के लिये
  5. महाभारत वन पर्व अध्याय 68 श्लोक 17-33
  6. महाभारत वन पर्व अध्याय 68 श्लोक 34-39

संबंधित लेख

महाभारत वनपर्व में उल्लेखित कथाएँ


अरण्य पर्व
पांडवों का वन प्रस्थान | पांडवों का प्रमाणकोटि तीर्थ निवास | युधिष्ठिर से ब्राह्मणों व शौनक का वार्तालाप | युधिष्ठिर द्वारा सूर्य उपासना | विदुर की धृतराष्ट्र को सलाह | पांडवों का काम्यकवन में प्रवेश | काम्यकवन में विदुर-पांडव मिलन | धृतराष्ट्र की विदुर से क्षमा प्रार्थना | शकुनि द्वारा वन में पांडव वध का षड़यंत्र | व्यास का धृतराष्ट्र से अनुरोध | व्यास द्वारा सुरभि तथा इंद्र उपाख्यान का वर्णन | मैत्रेयी का धृतराष्ट्र तथा दुर्योधन से सद्भाव का अनुरोध | मैत्रेयी का दुर्योधन को शाप
किर्मीर वध पर्व
भीम द्वारा किर्मीर वध
अर्जुनाभिगमन पर्व
अर्जुन तथा द्रौपदी द्वारा कृष्ण स्तुति | द्रौपदी का कृष्ण से अपने अपमान का वर्णन | कृष्ण द्वारा जूए दोष का वर्णन | कृष्ण द्वारा शाल्व वध का वर्णन | द्वारका में युद्ध सम्बंधी तैयारियों का वर्णन | यादव सेना द्वारा शाल्व सेना का प्रतिरोध | प्रद्युम्न और शाल्व का युद्ध | प्रद्युम्न का अनुताप | प्रद्युम्न द्वारा शाल्व की पराजय | कृष्ण और शाल्व का युद्ध | कृष्ण और शाल्व की माया | कृष्ण द्वारा शाल्ववधोपाख्यान की समाप्ति | पांडवों की द्वैतवन में प्रवेश की उद्यता | पांडवों का द्वैतवन में प्रवेश | मार्कण्डेय द्वारा पांडवों को धर्म आदेश | बक द्वारा युधिष्ठिर से ब्राह्मण महत्त्व का वर्णन | द्रौपदी का युधिष्ठिर से संतापपूर्ण वचन | द्रौपदी द्वारा प्रह्लाद-बलि संवाद वर्णन | युधिष्ठिर द्वारा क्रोध निन्दा | द्रौपदी का युधिष्ठिर और ईश्वर न्याय पर आक्षेप | युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी आक्षेप का समाधान | द्रौपदी द्वारा पुरुषार्थ को प्रधानता | भीम द्वारा पुरुषार्थ की प्रशंसा | भीम का युधिष्ठिर से क्षत्रिय धर्म अपनाने का अनुरोध | युधिष्ठिर द्वारा धर्म पर ही रहने की घोषणा | भीम द्वारा युधिष्ठिर का उत्साह वर्धन | व्यास द्वारा युधिष्ठिर को प्रतिस्मृतिविद्या का दान | अर्जुन का इन्द्रकील पर्वत पर प्रस्थान
कैरात पर्व
अर्जुन की उग्र तपस्या | अर्जुन का शिव से युद्ध | अर्जुन द्वारा शिव स्तुति | अर्जुन को शिव का वरदान | अर्जुन के पास दिक्पालों का आगमन | इन्द्र द्वारा अर्जुन को स्वर्ग आगमन का आदेश
इन्द्रलोकाभिगमन पर्व
अर्जुन का स्वर्गलोक प्रस्थान | अर्जुन का इन्द्रसभा में स्वागत | अर्जुन को अस्त्र और संगीत की शिक्षा | चित्रसेन और उर्वशी का वार्तालाप | उर्वशी का अर्जुन को शाप | इन्द्र-अर्जुन से लोमश मुनि की भेंट | धृतराष्ट्र की पुत्र चिन्ता तथा संताप | वन में पांडवों का आहार | कृष्ण प्रतिज्ञा का संजय द्वारा वर्णन
नलोपाख्यान पर्व
बृहदश्व द्वारा नलोपाख्यान | बृहदश्व द्वारा नल-दमयन्ती के गुणों का वर्णन | दमयन्ती स्वयंवर के लिए राजाओं का प्रस्थान | नल द्वारा दमयन्ती से देवताओं का संदेश | नल-दमयन्ती वार्तालाप | नल-दमयन्ती विवाह | नल के विरुद्ध कलियुग का कोप | नल और पुष्कर की द्यूतक्रीड़ा | दमयन्ती का कुमार-कुमारी को कुण्डिनपुर भेजना | नल-दमयन्ती का वन प्रस्थान | नल द्वारा दमयन्ती का त्याग | दमयन्ती का पातिव्रत्यधर्म | दमयन्ती का विलाप | दमयन्ती को तपस्वियों द्वारा आश्वासन | दमयन्ती का चेदिराज के यहाँ निवास | नल द्वारा कर्कोटक नाग की रक्षा | नल की ऋतुपर्ण के यहाँ अश्वाध्यक्ष पद पर नियुक्ति | विदर्भराज द्वारा नल-दमयन्ती की खोज | दमयन्ती का पिता के यहाँ आगमन | दमयन्ती को नल का समाचार मिलना | ऋतुपर्ण का विदर्भ देश को प्रस्थान | बाहुक की अद्भुत रथसंचालन कला | ऋतुपर्ण से नल को द्यूतविद्या के रहस्य की प्राप्ति | नल के शरीर से कलियुग का निकलना | ऋतुपर्ण का कुण्डिनपुर में प्रवेश | केशिनी-बाहुक संवाद | केशिनी द्वारा बाहुक की परीक्षा | नल-दमयन्ती मिलन | नल-ऋतुपर्ण वार्तालाप | नल द्वारा पुष्कर को जूए में हराना | नल आख्यान का महत्त्व | बृहदश्व का युधिष्ठिर को आश्वासन
तीर्थ यात्रा पर्व
अर्जुन के लिए पांडवों की चिन्ता | युधिष्ठिर के पास नारद का आगमन | पुलस्त्य का भीष्म से तीर्थयात्रा माहात्म्य वर्णन | कुरुक्षेत्र के तीर्थों की महत्ता | पुलस्त्य द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि की महिमा का वर्णन | गंगा का माहात्म्य | युधिष्ठिर धौम्य संवाद | धौम्य द्वारा पूर्व दिशा के तीर्थों का वर्णन | धौम्य द्वारा दक्षिण दिशा के तीर्थों का वर्णन | धौम्य द्वारा पश्चिम दिशा के तीर्थों का वर्णन | धौम्य द्वारा उत्तर दिशा के तीर्थों का वर्णन | अर्जुन के दिव्यास्त्र प्राप्ति का लोमश द्वारा वर्णन | इन्द्र-अर्जुन संदेश से युधिष्ठिर की प्रसन्नता | पांडवों का तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान | लोमश का अधर्म से हानि और पुण्य की महिमा का वर्णन | पांडवों द्वारा राजा गय के यज्ञों की महिमा का श्रवण | लोमश द्वारा इल्वल-वातापि का वर्णन | विदर्भराज को अगस्त्य से कन्या की प्राप्ति | अगस्त्य का लोपामुद्रा से विवाह | अगस्त्य का धनसंग्रह के लिए प्रस्थान | अगस्त्य द्वारा वातापि तथा इल्वल का वध | लोपामुद्रा को पुत्र की प्राप्ति | परशुराम को तीर्थस्नान द्वारा तेज की प्राप्ति | दधीच का अस्थिदान एवं वज्र निर्माण | वृत्रासुर का वध | कालेय दैत्यों द्वारा तपस्वियों-मुनियों आदि का संहार | देवताओं द्वारा विष्णु की स्तुति | विष्णु आदेश से देवताओं द्वारा अगस्त्य की स्तुति | अगस्त्य का विन्ध्यपर्वत को बढ़ने से रोकना | अगस्त्य का समुद्रपान तथा देवताओं द्वारा कालेय दैत्यों का वध | सगर की संतान प्राप्ति के लिए तपस्या | कपिल की क्रोधाग्नि से सगरपुत्रों का भस्म होना | भगीरथ को राज्य की प्राप्ति | भगीरथ की तपस्या | गंगा का पृथ्वी पर आगमन और सगरपुत्रों का उद्धार | नन्दा तथा कौशिकी का माहात्म्य | लोमपाद का मुनि ऋष्यशृंग को अपने राज्य में लाने का प्रयत्न | ऋष्यशृंग को वेश्या द्वारा लुभाना जाना | ऋष्यशृंग का पिता से वेश्या के स्वरूप तथा आचरण का वर्णन | ऋष्यशृंग का लोमपाद के यहाँ आगमन | लोमपाद द्वारा विभाण्डक मुनि का सत्कार | युधिष्ठिर का महेन्द्र पर्वत पर गमन | ऋचीक मुनि का गाधिकन्या के साथ विवाह | जमदग्नि की उत्पत्ति का वर्णन | परशुराम का अपनी माता का मस्तक काटना | जमदग्नि मुनि की हत्या | परशुराम का पृथ्वी को नि:क्षत्रिय करना | युधिष्ठिर द्वारा परशुराम का पूजन | युधिष्ठिर की प्रभासक्षेत्र में तपस्या | यादवों का पांडवों से मिलन | बलराम की पांडवों के प्रति सहानुभूति | सात्यकि के शौर्यपूर्ण उद्गार | युधिष्ठिर द्वारा कृष्ण के वचनों का अनुमोदन | गय के यज्ञों की प्रशंसा | पयोष्णी, नर्मदा तथा वैदूर्य पर्वत का माहात्म्य | च्यवन को सुकन्या की प्राप्ति | च्यवन को रूप तथा युवावस्था की प्राप्ति | च्यवन का इन्द्र पर कोप | च्यवन द्वारा मदासुर की उत्पत्ति | लोमश द्वारा अन्यान्य तीर्थों के महत्त्व का वर्णन | मान्धाता की उत्पत्ति | मान्धाता का संक्षिप्त चरित्र | सोमक और जन्तु का उपाख्यान | सोमक और पुरोहित का नरक तथा पुण्यलोक का उपभोग | कुरुक्षेत्र के प्लक्षप्रस्रवण तीर्थ की महिमा | लोमश द्वारा तीर्थों की महिमा तथा उशीनर कथा का आरम्भ | उशीनर द्वारा शरणागत कबूतर के प्राणों की रक्षा | अष्टावक्र के जन्म का वृत्तान्त | अष्टावक्र का जनक के दरबार में जाना | अष्टावक्र का जनक के द्वारपाल से वार्तालाप | अष्टावक्र का जनक से वार्तालाप | अष्टावक्र का शास्त्रार्थ | अष्टावक्र के अंगों का सीधा होना | कर्दमिलक्षेत्र आदि तीर्थों की महिमा | रैभ्य तथा यवक्रीत मुनि की कथा | ऋषियों का अनिष्ट करने से मेघावी की मृत्यु | यवक्रीत का रैभ्य की पुत्रवधु से व्यभिचार तथा मृत्यु | भरद्वाज का पुत्रशोक में विलाप | भरद्वाज का अग्नि में प्रवेश | अर्वावसु की तपस्या तथा रैभ्य, भरद्वाज और यवक्रीत का पुनर्जीवन | पांडवों की उत्तराखण्ड यात्रा | भीमसेन का उत्साह तथा पांडवों का हिमालय को प्रस्थान | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन की चिन्ता तथा उनके गुणों का वर्णन | पांडवों द्वारा गंगा की वन्दना | लोमश द्वारा पांडवों से नरकासुर वघ की कथा | लोमश द्वारा पांडवों से वसुधा उद्धार की कथा | गन्दमाधन यात्रा में पांडवों का आँधी-पानी से सामना | द्रौपदी की मूर्छा तथा भीम के स्मरण से घटोत्कच का आगमन | घटोत्कच की सहायता से पांडवों का गंधमादन पर्वत तथा बदरिकाश्रम में प्रवेश | बदरीवृक्ष, नरनारायणाश्रम तथा गंगा का वर्णन | भीमसेन का सौगन्धिक कमल लाने के लिए जाना | भीमसेन की कदलीवन में हनुमान से भेंट | भीमसेन और हनुमान का संवाद | हनुमान का भीमसेन से रामचरित्र का संक्षिप्त वर्णन | हनुमान द्वारा चारों युगों के धर्मों का वर्णन | हनुमान द्वारा भीमसेन को विशाल रूप का प्रदर्शन | हनुमान द्वारा चारों वर्णों के धर्मों का प्रतिपादन | भीमसेन को आश्वासन देकर हनुमान का अन्तर्धान होना | भीमसेन का सौगन्धिक वन में पहुँचना | क्रोधवश राक्षसों का भीमसेन से सामना | भीमसेन द्वारा क्रोधवश राक्षसों की पराजय | युधिष्ठिर आदि का सौगन्धिक वन में भीमसेन के पास पहुँचना | पांडवों का पुन: नरनारायणाश्रम में लौटना
जटासुरवध पर्व
जटासुर द्वारा द्रौपदी, युधिष्ठिर, नकुल एवं सहदेव का हरण | भीमसेन द्वारा जटासुर का वध
यक्षयुद्ध पर्व
पांडवों का नरनारायणाश्रम से वृषपर्वा के जाना | पांडवों का राजर्षि आर्ष्टिषेण के आश्रम पर जाना | आर्ष्टिषेण का युधिष्ठिर के प्रति उपदेश | पांडवों का आर्ष्टिषेण के आश्रम पर निवास | भीमसेन द्वारा मणिमान का वध | कुबेर का गंधमादन पर्वत पर आगमन | कुबेर की युधिष्ठिर से भेंट | कुबेर का युधिष्ठिर आदि को उपदेश तथा सान्त्वना | धौम्य द्वारा मेरु शिखरों पर स्थित ब्रह्मा-विष्णु आदि स्थानों का वर्णन | धौम्य का युधिष्ठिर से सूर्य-चन्द्रमा की गति एवं प्रभाव का वर्णन | पांडवों की अर्जुन के लिए उत्कंठा
निवातकवच युद्ध पर्व
अर्जुन का स्वर्गलोक से आगमन तथा भाईयों से मिलन | इन्द्र का आगमन तथा युधिष्ठिर को सान्त्वना देना | अर्जुन का अपनी तपस्या यात्रा के वृत्तान्त का वर्णन | अर्जुन द्वारा शिव से संग्राम एवं पाशुपतास्त्र प्राप्ति की कथा | अर्जुन का युधिष्ठिर से स्वर्गलोक में प्राप्त अपनी अस्त्रविद्या का कथन | अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्ध की तैयारी का कथन | अर्जुन का पाताल में प्रवेश | अर्जुन का निवातकवच दानवों के साथ युद्धारम्भ | अर्जुन और निवातकवचों का युद्ध | अर्जुन के साथ निवातकवचों के मायामय युद्ध का वर्णन | अर्जुन द्वारा निवातकवचों का वध | अर्जुन द्वारा हिरण्यपुरवासी पौलोम तथा कालकेयों का वध | इन्द्र द्वारा अर्जुन का अभिनन्दन | युधिष्ठिर की अर्जुन से दिव्यास्त्र-दर्शन की इच्छा | नारद आदि का अर्जुन को दिव्यास्त्र प्रदर्शन से रोकना
आजगरपर्व
भीमसेन की युधिष्ठिर से बातचीत | पांडवों का गंधमादन से प्रस्थान | पांडवों का बदरिकाश्रम में निवास | पांडवों का सरस्वती-तटवर्ती द्वैतवन में प्रवेश | द्वैतवन में भीमसेन का हिंसक पशुओं को मारना | भीमसेन को अजगर द्वारा पकड़ा जाना | भीमसेन और सर्परूपधारी नहुष का वार्तालाप | युधिष्ठिर द्वारा भीम की खोज | युधिष्ठिर का सर्परूपधारी नहुष के प्रश्नों का उत्तर देना | सर्परूपधारी नहुष का भीमसेन को छोड़ना तथा सर्पयोनि से मुक्ति
मार्कण्डेयसमास्यापर्व
युधिष्ठिर आदि का पुन: द्वैतवन से काम्यकवन में प्रवेश | पांडवों के पास कृष्ण, मार्कण्डेय तथा नारद का आगमन | मार्कण्डेय का युधिष्ठिर से कर्मफल-भोग का विवेचन | तपस्वी तथा स्वधर्मपरायण ब्राह्मणों का माहात्म्य | ब्राह्मण महिमा के विषय में अत्रिमुनि तथा राजा पृथु की प्रशंसा | तार्क्ष्यमुनि और सरस्वती का संवाद | वैवस्वत मनु का चरित्र और मत्स्यावतार कथा | चारों युगों की वर्ष-संख्या तथा कलियुग के प्रभाव का वर्णन | प्रलयकाल का दृश्य और मार्कण्डेय को बालमुकुन्द के दर्शन | मार्कण्डेय का भगवान के उदर में प्रवेश और ब्रह्माण्डदर्शन | मार्कण्डेय का भगवान बालमुकुन्द से वार्तालाप | बालमुकुन्द का मार्कण्डेय को अपने स्वरूप का परिचय देना | मार्कण्डेय द्वारा कृष्ण महिमा का प्रतिपादन | युगान्तकालिक कलियुग समय के बर्ताव का वर्णन | कल्कि अवतार का वर्णन | भगवान कल्कि द्वारा सत्ययुग की स्थापना | मार्कण्डेय का युधिष्ठिर के लिए धर्मोपदेश | इक्ष्वाकुवंशी परीक्षित का मण्डूकराज की कन्या से विवाह | शल और दल के चरित्र तथा वामदेव मुनि की महत्ता | इन्द्र और बक मुनि का संवाद | सुहोत्र और शिबि की प्रशंसा | ययाति द्वारा ब्राह्मण को सहस्र गौओं का दान | सेदुक और वृषदर्भ का चरित्र | इन्द्र और अग्नि द्वारा राजा शिबि की परीक्षा | नारद द्वारा शिबि की महत्ता का प्रतिपादन | इन्द्रद्युम्न तथा अन्य चिरजीवी प्राणियों की कथा | मार्कण्डेय द्वारा विविध दानों का महत्त्व वर्णन | मार्कण्डेय द्वारा विविध विषयों का वर्णन | उत्तंक मुनि की कथा | उत्तंक का बृहदश्व से धुन्धु वध का आग्रह | ब्रह्मा की उत्पत्ति | विष्णु द्वारा मधु-कैटभ का वध | धुन्धु की तपस्या और ब्रह्मा से वर प्राप्ति | कुवलाश्व द्वारा धुन्धु का वध | कुवलाश्व को देवताओं से वर की प्राप्ति | पतिव्रता स्त्री और माता-पिता की सेवा का माहात्म्य | कौशिक ब्राह्मण तथा पतिव्रता का उपाख्यान | कौशिक का धर्मव्याध के पास जाना | धर्मव्याध द्वारा वर्णधर्म का वर्णन और जनकराज्य की प्रशंसा | धर्मव्याध द्वारा शिष्टाचार का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा हिंसा और अहिंसा का विवेचन | धर्मव्याध द्वारा धर्म की सूक्ष्मता, शुभाशुभ कर्म और उनके फल का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति के उपायों का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा विषय सेवन से हानि, सत्संग से लाभ का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा ब्राह्मी विद्या का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा पंचमहाभूतों के गुणों का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा इन्द्रियनिग्रह का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा तीन गुणों के स्वरूप तथा फल का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा प्राणवायु की स्थिति का वर्णन | धर्मव्याध द्वारा परमात्म-साक्षात्कार के उपाय | धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का दिग्दर्शन | धर्मव्याध द्वारा माता-पिता की सेवा का उपदेश | धर्मव्याध का कौशिक ब्राह्मण से अपने पूर्वजन्म की कथा कहना | धर्मव्याध-कौशिक संवाद का उपंसहार | अग्नि का अंगिरा को अपना प्रथम पुत्र स्वीकार करना | अंगिरा की संतति का वर्णन | बृहस्पति की संतति का वर्णन | पांचजन्य अग्नि की उत्पत्ति | पांचजन्य अग्नि की संतति का वर्णन | अग्निस्वरूप तप और भानु मनु की संतति का वर्णन | सह अग्नि का जल में प्रवेश | अथर्वा अंगिरा द्वारा सह अग्नि का पुन: प्राकट्य | इन्द्र द्वारा केशी से देवसेना का उद्धार | इन्द्र का देवसेना के साथ ब्रह्मा और ब्रह्मर्षियों के आश्रम पर जाना | अद्भुत अग्नि का मोह और उनका वनगमन | स्कन्द की उत्पत्ति | स्कन्द द्वारा क्रौंच आदि पर्वतों का विदारण | विश्वामित्र का स्कन्द के जातकर्मादि तेरह संस्कार करना | अग्निदेव आदि द्वारा बालक स्कन्द की रक्षा करना | इन्द्र तथा देवताओं को स्कन्द का अभयदान | स्कन्द के पार्षदों का वर्णन | स्कन्द का इन्द्र के साथ वार्तालाप | स्कन्द का देवताओं के सेनापति पद पर अभिषेक | स्कन्द का देवसेना के साथ विवाह | कृत्तिकाओं को नक्षत्रमण्डल में स्थान की प्राप्ति | मनुष्यों को कष्ट देने वाले विविध ग्रहों का वर्णन | स्कन्द द्वारा स्वाहा देवी का सत्कार | रुद्रदेव के साथ स्कन्द और देवताओं की भद्रवट यात्रा | देवासुर संग्राम तथा महिषासुर वध | कार्तिकेय के प्रसिद्ध नामों का वर्णन
द्रौपदीसत्यभामासंवाद पर्व
द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को सती स्त्री के कर्तव्य की शिक्षा | द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को पतिसेवा की शिक्षा | सत्यभामा का द्रौपदी को आश्वासन
घोषयात्रा पर्व
पांडवों का समाचार सुनकर धृतराष्ट्र का खेद तथा चिंतापूर्ण उद्गार | शकुनि और कर्ण द्वारा दुर्योधन को पांडवों के पास जाने के लिए उभाड़ना | दुर्योधन द्वारा कर्ण और शकुनि की मंत्रणा स्वीकार करना | दुर्योधन आदि को द्वैतवन जाने हेतु धृतराष्ट्र की अनुमति | द्वैतवन में दुर्योधन के सैनिकों तथा गंधर्वों में कटु संवाद | कौरवों का गंधर्वों से युद्ध और कर्ण की पराजय | गंधर्वों द्वारा दुर्योधन आदि की पराजय और उनका अपहरण | कौरवों को छुड़ाने हेतु युधिष्ठिर का भीमसेन को आदेश | पांडवों का गंधर्वों के साथ युद्ध | पांडवों द्वारा गंधर्वों की पराजय | चित्रसेन, अर्जुन तथा युधिष्ठिर संवाद और दुर्योधन का छुटकारा | दुर्योधन का मार्ग में ठहरना और कर्ण द्वारा उसका अभिनन्दन | दुर्योधन का कर्ण को अपनी पराजय का समाचार बताना | दुर्योधन द्वारा अपनी ग्लानि का वर्णन तथा आमरण अनशन का निश्चय | दुर्योधन द्वारा दु:शासन को राजा बनने का आदेश | कर्ण द्वारा समझाने पर भी दुर्योधन का आमरण अनशन का निश्चय | दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना | दैत्यों का दुर्योधन को समझाना | दुर्योधन द्वारा अनशन की समाप्ति और हस्तिनापुर प्रस्थान | भीष्म का दुर्योधन को पांडवों से संधि करने का प्रस्ताव | कर्ण के क्षोभपूर्ण वचन और दिग्विजय के लिए प्रस्थान | कर्ण द्वारा सारी पृथ्वी पर दिग्विजय | कर्ण की दिग्विजय पर हस्तिनापुर में उसका सत्कार | दुर्योधन द्वारा वैष्णव यज्ञ की तैयारी | दुर्योधन के यज्ञ का आरम्भ तथा समाप्ति | कर्ण द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर की चिन्ता तथा दुर्योधन की शासननीति
मृगस्वप्नोद्भव पर्व
पांडवों का काम्यकवन में गमन
व्रीहिद्रौणिक पर्व
व्यास का पांडवों के पास आगमन | व्यास का पांडवों से दान की महत्ता का वर्णन | दुर्वासा द्वारा महर्षि मुद्गल के दानधर्म एवं धैर्य की परीक्षा | महर्षि मुद्गल का देवदूत से प्रश्न करना | देवदूत द्वारा स्वर्गलोक के गुण-दोष तथा विष्णुधाम का वर्णन | व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अपने आश्रम लौटना
द्रौपदीहरण पर्व
दुर्योधन द्वारा दुर्वासा का आतिथ्य सत्कार | दुर्योधन द्वारा दुर्वासा को प्रसन्न करना और युधिष्ठिर के पास भेजना | द्रौपदी के स्मरण करने पर श्रीकृष्ण का प्रकट होना | कृष्ण द्वारा पांडवों को दुर्वासा के भय से मुक्त करना | जयद्रथ का द्रौपदी पर मोहित होना | कोटिकास्य का द्रौपदी को जयद्रथ का परिचय देना | द्रौपदी का कोटिकास्य को उत्तर | जयद्रथ और द्रौपदी का संवाद | जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का अपहरण | पांडवों द्वारा जयद्रथ का पीछा करना | द्रौपदी का जयद्रथ से पांडवों के पराक्रम का वर्णन | पांडवों द्वारा जयद्रथ की सेना का संहार | युधिष्ठिर का द्रौपदी और नकुल-सहदेव के साथ आश्रम पर लौटना | भीम और अर्जुन द्वारा वन में जयद्रथ का पीछा करना
जयद्रथविमोक्षण पर्व
भीम द्वारा जयद्रथ को बंदी बनाकर युधिष्ठिर के समक्ष उपस्थित करना | शिव द्वारा जयद्रथ से श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
रामोपाख्यान पर्व
युधिष्ठिर का अपनी दुरावस्था पर मार्कडेण्य मुनि से प्रश्न करना | राम आदि का जन्म तथा कुबेर की उत्पत्ति का वर्णन | रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति | कुबेर का रावण को शाप देना | देवताओं का रीछ और वानर योनि में संतान उत्पन्न करना | राम के राज्याभिषेक की तैयारी | राम का वन को प्रस्थान | भरत की चित्रकूट यात्रा | राम द्वारा राक्षसों का संहार तथा रावण-शूर्पणखा वार्तालाप | राम द्वारा मारीच का वध | रावण द्वारा सीता का अपहरण | रावण द्वारा जटायु वध एवं राम द्वारा उसका अंत्येष्टि संस्कार | राम द्वारा कबन्ध राक्षस का वध | राम और सुग्रीव की मित्रता | राम द्वारा बाली का वध | अशोक वाटिका में सीता को त्रिजटा का आश्वासन | रावण और सीता का संवाद | राम का सुग्रीव पर कोप | सुग्रीव का सीता की खोज में वानरों को भेजना | हनुमान द्वारा लंकायात्रा का वृत्तान्त सुनाना | वानर सेना का संगठन | नल द्वारा समुद्र पर सेतु का निर्माण | विभीषण का अभिषेक तथा वानर सेना का लंका की सीमा में प्रवेश | अंगद का रावण के पास जाकर राम का संदेश सुनाना | राक्षसों और वानरों का घोर संग्राम | राम और रावण की सेनाओं का द्वन्द्वयुद्ध | प्रहस्त और धूम्राक्ष का वध | रावण द्वारा युद्ध हेतु कुम्भकर्ण को जगाना | कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध | इन्द्रजित का मायामय युद्ध तथा श्रीराम और लक्ष्मण की मूर्च्छा | राम-लक्ष्मण का अभिमंत्रित जल से नेत्र धोना | लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित का वध | रावण का सीता के वध हेतु उद्यत होना | राम और रावण का युद्ध तथा रावण का वध | राम का सीता के प्रति संदेह | देवताओं द्वारा सीता की शुद्धि का समर्थन | राम का आयोध्या आगमन तथा राज्याभिषेक | मार्कण्डेय द्वारा युधिष्ठिर को आश्वासन
पतिव्रतामाहात्म्य पर्व
राजा अश्वपति को सावित्री नामक कन्या की प्राप्ति | सावित्री का पतिवरण के लिए विभिन्न देशों में भ्रमण | सावित्री का सत्यवान के साथ विवाह करने का दृढ़ निश्चय | सावित्री और सत्यवान का विवाह | सावित्री की व्रतचर्या | सावित्री का सत्यवान के साथ वन में जाना | सावित्री और यम का संवाद | यमराज का सत्यवान को पुन: जीवित करना | सावित्री और सत्यवान का वार्तालाप | राजा द्युमत्सेन की सत्यवान के लिए चिन्ता | सावित्री द्वारा यम से प्राप्त वरों का वर्णन | द्युमत्सेन का राज्याभिषेक तथा सावित्री को सौ पुत्रों और सौ भाइयों की प्राप्ति
कुण्डलाहरण पर्व
सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने के लिए सचेत करना | कर्ण का इन्द्र को कवच-कुण्डल देने का ही निश्चय करना | सूर्य द्वारा कर्ण को कवच-कुण्डल इन्द्र को न देने का आदेश | कर्ण का इन्द्र से शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देने का निश्चय | कुन्तिभोज के यहाँ दुर्वासा का आगमन | कुन्तुभोज द्वारा दुर्वासा की सेवा हेतु पृथा को उपदेश देना | कुन्ती का पिता से वार्तालाप एवं ब्राह्मण की परिचर्या | कुन्ती को तपस्वी ब्राह्मण द्वारा मंत्र का उपदेश | कुन्ती द्वारा सूर्य देवता का आवाहन | कुन्ती-सूर्य संवाद | सूर्य द्वारा कुन्ती के उदर में गर्भस्थापन | कर्ण का जन्म और कुन्ती का विलाप | अधिरथ सूत और उसकी पत्नी राधा को बालक कर्ण की प्राप्ति | कर्ण की शिक्षा-दीक्षा और उसके पास इन्द्र का आगमन | कर्ण को इन्द्र से अमोघ शक्ति की प्राप्ति | इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना
आरणेय पर्व
ब्राह्मण की अरणि एवं मन्थन काष्ठ विषयक प्रसंग | युधिष्ठिर द्वारा नकुल को जल लाने का आदेश | नकुल आदि चार भाइयों का सरोवर तट पर अचेत होना | यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद | यक्ष और युधिष्ठिर का प्रश्नोत्तर | युधिष्ठिर के उत्तर से संतुष्ट यक्ष द्वारा चारों भाइयों को जीवित करना | यक्ष का धर्म के रूप में प्रकट होकर युधिष्ठिर को वरदान देना | युधिष्ठिर को महर्षि धौम्य द्वारा समझाया जाना | भीमसेन का उत्साह और पांडवों का परस्पर परामर्श

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः