नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
85. उद्धव
मेरा रथ चलता आया सबके मध्य से। सबकी दृष्टि उठी। सब चकित लगे। अनेक स्वर सुनायी पड़े- 'अब कौन आया?' लेकिन किसी ने मुझे रोका नहीं। कोई मेरे समीप नहीं आया। लगता था किसी को इस समय मेरी ओर ध्यान देने का अवकाश नहीं था। सब किसी और की- किसी अत्यन्त प्रिय की प्रतीक्षा कर रहे थे। 'नन्दनन्दन आ रहे हैं! वे अभी इधर से ही आने वाले हैं। यह प्रतीक्षा प्राणों की यह अथक, अविचल प्रतीक्षा कहीं दिन-पर-दिन, महीने-पर-महीने, वर्ष-पर-वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी इसी प्रकार चल सकती है-चलती रहती है, यह कोई विश्वास करेगा? लेकिन व्रज की प्रेम-भूमि में यह अनन्त प्रतीक्षा-अवसाद, नैराश्य से असंस्पृष्ट अविराम अनर्थक प्रतीक्षा चल रही है। इसीलिये तो व्रजधरा धन्य है। दिव्य है। दुर्लभ है इसकी रजःकणिका भी देवताओं को। मेरा रथ व्रजराज के द्वार पर ही जाकर रुका। वे गोष्ठ से निकले थे। मेरा शरीर-वर्ण भी श्याम ही है। स्वामी ने मुझे अपने वस्त्र, आभरण, वनमाला से सजाकर भेजा था। वैसे भी मैं उनके उतरे वस्त्र, माल्य को ही पाकर प्रसन्न होता हूँ। मैंने पिता के साथ अपना नाम लेकर रथ से उतरकर प्रणिपात किया; किंतु व्रजराज की दृष्टि मेरे पहिने वस्त्रों पर लगी थी। मैंने क्या कहा, उनके श्रवण सुन नहीं सके। उन्होंने भुजाओं में भरकर मुझे उठाते हुए गद्गद स्वर से कहा- 'श्याम?' 'मैं उनका सेवक, सन्देश-वाहक उद्धव!' मैंने किसी प्रकार कह दिया। 'उद्धव, तुम भी मेरे लिये मेरे नीलसुन्दर ही हो।' व्रजराज के नेत्र जल से आर्द्र होकर मेरी अलकें पवित्र हो गयीं। उनकी पुलकित काया का स्पर्श पाकर मेरा जीवन सार्थक हुआ। मुझे कर पकड़कर वे भवन में भीतर ले गये और स्वयं मेरे सत्कार में लग गये। मैं संकोच के कारण मना भी नहीं कर सकता था। 'महर! ये अपने नीलमणि के सखा- भाई आये हैं।' व्रजराज ने पुकारा तो मैया आकर बैठ गयी। मैंने चरण-स्पर्श किया। उनके कर मेरे मस्तक पर घूम गये; किंतु वे काँपते कर। कण्ठ से उनके स्वर नहीं निकला। उनके नेत्रों की अजस्त्र धारा देखकर- उनका कान्तिहीन मुख देखकर, उनका कंकाल-गात्र देखकर ही मैं समझ गया कि इन वात्सल्यमयी के स्मरण से श्रीकृष्णचन्द्र क्यों विह्वल हो गये थे। 'महाराज उग्रसेन अपने भाई देवकजी के साथ सुखी-समृद्ध हैं?' व्रजराज ने मथुरा के सभी सम्मानित, स्वजनों का नाम लेकर उनका समाचार पूछा। वसुदेवजी का, देवकी माता का तथा रोहिणी माता का समाचार विशेष रूप से पूछा। मैंने संक्षिप्त शब्दों में कह दिया कि सब सकुशल हैं, प्रसन्न हैं। |
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