नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
80. ग्रामदेव-अक्रूर आये
भोजन करके जब शय्या पर अक्रूर विश्राम करने लगे, राम-श्याम उनके पद अंक में लेकर बैठ गये। अक्रूर का संकोच क्या करे। श्रीकृष्ण को वारित करना सम्भव नहीं था। इन कमललोचन ने कहा- 'पितृव्य! आप हमारे पूज्य हैं और आज तो अतिथि भी हैं। आप परम धर्मज्ञ हमें सेवा से रोक कैसे सकते हैं।' श्रीकृष्णचन्द्र ने आगमन का कारण पूछा और अक्रूर ने निष्कपट होकर सब सुना दिया कंस की पूरी कुटिल योजना बतला दी। कह दिया- 'देवर्षि नारद ने उसे कल बतलाया कि आप दोनों वसुदेव-पुत्र है। देवकी देवी के अष्टम पुत्र आपको वसुदेवजी रात्रि में ही नन्दगृह रख गये और जो कन्या मिली, वह यशोदाजी की थी।' 'कंस उसी समय देवकी, वसुदेव को मार देता; परन्तु देवर्षि ने उसे डराकर रोक दिया। दोनों को उसने कारागार में डाल दिया है। आप दोनों को मारने उसी समय अपने सेनापति नरभक्षी असुर अश्व केशी को उसने भेजा। उससे सावधान रहें।' अक्रूर ने कहा। 'वह यहाँ प्रात: पहुँच गया था।' श्रीबलराम हँसे- 'इनका स्पर्श पा गया। अब तो उसका शव भी गृद्ध-श्वान, श्रृगाल समाप्त कर चुके होंगे। कहीं केवल कंकाल पड़ा होगा उसका।' 'अच्छा हुआ।' अक्रूर सम्भ्रमपूर्वक उठकर बैठ गये। केशी की मृत्यु का समाचार उनके लिये भी असाधारण था। आदरपूर्वक बोले- 'कंस ने धनुष-यज्ञ की योजना बनायी है। उसका सोचना है कि परसों महाशिवरात्रि को गोप व्रत-दुर्बल रहेंगे। वह तो भूतेश्वर को बलि दिलवाता है। धनुष-यज्ञ के समय वह अन्त में धनुष उठाता है। वह भगवान शंकर का धनुष दूसरा कोई उठा नहीं पाता। कंस उसे ज्या-सज्ज करके शर-सन्धान करता है और कोई भी निरपराध लक्ष्य बन जाता है। इस बार उसने दस सहस्र गजबल वाले कुवलयापीड़ को सुरा पिलाकर मल्लशाला के द्वार पर रखने को महामात्य को आदेश दिया है। महामात्य को आदेश है कि 'आप दोनों पहुँचें तो वह गज के द्वारा आपको कुचल डालने का पूरा प्रयत्न करे।' 'कंस ने अनेक असुर मल्ल पाले हैं।' अक्रूर विवरण देते गये- 'चाणूर, मुष्टिक, शल, तोशल, क्रूर आदि। ये सब अत्यन्त क्रूर तथा वज्रकाय हैं। अपने प्रतिद्वन्द्वी को मार डालना ही प्रिय है इन्हें। गज से बचकर कथंचित आप दोनों मल्लशाला में पहुँच सके तो ये मल्ल आप दोनों का आह्वान करेंगे। स्वैर-संयुग[1] के लिये। कंस ने उन्हें मिलकर भी आप पर आक्रमण का आदेश दिया। इससे भी यदि आप अपनी रक्षा कर लें तो अन्त में वह धनुषोत्तोलन करेगा। शर-सन्धान करेगा और धोखा देकर आपको लक्ष्य बनाना चाहेगा।' 'आर्य! अब इस मातुल की आयु समाप्त होने को आ गयी।' श्रीकृष्णचन्द्र ने अग्रज की ओर देखकर अक्रूर से कहा- 'पितृव्य! आप यह सब अब किसी से कहें नहीं। आपको जो कहने को भेजा है राजा ने, वही कहें।' भीत, शंकित अक्रूर ने कह दिया- 'मुझे केवल यह कहने का आदेश है कि श्रीनन्दराय गोपों के साथ उपहार लेकर आप दोनों को लेकर अवश्य मथुरा इस महोत्सव में आवें।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बिना किसी नियम के स्वच्छन्द मल्ल-युद्ध।
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