नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
80. ग्रामदेव-अक्रूर आये
व्रजराज ने राजा कंस का सन्देश सुना। प्रमुख गोप एकत्र हुए; किंतु गोपों की गोष्ठी में यह निर्णय हुआ कि 'मथुरा जाना ही उचित है। राजा के सन्देश की अवज्ञा करने पर वह आक्रमण कर दे सकता है। अपना रथ भेजकर सादर उसने राम-श्याम को बुलाया है। वहाँ भी गोप शस्त्र-सज्ज रहेंगे। महोत्सव में दूसरे लोग भी आवेंगे। कंस ने कोई अन्याय-चेष्टा की भी तो सब उसके समर्थक ही तो नहीं होंगे। वैसे भी सबके सम्मुख, महोत्सव में वह कोई दुस्साहस करे, इसकी सम्भावना नहीं है।' पूरे व्रज में वाद्य के साथ घोषणा हो गयी प्रातः मथुरा-प्रस्थान की। 'राजा ने राम-श्याम को मथुरा की शोभा तथा महोत्सव-दर्शन के लिए आमंत्रित किया है। अपना रथ भेजा है। गोपों को उपहार लेकर साथ जाना है।' यह समाचार पूरे व्रज में रात्रि के प्रथम प्रहर में ही प्रसारित हो गया। अक्रूर को रात्रि में निद्रा नहीं आयी। वे समझ नहीं पाते थे कि उनकी सूचनाओं की इतनी उपेक्षा दोनों भाइयों ने क्यों कर दी। वे तो आशा करते थे कि व्रजराज को बतलाकर शस्त्र-सन्नद्ध गोपों का एक प्रबल दल अवश्य साथ ले जायँगे, यदि कहीं अन्यत्र ही रात्रि में चले जाने की योजना नहीं बनाते; किंतु दोनों भाइयों ने तो कंस की कुटिल योजनाएँ मानो सुनी ही न हों। इसी चिन्ता में अक्रूर रात्रि-जागरण करते रहे। प्रातः श्रीनन्दराय अपने साथ उन्हें यमुना-स्नान करने ले गये। सन्ध्या-पूजन करके वे स्वयं रथ में अश्व जोतने में लग गये और रथ सज्जित करके उस पर बैठ गये। गोप रात्रि-भर अनेक गोष्ठियों में व्यस्त रहे। उन्होंने दूध, दधि, नवनीत[1], घृत के भाण्ड सजाये छकडों पर राजा को उपहार देने के लिए। अपने शस्त्र स्वच्छ किये। यह निर्णय कर लिया कि सब साथ ही रहेंगे और कोई अवसर ही आ गया तो कौन-सा दल राम-श्याम को बालकों के साथ व्रज चल देगा और कौन-कौन मथुरा की सेना को कैसे कहाँ रोकेंगे। गोपियाँ भी गोपों के साथ प्रस्थान की सामग्री एकत्र करने में लगी थीं। मैया यशोदा-माता रोहिणी का हृदय पता नहीं क्यों मथित हो रहा था। चार दिन को राम-श्याम क्या जा रहे थे, लगता था कि चार युग को जा रहे हैं। नीलमणि को कब क्या चाहिए, यह सोचने, सजाने, साथ के सेवकों को बतलाने में वह लगी थीं। व्रजेश्वर तक को मैया ने बार-बार सचेत किया, समझाया। 'मथुरा बहुत बड़ा नगर है। बालक चपल हैं। पता नहीं नागरिक कैसे होंगे। कंस तो क्रूर है। उसके कर्मचारी, नगर-रक्षक होंगे स्थान-स्थान पर।' सहस्रशः आशंकाएँ हैं; किंतु जाना तो है ही बालकों को। उनकी सुख-सुविधा की सामग्री सम्हालकर, बतलाकर धर देनी है। व्रजराज को सावधान कर देना है। श्रीहरि रक्षा करेंगे! सबसे अधिक व्याकुलता है बालिकाओं में। वे सब एकत्र हो गयी हैं। सबका हृदय फटा जा रहा है। एक ही चर्चा है- 'ये भुवनसुन्दर नगर में जायँगे तो वहाँ की चतुरा किशोरियाँ इन्हें आने देंगी? इनको रिझाने-रोकने में कुछ उठा रखेंगी? ये ही क्या उन नागरिकाओं के रूप, गुण, चातुर्य को देखकर हमारा स्मरण कर पायेंगे? क्या है हम ग्राम्याओं में? हमें न ठीक श्रृंगार आता, न बोलना, रहना। हमें क्यों स्मरण करेंगे ये?' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मक्खन
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