नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
73. चन्द्रावली-रास में मान-भंग
एक कुछ चिह्नों की ओर संकेत करती है- 'यहाँ अवश्य दोनों बैठे हैं और उन्होंने अपनी प्रिया का पुष्पों से केश-श्रृंगार किया है। क्या पता यहाँ और क्या-क्या किया होगा उसके साथ।' किसी गाय, वृषभ अथवा वन पशु के बैठने के चिह्न ये हो सकते हैं; किंतु मेरे ही स्नेह से, मेरी प्रीति के कारण जो मेरी यूथ सखी ईर्ष्यावश अनुमानों का आविष्कार कर रही है, उसे मैं कैसे वारित करूँ? ललिता, रंगदेवी, सुदेवी आदि प्रसन्न हो रही हैं मेरी सखी के अनुमान के सहारे अपनी स्वामिनी के सौभाग्य का आभास पाकर। ये सरला बालिकाएँ मेरे कारण इस समय दुःखिया बन गयी हैं। मैं क्या इनका यह किञ्चित सुख भी छीनूँ। 'उस वधू के पद-चिह्न कहाँ गये?' मेरी सखियाँ स्पष्ट चरण-चिह्न पहिचान कर भी ईर्ष्या के कारण ही राधा का नाम नहीं ले रही हैं। 'इसके बहुत सुकुमार पद कमल कष्ट पाते होंगे वन के तृणो-कंकड़ियों से। यह उनसे सहा कैसे जाता! यह उनकी प्राणप्रिया है। सबसे अधिक प्यार दिया इसे उन्होंने।' मेरी एक सखी ने व्यंग किया- 'देखती नहीं कि यहाँ उनके पद-चिह्न कितने गहरे पड़ते गये हैं। अपनी प्रेयसी को कन्धे पर उठाकर चलने के कारण उन भाराक्रान्त के पद-चिह्न हैं।' मैं और नहीं सह सकती थी। मैं सखी को उसके व्यंग के लिये उपालम्भ देने ही जा रही थी कि हम सबके श्रवणों में श्रीराधा का करुण-क्रन्दन पड़ा। वृषभानुनन्दिनी का वीणा-विनिन्दक स्वर और इतना आर्त! 'हे नाथ! मैं इस विपत्ति में डूबी जा रही हूँ। चारों ओर से अन्धकार का अजगर मुझे निगलने आ रहा है। प्यारे! दौड़ो और बचा लो मुझे! मैं अपराधिनी हूँ! मैंने अभिमान किया! मैं तुम्हारी प्रीति पाकर उन्मादिनी हो गयी! क्या हो जाता यदि मैं तुम्हारे साथ कुछ देर और चली जाती। मेरे पदों में छाले पड़कर कुछ रक्त ही तो निकलता। प्रियतम! मैंने सोचा था कि तुम मेरे पदों में छाले देखोगे तो बहुत पीड़ा पाओगे! सचमुच मेरे पदों में पीड़ा होने लगी थी, इसलिये तुम्हें कष्ट न हो, यह सोचकर मैंने अनुरोध किया था। तुम मुझे कन्धे पर कुछ दूर उठा ही ले जाते तो क्या हो जाता? मैं भाग्यहीना तुम्हारे कन्धे पर बैठने को इसीलिए तो उद्यत हुई थी कि तुम्हें मेरे स्पर्श से सुख मिलेगा। तुम मुझे चाहे जहाँ ले जा सकोगे। मेरी यह धृष्टता थी तो तुम मुझे मना कर देते। तुम्हारी एक दृष्टि राधा को सिहरा देने में क्या समर्थ नहीं थी कि तुम अदृश्य हो गये? श्यामसुन्दर! अब तुम्हारे बिना राधा मर रही है। हाय! तुम इसका यह प्राणहीन शव लिये फिरोगे अब और फूट-फूटकर रोओगे! तुमने जीवित राधा को उठा लिया होता .......।' |
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