नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
73. चन्द्रावली-रास में मान-भंग
'राधा! मेरी बहिन! मेरी सखी! मेरी स्वामिनी!' मैं क्या-क्या प्रलाप कर रही थी, किसी को स्मरण नहीं। वह समूलोन्मूलित स्वर्णलतिका मैया कीर्ति की दुलारी, वृषभानु बाबा की प्राणपोषिता, पाटल दल से सहस्र गुणित सुकुमारी, नीलवसना भूमि में मूर्च्छिता म्लानकान्ति पड़ी थी। मैंने उसे अंक में उठाया और चीत्कार कर उठी- 'राधा! नेत्र खोल बहिन! तू ऐसी होगी तो हम सब अभी मर जायँगी। अपने को सम्हाल! तू रहेगी तभी श्यामसुन्दर के आने की आशा रहेगी। वे आवेंगे, तेरे, तेरे लिये ही आवेंगे! नेत्र खोल बहिन!' मेरे कातर स्वर ने, मेरे अश्रुओं ने सचेत किया और वह देखते ही दोनों भुजाएँ मेरे गले में डालकर क्रन्दन करने लगी- 'जीजी! मैं तेरी, तुम सबों की अपराधिनी हूँ! मुझे क्षमा कर दे! अपनी इस अनुजा को क्षमा कर दे!' मैंने हृदय से लगा लिया- 'मेरी अनुजेǃ तू यह बात मत कह। तुमसे अपराध कभी हो नहीं सकता। मैं सब समझती हूँ। तनिक शान्त हो।' 'जीजीǃ वे मेरा कर पकड़कर चले तो मैं मना नहीं कर सकी उनको।' वह फूटकर रो पड़ी- 'उन्होंने मुझे मौन रहने का संकेत किया। मैं तुम सबका सुख लूटकर सुखी होने चली थी- मुझे क्षमा कर दे जीजी! मेरे अभिमान ने उन जीवनधन को खो दिया। वे मुझ दर्पिता को त्याग गये। मैंने सबसे उनको छीनकर अकेली पाना चाहा- मेरा पाप, मेरा अपराध ......।' वह फिर मूर्च्छिता होने लगी थी। मैंने उनको सावधान किया- 'राधा! उठ शीघ्र। हम सब उनको ढूँढ़ेंगी। उनके पद-चिह्न हमको मिल रहे हैं।' यह राधा इतनी भोली है कि अपने अश्रु पोंछना भी भूल गयी। मैंने अपने अञ्चल से इसके अश्रु पोंछे। यह तो ऐसी हो गयी जैसे मैं ही इसकी सहारा, आश्रय सब हूँ। इसकी सखियाँ इसका और मेरा मुख देखती रह गयीं। इसने मेरा हाथ पकड़ा- 'जीजी किधर गये वे? मैं अब सबकी अग्रणी हो गयी थी। मैं उनके पद-चिह्न देखते चली। राधा मेरे साथ सटी चल रही थी। जहाँ तक वन में चन्द्र-ज्योत्सना का प्रकाश था, मैं पद-चिह्न देखते चलती गयी। आगे सघन वन था। मैंने राधा की ओर देखा- 'अब बहिन?' 'जीजीǃ हम सब ढूँढ़ती चलेंगी तो वे और अन्धकार में छिपते जायेंगे। कितना अन्धकार है। वे हठी हैं, इसमें दूर जाने में उन्हें कष्ट होगा, पर मानेंगे नहीं।' राधा ने कहा- 'जीजी हम तो सदा से हारी हैं उनसे। चल हम लौट चलें पुलिन पर। जहाँ हमने उन्हें खोया है, वहीं बैठकर उन्हें पुकारें। वे हमें देखने ढूँढ़ने वहीं आवेंगे। अब तो वही दया करके दर्शन दें तो उन्हें पाया जा सकता है। हम अबला कहाँ ढूँढ़ेंगी उनको।' |
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