नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
73. चन्द्रावली-रास में मान-भंग
ये आम्र, जम्बु, नीब, तमालादि तरु भी मौन हैं। ये यमुना किनारे के पर-दुःखकातर, अपने पत्र-पुष्प, फल-काष्ठ, अपनी अस्थि तक देकर परोपकार करने वाले ये पेड़ क्या हमें नन्दनन्दन का पता नहीं बता देते, यदि इन्होंने उसे देखा होता। ये हमारे दुःख से दुःखित रुदन कर रहे हैं। इनके पत्रों से टप-टप विन्दु गिर रहे हैं। ये इनके अश्रु ही तो हैं। कल्याणी तुलसी! तुमको तो हमारा वनमाली कभी त्यागता नहीं। तुम्हारे दलों की माला पर भ्रमर उसके वक्ष पर गुंजार करते ही रहते हैं। भगवति! तुम तो दयामयी हो। तुम आशीर्वादमयी, सबकी आकांक्षा पूरी करती हो। हम बालिकाओं पर इतनी कृपा करो! वह हमारे हृदय को चुराकर किधर चला गया? देवी! तुम उसी की हो; किंतु वही हमारा भी सर्वस्व है। तुम भी क्या आज उससे छली गयी हो? तुम्हारे पत्र भी शीर्ण होकर गिर रहे हैं! वह आज तुम्हारे समीप से भी नहीं निकला? इतने हरिततृण! ये धरादेवी के रोमाञ्च ही तो हैं। यह रोमाञ्च- इतना रोमाञ्च इन्हें कैसे? उस मनमोहन के चरणस्पर्श से अथवा भगवान वाराह ने आलिंगन किया था, उस आलिंगन का स्मरण आ गया है इन्हें? अन्ततः तो हमारा वनमाली इन पर ही कहीं होगा। देवि! दया करो! आप ही उसका पता बतला दो! लेकिन चाण्डालिनी चन्द्राद्रावली! तू इस योग्य है कि कोई तुझे उस अमृतवर्षी घनश्याम का पता बतलाये? तू कालभुजंगिनी- तेरे अभिमान के विष ने इन सब बालिकाओं की यह दशा की है। तेरी कुटिलता से वे कृष्ण हैं। तू कुटिला है- तू! हृदय के इस हा-हाकार में मैं भूल गयी अपने को। मुझे लगा कि कालिन्दी के हृदय में जो महाविषधर कालिय था, वह मैं ही हूँ। मैं पुकार उठी- 'सब बचो मुझसे! मैं कालिय हूँ! मैं सबका दंश करके मार दूँगा! मेरा विष असह्य है।' एक ने मेरा सिर पकड़ के झुका दिया और उस पर अपना पैर रखकर पुकारने लगी- दुष्ट सर्प! भाग जा! छोड़ जा कालिन्दी का हृद! जानता नहीं कि दुष्टों का दमनकर्त्ता कृष्ण मैं अवतार ले चुका हूँ।' बड़ी शान्ति मिली। उस परमपुण्यवती के पादस्पर्श को मस्तक पर पाकर मैं सचेत तो हो गयी, किंतु शान्त रही। इतना पुण्य मेरा कि यह उनकी सहचरी मेरे शीश पर पद धरे! अवश्य वे अपनों को अत्यधिक मान देने वाले इस पुण्य के प्रसाद से मुझ पापिनी पर भी प्रसन्न हो जायँगे। वे इसकी पदरज से भूषित मेरी मांग, मेरी अलकें देखेंगे तो मेरे अभिमान-मेरे अवगुण भूलकर मुझे इस रज के नाते अपनी प्रीति प्रदान करेंगे। अब वे मेरी उपेक्षा नहीं कर सकते। |
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