नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
72. कामदेव-रास का प्रारम्भ
मैं समझ नहीं पाता कि व्रज से जो बालिकायें वंशी का स्वर सुनकर दौड़ी थीं, वे तो कुछ पलों में ही अपने गृहों को लौट गयीं। प्रायः सब नारियाँ लौट गयीं उसी समय। उनके स्वजनों ने उपहास किया उनका- 'बस! वन देखा और डर गयीं? नन्दनन्दन वंशी बजावे तो क्या हमारा मन उसके समीप दौड़ जाने को नहीं करता; किंतु इस समय क्या वह वन में बैठा है? व्रजराज या व्रजेश्वरी इस समय उसे वन में जाने देंगी? वह अभी गोचारण करके लौटा है। व्रजराज के भवन पर ब्यालू करके कहीं बैठा वंशी बजा रहा है। रात्रि में वायु के कारण वंशी ध्वनि वन से आती प्रतीत होती है। इस समय नन्द-भवन भी नहीं जाया जा सकता। कन्हाई की मुरली का स्वर हमारे मन को भी मथित करता है; किंतु ऐसे उठ भागना व्यर्थ है। सब सो रहो। प्रभात हो तो कल वन में जाकर उसका वंशीवादन सुनना। हम सब भी चलेंगे।' सब नारियाँ-बालिकाएँ अपने गृहों में हैं और वे सब दौड़ी भी आ रही हैं। सब किशोरियाँ हैं, न बालिकाएँ और न तरुणियाँ। यह क्या है- मैं कुछ समझ नहीं पाता।[1] सब सौन्दर्य की साकार देवता- सब दौड़ी आयीं। सब अकेली, एक दूसरी से दूर छिपती आयीं और आकर वन में उस शिलातल के चारों ओर खड़ी हो गयीं। इन सबका यह सलज्ज स्मित शोभित मुख, यह सकटाक्ष निरीक्षण- यह स्पष्ट सर्वात्मना समर्पण। इनमें भी जो सबसे आगे है, मैं चाहकर भी इनके चरणों से ऊपर दृष्टि नहीं उठा पाता। ये सहस्र-सहस्र ज्योत्स्ना झरते चरण-नख। ये अकेली भी होतीं तो भी क्या ये नवघनसुन्दर गोपकुमार इनकी उपेक्षा कर पाते? यहाँ तो इनकी ये सहस्र-सहस्र सखियाँ साथ हैं क्या समझकर देवर्षि ने इन गोपकुमार को अजेय कहा था मेरे लिये? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रासलीला अवतार लीला नहीं है। अवतार लीला के रूप में श्रीकृष्णचन्द्र नंदगृह में मैया के समीप शैय्या पर ही बने रहे। वे वन मैं गये ही नहीं रात्रि को। गोपियाँ भी सब पार्थिव देह से अपने घरों में ही रहीं। रास तो दिव्य लीला है दिव्य देहों से हुई। अन्यथा रास के समय श्रीकृष्ण की आयु आठ वर्ष एक मास, बाईस दिन की थी। श्रीराधा इनसे कुछ महीने (एक वर्ष से कम) बड़ी है। उनकी सखियों में भी कोई उनसे दो वर्ष से अधिक बड़ी नहीं हैं।
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज