नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
59. गरुड़-कलिय-दमन
'मेरे सब दाहिने अंग फड़क रहे हैं!' व्रजेश्वरी व्याकुल हुई। व्रजराज के वाम अंगों में स्फुरण हो रहा था, अत: महर्षि शाण्डिल्य को बुलाया गया था। 'बार-बार बिल्ली मेरा मार्ग काटती है।' माता रोहिणी आतुर दौड़ी आयीं। 'सब कुत्ते एक साथ सिर उठाकर संगीत के समान रुदन कर रहे हैं!' चाचा नन्दनजी दौड़े आये- अपने ग्राम में दिन में ही श्रंगालों का समूह निर्भय आ गया है और श्रंगालियाँ फूत्कार कर रहीं हैं!' कहीं अकारण दधि-भाण्ड गिरकर फूटा और कहीं जल-कलश। किसी को देवमूर्ति के नेत्रों में अश्रु-दर्शन हुआ था, किसी को सूर्य की ज्योति मलिन लगने लगी थी। 'दिशायें धूलि-भरी हैं। वायु खर-स्पर्श चल रहा है। उपनन्दजी ने आते ही पूछा- 'नीलमणि कहाँ है?' 'दाऊ आज यहीं हैं? इनके बिना श्यामसुन्दर बालकों के साथ वन में गये हैं?' वृषभानु बाबा भाइयों के साथ भागते आये थे। दाऊ को देखते ही चौंके- 'नारायण व्रज के युवराज को सकुशल रखें!' 'मेरा नीलमणि!' मैया ने किसी की ओर नहीं देखा। वह उन्मादिनी की भाँति भवन से निकली और वन की ओर चलने-दौड़ने लगी। 'श्याम का अन्वेषण किया जाना चाहिये!' महानन्दजी जैसे वृद्ध ने जब लकुट उठाया तो सब साथ चल पड़े। गोपियाँ भी सब साथ हो गयीं। इस संकट की सम्भावना ने नन्दगाँव-बरसाने में सबका संकोच समाप्त कर दिया। मैं कुछ कहता भगवान संकर्षण से, इसका अवसर ही नहीं आया। वे स्वतः सबके साथ चल पड़े थे। अत्यन्त गम्भीर देखा मैंने आज उन्हें। एक शब्द किसी से उन्होंने नहीं कहा। 'बालक आज किधर गये हैं?' एक क्षण को आगे चलते महानन्दजी रुके। 'इधर, यह आज का गोबर है। यह गोमूत्र की रेखा बनी है।' सन्नन्दजी शीघ्रता से बढ़े- 'ये तृण कुचले तो हैं खुरों से; किंतु गायें यहाँ इधर-उधर दौड़ती रही हों तो?' 'ये पद-चिह्न मिल गये नीलमणि के।' तनिक आगे बढ़कर भूमि को ध्यान से देखकर नन्दनजी ने पुकारा। बालकों के पदचिह्नों के मध्य ध्वज, वज्र, कमल, यव, अंकुश के चिह्नयुक्त पदचिह्नों की पहिचान कठिन नहीं थी। 'सब कालिय-हृद की ओर गये हैं।' 'कालिय-हृद की ओर?' सबके ही हृदय धड़कने लगे। सबके मुख आशंका से पीत पड़े। सब दौड़ने लगे। |
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