नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
46. साधु-सेवक-वत्स-चारण
श्याम ने कामदा को अर्घ्य दिया। पाद-प्रक्षालन किया। मध्य में यह बाबा या मैया की ओर देख लेता है कि वह ठीक तो कर रहा है। यह तो ऐसे पूजन कर रहा है जैसे सदा से गो-पूजन ही करता रहा हो। श्रीनन्दराय ने अंक में उठाना चाहा था श्याम को जिससे वह कामदा के शृंग, जल-सिञ्चित कर सके; किंतु कामदा ने सिर झुकाकर शृंगों पर जल लिया, भालपर तिलक कराया और कण्ठ में पुष्प-माल्य स्वीकार की। गन्ध-धूप, दीप और कन्हाई के करों से मृदुल दूर्वा के साथ मोदक। यवस[1] में तो केवल मुख लगाया है इसने। गो-माता की यह हुंकृति उनका आशीर्वाद ही तो है। सम्पूर्ण पूजन तो कर लिया है चपल बछड़े गौरव ने शान्त खड़े रहकर। केवल कण्ठ में पुष्प-माल्य पड़ने पर प्रसन्न होकर सिर हिलाकर उछला है। इसे भी क्या पता है कि इस माल्य से इसकी शोभा बढ़ी है? व्रजराज का हिमशिखर के समान श्वेत उत्तुंग वृषभ धर्म। यह सिर न झुकाये तो इसके शृंगों पर जल चढ़ाना मेरे लिए भी थोड़ा कठिन ही होगा; किंतु वत्स-पूजन होते ही यह आ गया स्वयं पूजन लेने और श्याम के करों की पूजा तो लगभग भूमि से मुख लगाकर ले रहा है। महर्षि ने सब बालकों से एक-एक गौ, बछड़े और वृषभ का एक साथ पूजन करा दिया। शेष सब गायों, बछड़ों, वृषभों का पूजन करने की आज्ञा दे दी गोपों को। सबको पूजन करके यवस दे दिया गया। नीलसुन्दर उत्साह में है। आचार्य का पूजन, विप्रवर्ग का पूजन, वृद्ध गोपों का पूजन- व्रजराज कर दे सकते थे यह; किंतु श्याम आज स्वयं यह सब करना चाहता है। सबके चरणवन्दन कर आया- वन्दना तो इसने आज मेरी भी की। गोपियों का अभिवादन करने चला गया अन्त:पुर में। मोहन अन्त:पुर से आया। वेत्र-लकुट, मृदुल रज्जु, शृंग और मुरलि का- इन सबका भी तो पूजन करना है। पूजन के पश्चात् व्रजराज ने उठाकर अपने लाल के करों में लकुट दिया। इसे लेकर कृष्णचन्द्र आज गोपाल हो गया है। महर्षि तथा पिता के पदों में मस्तक झुकाया मोहन ने। महर्षि ने शृंग दिया और वृद्ध ताऊ ने वाम स्कन्ध पर रज्जु सजा दी। वंशी स्वयं इसने उठाकर कछनी में लगायी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भीगे अन्न
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