नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
46. साधु-सेवक-वत्स-चारण
कल नीलमणि वत्स-चारण प्रारम्भ करेगा। आज वह बड़े उत्साह में रहा दिनभर। उत्साह में तो सब हैं। पूरा व्रज और वन-पथ स्वच्छ, सज्जित किया गया है। मुझे तो लगता है कि पथ के तरुओं, लताओं को भी कल के महोत्सव का पता है। नवकिसलय, फलभार एवं पुष्पों से ये इतने लदे और कभी तो झुके नहीं दीखते थे। कितनी कोमल हरित दूर्वा उगी है मार्ग में। बछड़े चरें तो हमरे व्रज के समीप ही सुकोमल पर्याप्त तृण हैं। महर्षि मुनिगणों के साथ सदा सूर्योदय के पश्चात् पधारते हैं। अपना प्रात:कृत्य करके ही तो वे आ सकते हैं। आते ही पूजन प्रारम्भ कर दिया उन्होंने। आज पूजन तो राम-श्याम को करना है। कितना समझदार हो गया है यह मेरा नीलसुन्दर। महर्षि केवल मन्त्र-पाठ करते हैं। यह स्वयं कब क्या पदार्थ उठाना है, क्या करना है, करता जा रहा है। दूसरे बालकों को तो इसका अनुकरण करना है। कन्हाई- हमारा व्रज नवयुवराज आज गोपाल बन रहा है। व्रज के लिए, गोपों के लिए इससे बड़ा महोत्सव और क्या होगा? प्रत्येक गली सजी है। गृह-द्वारों पर तोरण हैं, फल-भार से झुके कदलीस्तम्भ हैं, सुपूजित कलशों पर प्रदीप हैं। गोप, गोपियाँ, बालक सब सजे हैं। सब वस्त्राभरण भूषित हैं। सुसज्जित श्रृंगार किये हैं हमने सब पशुओं के। महर्षि ने आते ही मेरी ओर सस्मित देखा था, जब मैंने उनके पदों में मस्तक रखा। बोले- 'आज तो साधु गोष्ठाधिप बन गया है!' गोष्ठेश्वर तो है मेरा यह नीलमणि। मैं इस गृह का सेवक- श्वेत कौशेय उष्णीय, श्वेत रत्न-खचित कञ्चुक, श्वेत कौशेय की कछनी और हीरक एंव मौक्तिकाभरण और किस दिन के लिए मैंने व्रजपति से पाये थे। मेरा यह रत्नखचित रजत-दण्ड- मेरा युवराज गोपाल बनकर चलेगा तो मुझे उसके पीछे प्रधान सहायक बनकर भी तो चलना है। आज तो उसके सब ताऊ, चाचा भी मुझसे स्पृहा नहीं कर सकते। आज अन्त:पुर गोपियों से भरा है और बाहर गोपों की भीड़ है। गोपियों ने व्रजेश्वरी बहू को अपने उपहार अर्पित कर दिये हैं और अब गाने, नाचने तथा अनेक विनोद करने में लगी हैं। तरुण गोप अपने शस्त्र-कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं। व्रजराज को उपहार देकर, परस्पर तिलक करके, अंकमाल देने के अनन्तर उनका कला-प्रदर्शन चल रहा है। सूत, मागध, बन्दी सभी उत्सवों पर स्तवन, वंशविरद-गान करने आते ही हैं। आज तो नट-नर्तक तथा अन्य कला-जीवियों का समुदाय ही आ गया है। |
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