महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
इन्द्र की कथा
देव जाति में कश्यप कुल शिरमौर था। उसके एक कुशिक नामक सरदार ने अपने ओहदे एवं शारीरिक शक्ति के घमण्ड में अत्याचारों को सीमा तक पहुँचा दिया। एक अदिति नाम की किसी प्रजाजन की बेटी थी। वह बड़ी ही रूपवती थी। उसका स्वभाव भी सीधा और सच्चा था दुष्ट कुशिक ने अदिति की सुन्दरता को बड़ी लालच भरी गन्दी नजर से देखा। वह उसे बराबर घेरने लगा। अदिति बेचारी दिन-रात डर के मारे सहमी-सहमी सी रहने लगी। उसके मां-बाप भी दुखित और चिन्तित रहने लगे। बहुत बचाव करते हुए भी शासक की बुरी निगाह से भला कौन बच सकता। अदिति बेचारी एक दिन वैसे ही कुशिक की दबोच में आ गयी जैसे सिंह की दबोच में बेचारी हिरनी आ जाती है। कुशिक के इस पाप परिणाम से बेचारी अदिति को मजबूरन मां बनना पड़ा। लेकिन जब वह मां बन गयी तो उसने निश्चय किया कि अत्याचारी कुशिक को मै उसी के बेटे से दण्ड दिलवाऊंगी। अदिति माता ने अपने बेटे को बहुत लाड़-प्यार और साथ-ही-साथ कठोर अनुशासन में पाल-पोस कर बड़ा किया। उसने अपने बेटे को कसरत, कुश्ती एवं अपने समय के श्रेष्ठ हथियार चलाना सिखलाया। वह अच्छे-अच्छे ज्ञानवान गुरुओं के पास ले गयी और उनसे उसे श्रेष्ठ शिक्षा दिलवायी। बेटा जब मां के पास रहता तो वह उसे यही शिक्षा बार-बार देती थी कि- "हे पुत्र! तुम श्रेष्ठ विद्वान, ज्ञानी और न्यायी बनो। न्याय की रक्षा के लिए अपने शरीर और मन में इतनी शक्ति पैदा करो कि महाबली दुष्ट भी तुम्हारी शक्ति के आगे घुटने टेक दे। शक्ति के बिना न्याय का पालन हो ही नहीं सकता। न्याय का पालन ज्ञान के बिना नहीं होता।" बालक जब धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो उसके अन्दर अपने देशकाल के शासक वर्ग का अन्याय और अत्याचार देख-देखकर उसका जी बार-बार विद्रोह करने के लिए मचल उठता था। अदिति मां ने सोचा कि बेटे को उसके जन्म की कथा सुनाने का समय आ गया। एक दिन मां ने अपने बेटे को उसके बाप का नाम बतलाया। जब बेटे ने यह जाना कि उसके इलाके का अत्याचारी शासक ही उसका पिता है तब वह क्षोभ और क्रोध से भर उठा। अपने जन्म की कथा जान कर उसे बड़ी लज्जा आने लगी। वीर की आंखों में आंसू छलछला उठे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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