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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
विराट नगर में पाण्डव
उन दिनों मत्स्य देश की राजधानी विराट नगर का मेला बड़ा ही प्रसिद्ध था। वहाँ की प्रजा इस मेले में बड़ी रुचि से भाग लेती थी। इस मेले में ब्रह्मा जी और शंकर भगवान् का दरबार लगाया जाता था। दोनों ओर कलाकारों, नटों, गवैयों और पहलवानों के जमघट जुड़ते थे। फिर उनके दंगल होते थे। जनता इन दंगलों में बड़ा रस लिया करती थी। इस मेले में अबकी बार जीमूत नाम का पहलवान आया था। उसने बड़े-बड़े नामी पहलवानों को इस तरह से चुटकी बजाकर हराया कि फिर इससे किसी की हिम्मत लड़ने की न हुई। जीमूत ललकारने लगा- मालूम पड़ता है कि इस विराट नगर के सारे पहलवान चूहों जैसे हैं। यहाँ कोई शेर नहीं है। राजा विराट जीमूत पहलवान की इस गर्व भरी बात को सुनकर तप उठे। उन्होंने पहलवानों से कहा- "क्या तुम लोग इस पहलवान की चुनौती स्वीकार करने का साहस नहीं रखते?" यह सुनकर भी कोई पहलवान जीमूत से लड़ने का साहस न कर सका। यह देखकर राजा को बड़ा ताव आया। उन्होंने कहा- "तुम लोग नहीं लड़ोगे तो न लड़ो, मैं अपने रसोइये बल्लव को बुलवाकर इस घमण्डी पहलवान का सिर उससे अभी नीचा करवाता हूँ।" बल्लव आया। राजा ने कहा- "मेरी राजधानी की लाज तुम्हारे हाथ में है, क्या तुम इस पहलवान को हरा सकोगे?" बल्लवधारी भीम ने एक बार नजर उठाकर जीमूत को ऐसे देखा जैसे शेर चूहे को देखता है। परन्तु उसे भय लगा कि यदि मेरी कुश्ती देख कर किसी ने मुझे पहचान लिया तो बड़ी आफत आ जायगी। वे यह सोच ही रहे थे कि युधिष्ठिर ने भीम को लड़ने का संकेत दिया। बड़े भाई की आज्ञा पाकर बब्बर शेर के समान रोबीले और ऐरावत हाथी की तरह मस्त भीमसेन अखाड़े में लंगोट बांधकर कूद पड़े। जीमूत हेकड़ी में था। उसने कहा- "अरे राजा के रसोइये, तू भला मुझसे क्या लड़ेगा? देखने में तू जरूर भैंसे जैसा है, पर मैं तुझे अभी पल भर में चूहा बना दूंगा।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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