महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
विदुर की चतुराई
दूसरे दिन जले हुए महल में शव दिखलाई दिये। यह लाशें वास्तव में एक भिखारिन और उसके पांचों बेटों की थीं जो रात में भोजन करने के कारण महल के नीचे सो गये थे। उन लाशों को देखकर दुर्योधन के नौकरों को यह विश्वास हो गया कि पाण्डव अपनी माता समेत जलकर मर गये। उन्होंने हस्तिनापुर में यह शोक सूचना भेद दी। राजा धृतराष्ट्र और दुर्योधन आदि अपनी चाची और भाइयों की अकाल मृत्यु पर नकली आंसू बहाने लगे। राजा की आज्ञा से उन सबका अन्त्येष्टि संस्कार किया गया और प्रजा ने भी बड़ा दुख मनाया। तरह-तरह की शंकाएं भी दबी जबान से लोग-बाग प्रगट कर दिया करते थे परन्तु निर्लज्ज कौरव भाइयों को इसकी तनिक भी परवाह न थी। वह तो यह सोच-सोचकर सुखी हो रहे थे कि हमारे शत्रु अब हमारी राह के कांटे नहीं बन सकेंगे। परन्तु उन्हें नहीं मालूम था कि पांचों भाई और कुन्ती माता जंगल में सुरक्षित हैं। यह सच था कि जंगल के जीवन में राजरानी कुन्ती माता को बहुत कष्ट हो रहा था, फिर भी किसी तरह दिन तो बीत ही रहे थे। उस जंगल में हिडिम्ब नाम का एक राक्षस रहता था। राक्षस लोग इस देश के आदिवासी थे। उनके सचमुच के सींग नहीं हुआ करते थे बल्कि बैलों या भैंसों की सींगदान खोपड़ियों की टोपियां पहनना उनके समाज का आम चलन था। राक्षसों में आमतौर से तो लोग असुरों और गन्धर्वों के पहरुए या सिपाही हुआ करते थे, पर बहुत से ऐसे भी थे जो जंगलों में अपना स्वतन्त्र जीवन बिताते थे। ऐसे जंगली राक्षसों में शत्रु को मारने के बाद उसका मांस खाने का रिवाज था और वे नरमांस भी नि:संकोच खाया करते थे। हिडिम्ब राक्षस भी ऐसे ही नरभक्षी राक्षसों में था। उसकी बहन हिडिम्बा भी वैसी ही क्रूर थी। भाई-बहन ने इन छह हट्टे-कट्टे जवानों का भोजन करने की योजना बनाई। सोचा गया कि राम में ही इन्हें मारने का मौका मिल सकेगा। हिडिम्बा पाण्डवों को मारने के लिए रात में चली। उस दिन भीम पहरा दे रहे थे और माता तथा दूसरे भाई सो रहे थे। भीम को देखकर हिडिम्बा का मन ललचा उठा। वह सोचने लगी कि ये सुन्दर और बलिष्ठ जवान यदि मेरा पति बन जाये तो मेरा जीवन बहुत सुख से बीतने लगे। यह सोचकर उसने जंगल से कुछ फूल चुने, तलैया के पानी से अपना मुंह धोया, चोटी-कपड़े ठीक किये और भीम को रिझाने चली। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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