महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीम दु:शासन युद्ध
उस हालत में भी कर्ण ने अपनी धनुष विद्या का कमाल दिखला दिया। उस टेढ़े रथ पर ही उसने ऐसा अन्दाज साधा कि अर्जुन का तीर इसके रथ से आर-पार निकल गया, किन्तु कर्ण का तीर अर्जुन के कवच से सीधा जा टकराया। कवच की धातु में बिजली पैदा हो जाने से अर्जुन को मूर्छा आने लगी। लेकिन श्रीकृष्ण की ललकार से वे होश में आ गये। कर्ण तब तक अपने रथ के पहिये को गड्ढ़े से निकालने के लिए धरती पर उतर पड़े थे। श्रीकृष्ण ने तुरन्त ही होश में आये हुए अर्जुन से धीरे से कहा- “हे मित्र, कर्ण अब अपने रथ पर चढ़ने न पाये उसका सर काट डालो।” कर्ण ने अपने रथ को जैसे गड्ढ़े से निकाल कर समतल पर खड़ा किया वैसे ही अर्जुन के तीर बरसने लगे। रथ की ध्वजा और उसके डंडे कट गये। कर्ण अर्जुन के तीरों की तीखी बौछारों के बीच से रास्ता निकालकर अपने रथ पर चढ़ जाना चाहता था लेकिन उसे मौका न मिला। अर्जुन के एक बाण ने कर्ण को मुर्दा कर दिया। कर्ण के मरते ही कौरव सेना हाहाकार कर उठी। दुर्योधन, शल्य आदि सबने अपनी सेनाओं को जमाना चाहा पर तब तक कौरव सेना के पांव उखड़ चुके थे। पाण्डव सेना में अपार उल्लास था। अर्जुन जब अपनी छावनी में पहुँचा तो युधिष्ठिर, भीम आदि सब भाइयों ने उन्हें कलेजे से लगा लिया। युधिष्ठिर ने आंखों में आंसू भर कर आकाश की ओर हाथ उठाकर कहा- “भगवान को लाख धन्यवाद है कि कुन्ती मां के बेटे अभी तक जीवित हैं जबकि गान्धारी चाची के कई बेटे अब तक स्वर्ग सिधार चुके हैं। युधिष्ठिर को भला क्या मालूम था कि आज के युद्ध में मरने वाला महारथी वीर भी कुन्ती का ही बेटा था। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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