महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीम दु:शासन युद्ध
भीम के इस भयानक रूप को देखकर केवल कौरव ही नहीं पाण्डव सेनाएं भी दहल उठी। दु:शासन के मरने से कौरव सेना में बड़ी ही निराशा फैल गयी। जब दुर्योधन को अपने भाई की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी एकाएक स्तब्ध हो गया। अब तक दुर्योधन के कई भाई मारे जा चुके थे लेकिन आज दु:शासन के मारे जाने से उसे बड़ी ही पीड़ा हुई। दु:शासन दुर्योधन का बड़ा ही आज्ञाकारी भाई था। उसके मरने से दुर्योधन को ऐसा लगा कि मानो उसके हाथ-पांव ही टूट गये हों। वह बेहोश हो गया। सरदारों में घबराहट फैल गई। काफी उपचार के बाद जब वह होश में आया तो विलाप करता हुआ बोला- "कर्ण से जाकर कहो कि आज पाण्डव भाइयों में से किसी को मार कर वह मेरा कलेजा ठण्डा करे। हाय! इन दुष्टों ने मेरे बेटे और इतने भाइयों को मार डाला पर इनके एक भी अब तक नहीं मर पाये।" जब कर्ण के पास यह संदेश पहुँचा तो वह पाण्डव सेनाओं को बुरी तरह से छकाकर नये मोर्चे की ओर बढ़ रहे थे। दु:शासन की मृत्यु का समाचार पाते ही उन्होंने कहा- "हाय, दु:शासन मारा गया? वह मुझे अपने सगे भाई की तरह ही प्यारा था। सुयोधन से कहना कि वह निश्चिन्त रहें, आज मैं एक न एक पाण्डव का वध करके दु:शासन की मौत का बदला अवश्य लूंगा।" कर्ण के सारथी शल्य मामा हंसने लगे। फिर कहा- "अरे सूत के बेटे, तू भला किसी पाण्डव को क्या मारेगा। अपनी कुशल मना, कही ऐसा न हो कि आज तेरा ही, राम-नाम-सत्य हो जाय।" कर्ण बोले- "मामा, मैंने आज तक जितनी प्रतिज्ञा की हैं उन सभी को पूरा करके दिखलाया है। फिर तुम मुझ पर ऐसा शक क्यों करते हो। मैं आज सूर्यास्त तक या तो कुंती मां के तीसरे पुत्र को मारूंगा या फिर अपनी जान दे दूंगा।" शल्य ने कहा- "तो तुम्हारी अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिये अर्जुन स्वयं इसी ओर आ रहा है।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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