महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शल्य सारथी बने
दुर्योधन बोला- “आप खुद ही बिचारिये मामा कि मुंजवान पर्वत[1] पर स्थापित परशुराम जी का सदियों से प्रतिष्ठित शिक्षाश्रम रण-विद्या सिखाने में क्या हमारे परम पूज्य स्वर्गवासी गुरु द्रोणाचार्य जी के आश्रम से किसी मामले में कम है? वहाँ के आचार्यों ने भीष्म पितामह के बाद मेरे मित्र कर्ण को ही अपने शिक्षाश्रम का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी घोषित किया था?" “और फिर मामा, सच पूछिये तो कर्ण से भी कहीं अधिक इस बात पर ध्यान रखकर मैं आपके पास आया हूँ कि योद्धाओं में तो कौरव-पाण्डव पक्ष के बहुत से लोगों के नाम आदर के साथ लिये जा रहे हैं। परन्तु राजनीतिक सारथियों में केवल देवकी नन्दन कृष्ण का नाम ही सबकी जबान पर सुनाई पड़ता है। मैं कल से सोच रहा था मामा, कि यहाँ से लेकर मिश्र और कश्यप सागर तक आपसे बढ़कर अश्व-विद्या-शारद कोई नहीं माना जाता फिर भी हमारा दुर्भाग्य है कि इस महायुद्ध में आपका केवल एक ही गुण अर्थात वीरता सराही जा रही है। मैं चाहता था कि यहाँ के लड़वैये भी जरा यह जान लें कि श्रीकृष्ण आपकी सारथी कला के आगे कितने फीके पड़ जाते हैं।” दुर्योधन की चिकनी-चुपड़ी, मीठी बातों से तो दिखावे के रूप में, लेकिन सच पूछा जाय तो युधिष्ठिर को दी हुई प्रतिज्ञा याद करके शल्य मामा ने बड़े मान-मनोबल के बाद कर्ण का सारथी बनना स्वीकार कर लिया। युद्ध में भाग लेने के लिए आते समय आरम्भ में जब दुर्योधन ने अपने मोहनी जाल में मामा को फंसा लिया था तब युधिष्ठिर ने उनसे कहा कि युद्ध में यदि कभी कर्ण-अर्जुन की मुठभेड़ का मौका आये तो आप किसी युक्ति से कर्ण के सारथी बन जाइयेगा और उन्हें अपनी बातों से बराबर निस्तेज करते रहियेगा। आज शाम को भीष्म पितामह से बातें होने पर भी शल्य ने उनसे वही सुना कि जीत हर हालत में पाण्डवों की ही होगी। क्योंकि सच्चाई उन्हीं के साथ है। इन सब बातों को मन में विचार कर शल्य राजी हो गये। इस तरह बेचारे कर्ण ने अनजाने में ही अपने एक शत्रु को अपना सारथी बना लिया। कर्ण परम तेजस्वी, अद्भुत बलशाली और रण कुशल, अति उदार और परम दानी थे। एक से एक बढ़िया गुण उसके व्यक्तित्व होते हुए भी वे बेचारे अभागे थे। अपने जन्म की कहानी के कारण उन्हें जीवन भर घुटना और जलना पड़ा। उन्होंने जितना आत्मदान किया उतना और कोई न कर पाया पर इस आत्मदान करने का सन्तोष बेचारे को जन्म भर न मिल सका। वह केवल घुटते और जलते ही रह गये। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आधुनिक मुंजान
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज