भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
उस समय भगवान ने जो कहा था कि ‘ममेमा रंस्यथः क्षपाः’ अर्थात तुम इन्हीं रात्रियों में मेरे साथ रमण करोगी-इसमें भी एक संदेह होता है। वह यह कि चीरहरण लीला तो दिन के समय हुई थी और ‘इमाः’ (इन) शब्द प्रस्तुत अर्थ का द्योतक है; फिर भगवान ने ‘इमाः क्षपाः’ इन रात्रियों में ऐसा निर्देश कैसे किया? यदि कहो कि वे रात्रियाँ भगवान की बुद्धि में स्थित थीं, इसलिये यह उक्ति अयुक्त नहीं है तो ठीक है। परन्तु गोपियों को तो इनका प्रत्यक्ष नहीं था। इससे मालूम होता है कि गोपियों को वर देने की इच्छा करने पर भगवान की सत्यसंकल्पता शक्ति से प्रेरित योगमाया ने इन रात्रियों को भगवान के सामने उपस्थित कर दिया था। जैसे यदि कोई सम्राट किसी को कोई वस्तु देना चाहता है, तो उसका भाव समझने वाले सेवक गण उस वस्तु को लाकर सामने उपस्थित कर देते हैं। इसके सिवा एक शंका यह भी होती है कि रासलीला तो केवल एक रात्रि में ही हुई थी, फिर यह तथा चीरहरण-लीला के अनन्तर वर-प्रदान करते समय भी बहुवचन (इमाः) का प्रयोग क्यों किया गया? उत्तर- भगवान अनन्त गुणमय हैं, उनके अचिन्त्य और अनन्त गुणों का आस्वादन अल्प काल में नहीं हो सकता। व्रजांगनाओं ने भी किसी क्षुद्र फल के लिये कात्यायिनी-पूजन आदि कठोर तपस्या का अनुष्ठान नहीं किया था। अतः यदि उन्हें थोड़े समय के लिये ही भगवत्सुखास्वादन का अवसर प्राप्त होता तो यह उनकी तपस्या का पूरा फल हुआ न समझा जाता। भगवान के स्वरूप-रसस्वादन के विषय में ही श्रीवृषभानुनन्दिनी का कथन था कि-अरी सखियों! भगवान के समग्र सौन्दर्य-माधुर्य रसास्वादन की बात तो दूर है, यदि हमें उसके एक कण का भी आस्वादन करना हो, तो हमारे प्रत्येक रोम में कोटि-कोटि नेत्र होने पर भी हम उसका सम्यक आस्वादन करने में असमर्थ हैं। जिस समय ये नेत्र भगवान के एक अंग के दर्शन में लग जायँगे, उस समय इनका सामर्थ्य नहीं कि वहाँ से आगे बढ़ सकें। इस विषय में ऐसी बात अन्यत्र कही गयी है। जिस समय भगवान रामचन्द्र का विवाहोत्सव हुआ, उस समय उस अपूर्व शोभा को निहारने के लिये ब्रह्मा, शिव, षडानन एवं इन्द्रादि सभी देवगण वहाँ उपस्थित हो गये। भगवान का वरवेश देखकर वे अपने को अत्यन्त बड़ंभागी मानने लगे। उस रूप-माधुरी का पान करने के लिये उन्हें अपने नेत्र पर्याप्त न जान पड़े; उस समय जिसके जितने अधिक नेत्र थे, उसने अपने को उतना ही अधिक भाग्यशाली समझा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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